एक दिन सभा गृह की ओर भाग रही माँ को महादेव व्यंग में कहने लगे, “समय भी कितना बलवान होता है। कभी भद्रा हमारी व्यस्तता से नाराज़ हो जाती थी और आज हम हमारी देवी के दर्शन अभिलाषी बन कर प्रतीक्षा कर रहे है।”
“बस यही सुनना शेष रह गया था, आशुतोष। आप से बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी विशेष नही, लीजिए मैं यही रुक गयी।” माँ एक दम से थम गयी।
“नही वारणने, मैं केवल व्यंग कर रहा था। बल्कि आपको सभी में व्यस्त देख कर मैं अति प्रसन्न हुँ।”
नगरवासी इन दिनों देवी और महादेव को चिंतामणि गृह में प्रसन्नता से स्वतंत्रता से विचरण करते हुए अक्सर देखते थे। और कभी कभी प्रार्थना करने पर वे नगर निवासियों के गृह में भी प्रवेश कर लेते थे।
माँ को भी एहसास हुआ कि माँ सब से कितना पृथक हो गयी थी। और सभी चाह कर भी उनके पास आ नही पा रहे थे। और आज माँ इतनी व्यस्त थी कि वो चाह कर भी अकेली बैठ नही पाती थी।
बस गण ही महादेवी के पास संकोचवश नही जाते थे। जब कि माँ तो उन्हें स्वयं किसी ना किसी बहाने से बुला लेती थी।
एक दिन माँ के पास कालिंदी नाम की एक बहुत सुंदर स्त्री आयी। वह स्त्री शंख की भार्या थी। उसने माँ से एकांत में मिलने के लिए प्रार्थना की। माँ के एकांत कहने पर सभी सेविकाएँ और दासियाँ बाहर चले गये। कालिंदी ने माँ को बताया कि उसके पति और उसके के मध्य सम्बंधों की माधुर्यता फ़िकी होने लगी थी। बात चित के शब्द सिमट कर केवल हाँ-ना तक सीमित रह गये थे।
“बहुत विचित्र बात है कि पति-पत्नी में बिना कारण तनाव हो। हो सकता है कि यह सिर्फ़ तुम्हारी सोच हो, दूसरे क्या तुम से ऐसी कोई बात तो नही हुई जिस से तुम्हारे पति थोड़ा खिन्न हो लेकिन शीलतावश कुछ ना कह पा रहे हो और सबसे बड़ी बात आपके सम्बंध में कितनी स्वतंत्रता है?” माँ ने बात की गहराई में जाते हुए कहा
कालिंदी कुछ क्षण के लिए चुप हो गयी।
“पति-पत्नी के सम्बंध में स्वतंत्रता? वो एक-दूसरे के साथ अटूट विश्वास के रिश्ते में जुड़े होते है।”
“अटूट सम्बंध का अर्थ यह नही होता कि आपके वास्तविक अस्तित्व का समूल नाश हो जाए। और प्रेम के नाम पर आपका सम्बंध एक भार बन जाए। विश्वास की असली कसौटी तभी होती है जब आप दूसरे को ना बांध कर उसे स्वतंत्रता प्रदान करें।”
“मैं समझ गयी हूँ, माँ। पति को खोने के डर से मैं हमेशा शंका लिप्त रहती हूँ और कभी चाह कर भी स्वतंत्रता दे नही पाती। और कहीं यह भी है कि जिस वस्तु को मैंने जब चाहा, उसे प्राप्त किया लेकिन बिना शंख के परामर्श के। शायद यह भी एक कारण हो सकता है।”
“तो कालिंदी, तुम ने स्वयं ही अपनी समस्या का समाधान ढूँढ लिया है। अगर इन दो चीजों पर काम किया जाए तो बिना कारण का तनाव समाप्त हो सकता है। महादेव की कृपा से सब अच्छा हो जाएगा। और जब भी मन कल्पित हो मेरे पास आ जाना, मैं हूँ ना।” देवी ने बहुत ही प्रेम से व्याकुल कालिंदी को संतुष्ट करके भेज दिया
कालिंदी को तो माँ ने शांत करके भेज दिया। लेकिन माँ के हृदय में तरह तरह के सवाल उठने लगे कि कहीं ऐसा तो नही कि कभी माँ से भी कुछ अपराध हुआ हो? कहीं महादेव माँ का फिर से त्याग ना कर दें आदि आधारहीन विचार उत्पन्न होने लगे। माँ, कालिंदी की जगह खुद को सोचने लगी कि क्या माँ ने महादेव को स्वतंत्रता दी हुई थी? सहसा ही माँ के मन में आ रहा था कि जब वो सती स्वरूप में थी। तब महादेव की एक आज्ञा का उल्लंघन करने पर उसे भारी क़ीमत चुकानी पड़ी थी। उसने अपनी सती देह का त्याग किया था। दूसरा जन्म लेने के बाद करोड़ों वर्षों तप करने पर ही महादेव की प्राप्ति हुई थी। और इस बार तो महा अपराध हुआ है। पता नही इस कर्म का क्या परिणाम होगा।
इसी भाव में जब माँ अपने महल में अंदर गयी। तो सामने महादेव बैठे थे और भोजन के लिए देवी की प्रतीक्षा कर रहे थे। देवी का भाव जान कर महादेव कुछ हैरानी से बोले, “क्या हुआ भद्रे, सब ठीक है ना?”
माँ महादेव के चरण पकड़ कर रोने लगी, “मुझ से अपराध हो गया है। वचन दे कि आप मेरा त्याग फिर से नही करेंगे।”
“क्या?” महादेव की चेहरे की मुस्कुराहट एक दम से ग़ायब हो गयी “कैसी बातें कर रही है देवी आप?” शिव रोष में बोले। अभी उन्होंने माँ को वाराणने नही कहा
“मैं तो बस प्रार्थना कर रही थी। सती स्वरूप में मैंने आपकी आज्ञा की अवज्ञा करने पर आपको खोया, लेकिन अब ऐसा कुछ नही चाहती। क्यों कि अपराध तो अब भी हुआ है।”
“नही देवी, जब आप मानवीय स्त्री के रूप में थी, तब कहीं ना कहीं आपका पिता के प्रति एक अकारण मोह था। उसकी वजह से आपका मेरे प्रति भाव भी अलग हो गया। वही एक मूल कारण था हमारे विरह का। मुझे तो यह समझ में नही आ रहा कि नया विषय आपके मन में उत्पन्न हुआ कैसे?”
“असुरक्षा की भावना स्त्री का पीछा कभी नही छोड़ती। मैं नही चाहती कि मेरी दशा कालिंदी जैसे हो।”
“आपकी दशा? क्या आप को भी आभास है कि जब आप मेरे जीवन में नही रही थी तो मेरी दशा कैसे हो गयी थी? और मुझ जैसे वैरागी को श्री हरि के बिना कोई भी सम्भाल नही सकता था। और अब भी आपके साथ मैंने उसी परिस्तिथि को झेला है। एक बात मैं आपको बार बार समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि आपके काली स्वरूप की उत्पत्ति और युद्ध आदि सब मेरी इच्छा से हुआ था। आज आपने अकारण ही मुझे बहुत कष्ट दिया है। थक गया हूँ आपकी इस मनोदशा से०००और कृपया साधारण दुर्बल स्त्रियों जैसे स्वयं पर दया करना बंद कीजिए। आपको यह सब शोभा नही देता। कृपया जागिए, आप जगतजननी हो!”
“एकांत” ज़ोर से कहते हुए महादेव बिना भोग लगाए बाहर चले गये। महादेव आज पति स्वरूप में थोड़ा कठोर थे।
माँ महादेव का ऐसा स्वरूप देख कर थोड़ा सहम गयी। उन्हें भी लगा कि आज उन्होंने वास्तव में ही महादेव को कष्ट दिया था और यह अकारण था। कभी कभी किसी दूसरे की परिस्तिथि को अपनी समझ कर हम वैसी ही आधारहीन प्रतिक्रिया करने लगते है।
अगले ही दिन महादेव के बुलाने पर शंख महादेव के सामने प्रस्तुत हुआ।
“शंख, क्या सब कुशल मंगल है कालिंदी के साथ?” महादेव ने गम्भीरता से पूछा
“प्रभु, सब आनंद मंगल चल रहा है। कालिंदी बहुत प्रेम से सेवा करती है। माँ के दर्शन के बाद तो और भी प्रसन्न है, महाप्रभु।”
“तो फिर देवी के पास___कालिंदी?”
“अच्छा वो। प्रभु, आपने उस दिन नगर सभा में स्वयं ही तो कहा था कि माँ को व्यस्त रखो। अगर कोई समस्या नही भी है तो उत्पन्न करो। तो बस इसी लिए०००फिर यह सब करना पड़ा। क्यों, क्या कुछ अपराध हुआ?” शंख महादेव की ओर बहुत ही भोलेपन से देखता हुआ बोला
“मूर्ख।” शिव ने अपने ललाट पर हाथ रखते हुए कहा, “समस्या ढूँढी भी तो गृहस्थ की? चलो, जो भी हुआ अच्छे के लिए हुआ।” कह कर शिव बहुत ज़ोर से हँस पड़े।
माँ महादेव की सेवा में तो थी लेकिन महादेव से बात नही कर रही थी क्यों कि उस दिन महादेव रोष में बिना भोग लगाए गये थे। महादेव भी मौन थे और शंख-कालिंदी का सत्य बताना नही चाहते थे।
कुछ दिन बाद:-
“प्रभु, मंगल अभिषेक का समय निकट आ रहा है।”
To be continued…
सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
अगला क्रमांक आपके समक्ष 7th-May-2021 को पेश होगा.
The next episode will be posted on 7th-May-2021.
These are sad and disturbing times as Bhagwan is doing His real TANDAV in the form of Covid Pandemic.
My heart reaches out to those who have lost their loved ones. I pray to Almighty to bless us with peace and health. May His grace prevail.
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