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पूर्णविराम के बाद ही एक नए जीवन का आरम्भ होता है- तांडव ऋंखला का...
युद्ध, चाहे शारीरिक हो या मानसिक, उसके दुष्परिणाम सभी को भोगने पड़ते है--तांडव ऋंखला...
ईश्वर अपनी लीला करने के लिये किसी परिस्थिति या अवसर की प्रतीक्षा नहीं करते—...
छल से अर्जित किए गए ज्ञान की दिशा केवल विनाश की ओर लेकर जाती...
हमारे जीवन में सुंदर क्षण, ईश्वर की इच्छा पर नही बल्कि हमारी इच्छा पर...
ईश्वर की कृपा और करुणा से पराजय भी जय में परिवर्तित हो जाती है—...
विकट परिस्तिथियों में भी अपने आचरण का स्मरण रखने से परिस्थितियों का स्वरूप बदल...
चित्त और आत्मा का तर्क-वितर्क केवल अस्तित्व को लेकर होता है— तांडव ऋंखला का...
स्तुति और प्रशंसा अगर सच्ची हो तो विनम्रता बढ़ती है, नही तो केवल अहंकार...
समस्या के समय चिंता ना करके, उसके समाधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए— तांडव...
मानसिक तनाव कभी शांति से सोचने की अनुमति नहीं देता— तांडव ऋंखला का ३०वाँ...
माया चक्र में फँस कर मनुष्य की बुद्धि, वास्तविकता देख नहीं पाती--तांडव ऋंखला का...
हमारी हर स्तिथि, हमारी मनोदशा पर निर्भर करती है--तांडव ऋंखला का २८वाँ प्रकरण
प्रसन्नता और समृद्धि में इच्छाओं की सीमा समाप्त हो जाती है--तांडव ऋंखला का २७वाँ...
आसक्ति का आरम्भ क्षणिक आनंद से होता है--तांडव ऋंखला का २६वाँ प्रकरण