मैं गांव की गली से गुजर रहा था, अपनी ही मस्ती में झूम रहा था, गाते हुए चला जा रहा था लेकिन मुझे क्या पता था कि घर को आने वाला यह रास्ता सबसे लंबा रास्ता होगा। कुछ लोग खड़े हुए हैं, कुछ छिपा रहे हैं। कोई लड़का है, जवान, उन सब के साथ जो डरा हुआ सा और सहमा सा लग रहा था। मैंने कुछ ऐसा देखा जो समझ तो नहीं आया लेकिन महसूस किया। मन तो जान लेता है कि क्या सही है और क्या गलत कुछ गलत हुआ है उस लड़के के साथ। लेकिन क्या यह समझ नहीं पाया मैं।

 मैं वहीं पास में पेड़ के पीछे जा खड़ा छिप गया। थोड़ी देर में पता चल गया कि क्या हुआ है। लड़कियां तो लड़कियां इस भेड़िए समाज में लड़के भी कहा सुरक्षित हैं। मां ने बताया था कि क्या गलत है। 

 यह बात वही खत्म नहीं होती। मुझे लगा मैं उन्हें देख रहा था लेकिन मेरी जीवन की कहानी तो अलग मोड़ लेने वाली थी। दृष्टा मैं नहीं वह थे। मैं तो उनकी कठपुतली बन चुका था। मैंने जो देखा तो देखा नहीं अपितु दिखाया गया।

 जो मासूम था जिसको बचाने का मैंने विचार भी कर लिया था, वास्तव में वही मैं होने वाला था। बस मुझे मेरे हालातों से परिचित करवाया जा रहा था, कि कुछ देर में मेरे साथ क्या होने वाला है। षड्यंत्र था मुझे फसाने का। 

 अब मैं क्या करूं? कहां जाऊं? 

 बिना सोचे समझे मैं भागा। 

 कहां को कैसे मुझे नहीं पता बस मैं भागा।

दिवाली का वह सामान भी वहीं गिर गया, जिसे लेकर मैं खुश था। कुछ पैसे बचे थे जो जेब में ही रह गए। दिवाली की वह शाम कभी ना भूल पाऊं ऐसी शाम हो गई। अपनी जान बचाता मैं जंगल के रास्ते भागा। जिसे रात में बाहर निकलने से भी डर लगता था, आज वही बचा डर के कारण ही डरावने जंगल में जा भागा। जंगली जानवर जो जानते भी नहीं मुझे, कैसे देखेंगे उनके अपने घर में।

आगे क्या हुआ?

बच पाया या नहीं?

प्रतीक्षा करें अगले भाग की।

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