अर्थशास्त्र का शिक्षक होने के नाते मैं आज आप को एक नियम के बारे में जानकारी देता हूँ.

अर्थशास्त्र में 𝙇𝙖𝙬 𝙊𝙛 𝘿𝙞𝙢𝙞𝙣𝙞𝙨𝙝𝙞𝙣𝙜 𝙈𝙖𝙧𝙜𝙞𝙣𝙖𝙡 𝙐𝙩𝙞𝙡𝙞𝙩𝙮 अहम नियम है.

इस नियम के अनुसार, कोई भी वस्तु लंबे समय तक सुख देने में नाकाबिल है. वस्तुओं द्वारा दिया सुख निरन्तर कम होता जाता है.

दुनियावी ख़ुशी कोई भी हो – पैसे इकट्ठे करने की, ज़मीने खरीदने की, हुकूमत हासिल करने का या फिर जवानी की – सभी की तीन विशेषताएं होती है :

(क) सभी ख़ुशियाँ निरन्तर कम होती जाती हैं :

नये मोटरसाइकिल की ख़ुशी चंद रोज़ा ही होती है. कुछ दिनों तक ही इस पर पोछा मारा जाता है, इसका श्रंगार होता है. फिर इससे मोह भंग हो जाता है.

(ख) इनका अंत तय है :

लखपति बनने पर यदि कोई इंसान खुश होता है तो वह खुशी क्षणभंगुर होती है क्योंकि जब यही इंसान करोड़पतियों, अरबपतियों को देखता है तो उसके ज़हन में निराशा आ जाती है और उसकी खुशी छूमंतर हो जाती है.

(ग) यही ख़ुशियाँ आखिरकार तमाम दुखों का कारण भी हैं :

एक दौर ऐसा भी था जब मैं शराब का आदी था.
ओल्ड मोंक, अरिस्टोकरेट, रेड नाईट, डिपलोमेट – किसी ज़माने में ये सब मेरे पसंदीदा ब्रांड थे, मैंने इन्हें जमकर पिया. मेरा यह पुख़्ता यक़ी था कि जिंदगी का सिर्फ़ एक ही मक़सद है – अय्याशी करना. लेकिन फिर यह अहसास हुआ कि शराब का नशा पल दो पल सातवें आसमान पर तो ले जाता है पर हैंगओवर, लीवर, किडनियों को क्षतिग्रस्त कर देता है.
कोई भी समझदार इंसान यदि शराब का 𝙘𝙤𝙨𝙩 𝙗𝙚𝙣𝙚𝙛𝙞𝙩 𝙖𝙣𝙖𝙡𝙮𝙨𝙞𝙨 करेगा तो वह शराब को पीने से पहले कई मर्तबा सोचेगा.

तकरीबन २२ साल पहले मेरे एक अज़ीज़ ने अपने बेटे के पैदा होने पर बेहद ख़ुशी मनाई. महंगी शराब, मिठाइयां बांटी गई. लेकिन अफ़सोस कि आज उसी बेटे ने उसके नाक में दम कर रखा है!

तो फिर असली सुख कहाँ है?

असली सुख “बाहर” नहीं है. असली सुख आपके “भीतर” है.

असली सुख का अहसास करना है तो अपनी इंद्रियों को वश में करना सीखें.

असली सुख चाहिए तो अपनी ख़्वाहिशों में कमी लाएं. अपने अंदर “ठहराव” पैदा करें.

~ संजय गार्गीश ~