सुन रहे हैं, सरकार?
आज humour मर गया है हमारा।
इत्तु-से भी मज़ाक के मूड में नही हैं।
हमने बरसो से सहा है विरह,
कभी उफ़ तक ना की।
आपसे अलग होने की आग
जब कतरे-कतरे को जला रही थी,
जब रूह की चमड़ी से
गल-गल कर
विरह-वेदना टपक रही थी,
हमने तेग-बहादुर बन
उस भैरवी यातना का रस चखा है।
सड़ती-सी लाश बन बस यही कहा है,
कि “मालिक! तेरा किया मीठा लागे!”
ना जाने कितने ही जन्मों से
हड्डियाँ गला दें,
ऐसी करबलाओं को झेला है।
ज़िन्दगी की हर ज़िल्लत सही।
किसी भगत की तरह
गर्व से हर बार अपने
फाँसी के फंदे को चूमा है।
जुनून आपके इश्क़ का था।
जुनून आज भी,
हर साँस में,
आप ही के इश्क़ का है।
क्यूँकि इश्क़ और पागलपन में कुछ ज़्यादा फ़र्क नहीं होता।
क्यूँकि भक्ति अगर इश्क़ की चरम सीमा को भी ना लांघे तो वह भक्ति नहीं।
सहा है सबकुछ और उफ़ ना की।
हाँ! ज़िन्दगी की चिलचिलाती धूप में,
आपके दामन में सर ज़रूर छुपाया है।
क्यूँकि माँ के आँचल के सिवा प्यास बुझना नामुमकिन है।
हाँ! रोये हैं बिलख के,
कभी आपके चरणों से चिपक के
तो कभी आपके सीने से लिपट के।
क्यूँकि माँ की गोद के सिवा सुकून मिलना नामुमकिन है।
पर कहिये आप, मालिक!
जो कभी हमने बदलने को कहा हो हालात!
जो कभी हमने सर आँखों पे न बिठाई हो हर बात!
आप खेलते गयें बेतहाशा।
हमने हँसते हुए झेला हर तमाशा।
पर अब बस, नाथ।
जिनमे सम्पूर्ण ब्रम्हांड समा लिए हैं,
अब उन नज़रों को उठाइये
और देखिये आपकी ‘माया’ ने
क्या हश्र कर दिया हमारा!
महामाया हैं आप, स्वामी!
आपके रहते अगर ‘माया’
आप ही के बच्चों को छले
तो सब कद्दू है!
महाकाल हैं आप, मालिक!
आपके रहते अगर ‘काल’
आप ही के बच्चों को डसे
तो सबकुछ गोबर है!
रहम करिये!
हमपर ‘कर्म-बंधन-ऋणानुबंध’
जैसे बड़े-बड़े शब्दों का जाल नहीं डालिये।
आपकी सत्ता बड़ी है इन सबसे, विश्वनाथ!
शब्दों के जाल में आप किसको लपेट रहे हैं, नारायण!
जिसने आपसे मोहब्बत की होगी
उन्हें आपकी सच्चाई हमेशा से ही ज्ञात है!
किस भाग्य का डर हो आपके बच्चों को!
जब भाग्य लिखने वाली उनकी अम्मा हैं!
उल्लू को और कित्ता उल्लू बनाइयेगा, सरकार!
Shame-Shame, Puppy Shame बात है ये तो, प्रभु!
हप्प!
उठिये, नाथ! Bad Boy नहीं बनिए!
जब मन किया भस्म लगा धूनी रमा लिए।
जब मन किया बंसी बजा सबको रिझा लिए।
जब मन किया अर्जुन पकड़ गीता सुना दिए।
जब मन किया राम बन लंका डूबा दिए।
कभी रचा महाभारत, शमशान बना दिए।
कभी मुट्ठी चावल ले गुलशन सजा दिए।
कभी मन किया बद्रिका में आसान जमा लिए।
मनमर्ज़ी बस।
पत्थर मैं!
पिंकी ऊँगली से
मुझको सरका के बैठ गयें।
भाग फूट पड़ें!
विश्व बना मेरे विष्णु,
भक्तों को बिसरा के बैठ गयें।
अब बस!
बस, प्रभु। अब और नहीं।
लगा लिए ध्यान आप कल्पों से शून्य पर।
औघड़दानी बन श्मशान-श्मशान भी खेल लिए।
अब बस! ध्यान इधर लाइए अब।
अब नहीं खेलना हमको आपके साथ, स्वामी।
खेल ख़तम।
अब घर चलिए।
अब बस, नाथ।
कृपा।
लीला स्थगित करिए।
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