लगभग आज से सवा साल पहले हम बनारस गए थे और स्वाभाविक है कि काशी जाएँ और रंजय पांडेय जी के घर ना जायें यह सम्भव नहीं। वास्तव में रंजय जी और डॉक्टर वाणी के लिए ही तो वहाँ गए थे। वहाँ पर उन्होंने एक प्रवचन रखा हुआ था और प्रवचन के बाद थोड़ा भजन-कीर्तन था। आज के दिन भी भजन गाने के लिए मुन्ना जी आए हुए थे और दस वर्ष पूर्व भी रंजय मुन्ना को ही बुलाते थे। तो हमेशा की तरह, इस बार भी मुन्ना ने एक बहुत ही सुंदर भजन गाया।
उस दिन से ही मैं सोच रहा था कि आपके साथ साझा करूँगा, और आज लैप्टॉप पर कुछ खोज रहा था कि यह भजन सामने आ गाया। इससे पहले के फिर से काम में व्यस्त हो जायूँ, आपके साथ यह भजन साझा कर रहा हूँ, ज्यों का त्यों। उस समय फ़ोन पर रिकॉर्ड किया था। आशा है आपको यह पसंद आएगा। इसका सारा श्रेय रंजय जी, मुन्ना जी तथा उनकी मंडली को जाता है।
और हाँ, थोड़ा सूरदास जी को भी।
सूरदास जी के इस पद के शब्द और अर्थ कुछ ऐसे हैं:
अब कै राखि लेहु भगवान।
हौं अनाथ बैठ्यो द्रुम डरिया, पारधी साधे बान।
ताकैं डर मैं भाज्यौ चाहत, ऊपर ढुक्यौ सचान।
दुहूँ भाँति दुख भयौ आनि यह, कौन उबारै प्रान?
सुमिरत ही अहि डस्यौ पारधी, कर छूट्यौ संधान।
सूरदास सर लग्यौ सचानहिं, जय-जय कृपानिधान।।
पेड़ की डाली पर बैठा एक छोटा सा पक्षी भगवान से निवेदन कर रहा है कि मैं संकटग्रस्त और असहाय हूँ। हे प्रभु, मैं बहुत डरा हुआ हूँ क्योंकि सामने शिकारी मुझपर तीर साधे खड़ा है और ऊपर बाज झपट्टा मारने के लिए तैयार बैठा है। आगे कुआं-पीछे खाई जैसी स्तिथि है और आप ही बताएँ कि मुझ अनाथ को इस विकट परिस्थिति से कौन बचायेगा अब?
लेकिन जैसे ही ईश्वर का स्मरण करता है अचानक एक सांप शिकारी को डस लेता है, जिससे उसका निशाना चूक जाता है और तीर पक्षी को न लगकर ऊपर बाज को लग जाता है।
इससे पक्षी का संकट दोनों तरफ से टल जाता है। एक ही क्षण में बाज और व्याध, दोनो के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।
सूरदास जी कहते हैं कि हे कृपा निधान! जिस तरह आपने उस पक्षी की रक्षा की, उसी तरह आप मेरे ऊपर भी कृपा करो और मुझे संकट की इस घड़ी से निकाल लो। हे प्रभु! हे कृपा निधान! हे दयानिधान! इस बार मेरी रक्षा करो, आप की सदा ही जय हो।
उन परमबुद्ध परमशुद्ध परात्पर, सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम सर्वज्ञ, हमारे सर्वस्व श्री हरि को बारंबार नमन है।
शांति।
स्वामी
Editor’s note: You can access the English translation here.
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