अब छोड़ो भी फिर वही बाते,
कुछ पाने की, कुछ हासिल करने की,
कुछ करने की, कुछ ना करने की।

आज आधी उम्र का तजुर्बा है मेरा,
जो चाहा, ओ पाके भी,
दो दिन से ज्यादा ख़ुशी कभी टिकीं नहीं।
हजार ख्वाइसे पूरी करने से भी,
मन का खालीपन कभी गया नही।

अब जाके पता चला, सब झूठ है, धोका है,
ये सब गुमराह करेने की राहे है,
चीजें और रिश्ते कभी मन का खालीपन भर नहीं सकती,
ये शर्तों पे टिके प्रेम से कभी दिल की मरम्मत हो नहीं सकती।

पर अब ये भी जाना, जो ज्ञानी कह गए,
जानना ही है, तो वो जान लो, जो जानने से, सब कुछ जान लोगे,
पाना ही है, तो वो पा लो, जो पाने से सब कुछ पा लोगे।

ये जानने का, ये पाने का, सफर शायद लम्बा है,
और रास्ता थोड़ा अनजान भी,
पर कोई गिला भी नहीं है,
क्योंकि सफर शरू करते ही दिल में बैचेनी नहीं है,
और मन शांत है।

This week I completed 40 years. Just thought that even after completing more than half of life, still the struggle is for the same things— to have something, to achieve something. Despite knowing from past experiences that these things, as well as love and appreciation of others is fleeting. But while going through this struggle, the silver lining is that by reading and listening to enlightened beings like our Swami Ji and others, and by taking a few steps as guided, now I feel that there exists a path that may lead to the true and lasting peace and contentment. The beauty of this new path is that even by just starting the journey on this path, we start feeling that this path is worth travelling.

Om Shanti!

PS: Think about it!