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आज प्रस्तुत है अंतिम पहर  कविता। आप तो जानते ही होंगे पहर(प्रहर) हमारे प्राचीन भारतीय समय की गणना का मानक(Standard) है। एक पहर 3 घंटों का होता है। सूर्योदय करीब छह बजे से पहला पहर शुरु होकर और अंतिम आठवाँ पहर रात्रि के 3 से सुबह 6 बजे समाप्त होता है। 3 से 6 के बीच का समय ब्रह्ममुहुर्त भी कहा जाता है। और कहते हैं ब्रह्ममुहुर्त में की जाने वाली साधनाएं तीव्र गति और गुणवत्ता पूर्ण होती हैं। क्योंकि इस समय प्रकृति विशेष रूप से सहयोगी होती है। वातावरण स्वच्छ और बाधाएं लगभग न के बराबर होती हैं। (दरअसल आप तो जानते हैं शब्द-सीमा 150 है। और मैं Lorem Ipsum नहीं लिखना चाहता, जो मुझे भी समझ नहीं आता😂🙏इसीलिये कुछ ये बातें लिख दीं।) अब कविता-

अंतिम पहर:

दुनिया से बेखबर हूँ,
मैं अंतिम पहर हूँ।
तुम बहुत किस्मत वाले हो,
तुम्हारी किस्मत में अगर हूँ।

सूर्य तो नहीं हूँ मैं,
एक जुगनू मगर हूँ।
अमर भी नहीं मैं,
काल की ही लहर हूँ।

सन्नाटे मेरी सड़कें हैं
मौनी शहर हूँ मैं,
जीवन तुम्हारा कहता है,
बड़े काम की डगर हूँ।

ऋषियों की विरासत हूँ
संभावनाओं की आहट हूँ,
ध्यानी का घर हूँ
मैं अंतिम पहर हूँ।

-अमित

पढ़ने के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया। आशा करता हूँ कि ये पंक्तियाँ आपको अच्छी लगी होंगी। आपके विचार जरूर साझा करें।

कोटि-कोटि धन्यवाद🌹