ज़िंदगी के हर पढ़ाव पर हमारी तुलना दूसरों से की जाती है | हर पल हमें हमारी सीमाओं का स्मरण करवाया जाता है | इस कारण हम अपना शाश्वत स्वरूप भूल जाते हैं| हमारी मूल प्रकृति का विस्मरण हो जाता है |
हमारा वास्तविक स्वरूप जो पीड़ा,विशाद और सीमाओं से परे है |
मैं यह शरीर नही हूँ | मैं यह मन भी नही हूँ | मैं पाँचो इंद्रियों से भी परे हूँ | मैं चेतना भी नही हूँ | यह केवल मेरे साधन हैं |
मैं शाश्वत हूँ और इन सब से परे हूँ |
ना मैं पुरुष हूँ, ना ही स्त्री | ना युवा हूँ, ना ही वृद्धावस्था मुझे छूती है | ना मैं रूपवान हूँ और ना ही कुरूप | ना मेरा कोई मित्र है और ना ही कोई शत्रु |
ना मैं एक पिता हूँ,ना माता,ना पुत्र और ना ही पुत्री |
पति भी नहीं और ना ही पत्नि हूँ |
यह सब श्रेणियाँ भर हैं |
मैं शाश्वत हूँ और इन सब से परे हूँ |
पवित्र भी नहीं, ना ही अपवित्र हूँ | अच्छा भी नहीं, बुरा भी नहीं | सर्द नहीं, गर्म भी नहीं | मैं नैतिकता के बंधनों से मुक्त हूँ फिर भी अनैतिकता मेरा स्पर्श नहीं कर सकती | कैवल्य और मूढ़ता, दोनों से ही मेरा कोई संबंध नहीं |
यह सब द्वैत भर हैं |
मैं शाश्वत हूँ और इन सब से परे हूँ |
मैं ना तो बंधनों में बँधा हुआ हूँ और ना ही उनसे मुक्त हूँ | ना मैं किसी के नफ़रत का भागी हूँ, ना ही किसी के प्रेम का पात्र | सुखी भी नहीं, ना ही मैं दुखी हूँ | ज्ञानी नहीं हूँ और अज्ञान की छाया भी मुझ पर नहीं पड़ती | सफलता के शिखर पर नही हूँ और असफलता की धूल से भी नहीं सना |
यह सब दृष्टिकोण भर हैं |
मैं शाश्वत हूँ और इन सब से परे हूँ |
ना कमज़ोर हूँ, ना ही शूरवीर | अधीरता और आलस्य के परे हूँ | मुझे ना तो थकान घेरती है,ना ही स्फूर्ति छूती है |स्वस्थ भी नहीं,अस्वस्थ भी नहीं |
मैं मेरा बिता कल और मेरी यादें भी नही हूँ |
यह सब क्षणिक मनः स्थिति भर हैं |
मैं शाश्वत हूँ और इन सब से परे हूँ |
मैं मृत्यु को कभी प्राप्त नहीं होता | ना कभी बीमारी मुझे स्पर्श कर पाती है | मैं हर प्रकार की वेदनाओं से परे हूँ | वास्तविक स्वरूप में मुझे विशाद नहीं घेर सकती | मुझपर इन सब का कोई प्रभाव नहीं होता | हर प्रकार की कमियों से मैं परे हूँ | परे हूँ मैं हर अच्छाई और बुराई से, प्रशंसा और आलोचना से | उन सब से मुक्त हूँ जो भी कुछ लिखा या सोचा जा सकता है, कहा या पढ़ा जा सकता है |
मैं अक्षय और अभाज्य परम चैतन्य हूँ |
मृत्यु और जीवन के पार, मेरा अस्तित्व इस सृष्टि, इस ब्रम्हान्ड से भी पूराना है | मैं स्वयं में एक स्वतंत्र एकाई होते हुए भी, इस समूचे परिघटना का एक अभिन्न अंग हूँ |
अपने आप में संपूर्ण, स्वाधीन, सत्य, शाश्वत और पर्याप्त हूँ | इस सृष्टि का सृजन, पालन और विनाश करने वाली ऊर्जा हूँ |
मैं ही ब्रह्म हूँ |
अहं ब्रह्मास्मि |
#Translation of a beautiful guided meditation by His Holiness 💓💓
‘Guided Meditation for Self-Realization – Om Swami’
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