“बीती हुई बातों में हाथों को नही मलता,

तकदीर केकोसे से कुछ काम नही चलता,

रोना है बहुत आसान ,ग़म भी है बहुत लेकिन,

जज़्बात के ईंधन से चूल्हा तो नही जलता”

आज जज़्बाती हो जाना लाज़मी था, बात ही कुछ ऐसे हुई। कोविड-19 के विनाशकारी तांडव में पूरी मानव जाति लहूलुहान है। बच्चे-बूढ़े ,नौजवान , अनगिनत इच्छाएं, अनगिनत वादे, अधूरे काम ,सब पीछे छूट गए। क्या उस नवब्याहता ने कभी सोचा था कि, जिस दहकती अग्निज्योति के समक्ष वह  सात जन्मो के साथ के फेरे ले रही है ,कुछ क्षणों में सारे अरमान और उल्लास उसी अग्नि का महाग्रास होने वाली हैं, वो माँ जिसकी छाती से अभी-अभी मातृत्व की रसधार फूटी है वो उर्वर वक्ष किसी भी क्षण बंजर बियावान हो जाएगा, वो प्रियतमा जो लगभग सब कुछ हार चुकी है अपने प्रिय के प्रेम में ,विरह की अग्नि में पथराए नयन बिना दरश बरखा के ही खुले रह जाएंगे।

मैं अमूमन न्यूज़ और अखबार नही देखा करता ,कारण ही यही है कि हृदय संवेदनशील घटनाओ को साक्षी भाव से स्वीकार करने में आनाकानी करता है। 

लगातार बढ़ रहे कोविड प्रकरणों के कारण अनजान भय का वातावरण पसरा हुआ है। किसी को नही पता यमदूत कब किसके दरवाजे पे दस्तक दे दें। सबसे ज्यादा कष्ट तो तब होता है जब सुबह-सुबह उठते ही पता चलता है कि फलाने जो कल चाय पे अपने शादी के किस्से सुनाकर चटकारे मार के हंस रहे थे अब उनकी हंसी सदा-सदा के लिए मौन हो गयी। उनकी हंसी अब अट्टहास करती है कानो में, चिंटू जो कल बॉल के लिए मुझे धमकी दे रहा था कि भैया नीचे आओ देख लूंगा वो भी पॉसिटीव है। मोहल्ले की वो पागल औरत जिसे अपने स्थित-परिस्थित की सुध भी नही , उसका जीना तो वैसे भी कचरे के ढेर में ही बीता पर उसका ढेर में इस तरह मर जाना मेरे हॄदय में प्रश्नों की हजार सलाखें धंसा देता है।  इस सब से अलग-थलग मिडिल क्लास परिवार में एक अलग भूकंप आ रहा है, इन अभागों को सच मे कहीं भी शरण नही ,ये ना तो समाज से बाहर जाने की कभी हिम्मत जुटा सकते अर्थात सभ्य समाज के गढ़े नियमो  में सबसे ज्यादा कुर्बानी इन्ही को देनी पड़ती है, आज शर्मा जी परेशान हैं । बेटी की शादी का सारा प्रबंध हो चुका था, लोन भी तो मिल गया था, चलो थोड़ी सी जेब ढीली करनी पड़ी पर मैनेजर साहब बहुत अच्छे है दो परसेंट में ही मान गए। बेटी अपने घर चली जाए, फिर मैं और बेटा दोनो मिल के सेट कर देंगे सब, छोटे की स्कूल फीस का क्या? वो तो देना ही है, माल्या थोड़ी हूँ जो भाग जाऊंगा ले के , इन बेचारों को ये  भी नहीं पता कि हरिश्चन्द्र की संतान केवल अब मणिकर्णिका में ही जीवित रह पाएगी “सभ्य समाज” में नही। पर नही बेईमान भी नही हो सकते ना ,घर मे बापू, विवेकानंद की तस्वीर इन्हें रोक लेती है। पूजा घर मे रखी भागवत हर क्षण इन्हें नरक यातना की सुध देती है। क्या करें बंधे हाथ होते है ना, इनके महीने के आखिर में केवल भागवत के ज्ञान से ही काम चलाना पड़ता है। हमारे साहित्य में एक शब्द आता है “किंकर्त्यव विमूढ़” इनकी सारी जिंदगी इसी शब्द की परिधि में उलझी रहती है। अरे हाँ!  इस प्रतापी शब्द का अर्थ तो जान लीजिए ” क्या करूँ? क्या न करूं”  संक्षेप में यही जानिए की ये च्वाइसेस डील करने में ही मरते है। सच मे मिडिल क्लास में सस्ती चीज़ो की बहुत महंगी कीमत अदा करनी पड़ती है।

आज मैं थोड़ा बायस्ड हो जाऊं तो मुझे क्षमा करियेगा ये मेरी प्रवृत्ति नही है ,किन्तु आज मासूमो के छाती में मृत्यु के वीभत्स नृत्य ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया । अभी कुछ पता नही की कल सुबह क्या सुनने को मिले।

माफ़ करिये आज से पहले मैंने कभी इतना रोषपूर्ण आर्टिकल नही लिखा, आज मुझे एक खास अपने की बात याद  आ गयी “वो कहता है कि, देखो लिखना कभी-कभी हीलिंग का काम किया करता है” शायद वो सही है, आज समझ मे अच्छे से आ रहा।

अगर आप अभी भी यहां है मतलब आपने मेरे मानसिक उहापोह को झेला इसके लिए शुक्रगुजार भी हूँ और क्षमाप्रार्थी भी।

ईश्वर सब की रक्षा करें।

जय श्री हरि🌺🌺🌻🌻🌻🌼🌼