अस्ताचल का समय ,रात अपने आने की घोषणा कर चुकी थी क्षितिज में पसरती कोहरे के पतली परत ,जैसे रात के जश्न की तैयारी का आगाज़ कर रही थी। छप्पर की मुंडेर पर बैठा देहाती गौरैया का जोड़ा बड़े ध्यान से ढलते सूरज को देख रहा था। अस्ताचल की किरणें सारे आकाश को और छप्पर पर बैठे जोड़े को अपने गेरुआ(लाल रंग) रंग से नहला रही थी। क्षितिज में शांति व्याप्त थी जैसे कोई तमाशबीन अपना तमाशा खत्म कर वापस अपने नीड़ की ओर लौट रहा हो। धीरे-धीरे ढलता सूरज कुछ तो कह रहा था।
आसमान में छिटकी बदलियां जो दोपहर में दैत्याकार गिरिराज की शक्ल में स्थाई अहंकार से विचरण कर रहीं थीं ,अब उनका अस्तित्व समस्त आकाश बिखरा पड़ा था। इन छिटकी असंगठित बदलियों के समान मेरे मन मे भी शंका और प्रश्नों की बदलियां फैलीं थीं।
स्वाभाविक है इन छिटकी बदलियों से कोई बारिश की आशा न थी और मेरी दृष्टि में न ही इनका कोई योगदान है जब तक ये बिखरी हुई हैं। ये उपयोगी नहीं हो सकती ,न प्रकृति के लिए न मानवता के लिए। प्रातः उदयाचल से लेकर मीठी गुनगुनी दोपहर और अब कोमल शाम तक, मैं अपने आंगन में बैठा रहा।
“आकाश में फैलीं इन विशाल धवल जलद शिलाओं की भांति मेरे अंतःकरण में शंकाओं और प्रश्नों की विशाल शिलाएं धंसी हुई थीं जो दशानन के दबे हाथ की तरह मेरे हृदय में भारी दबाव पैदा कर रहीं थी”
एक पहचानी सी भाव लहरी जो आज मन में पीड़ा भी भर रही है और प्रेम भी, अनजाने ही मन न जाने इन्हें छोड़ना नही चाहता ये भाव ,ये करुणा ,पीड़ा ,अहा!……
एक निजी अनुभव से कहता हूं आध्यात्मिक आनंद में रत व्यक्ति को प्रकृति अपने हर संभव प्रयास से वे सारी वत्सलता अर्पण करती है जो उसे आवश्यक है।
आज मन शिवानुरागी है 😊 लगातार उन्हीं की स्तुतियाँ सुन के मन मे अथाह करुणा उत्पन्न हो रही है। समस्त शास्त्रीय कथाएं जो मैंने पढ़ी या सुनी है मेरे सामने एक -एक करके घटित होती हैं। हर बार किसी भक्त का उत्थान होता है चाहे फिर भगवान आशुतोष को जो करना पड़ा हो।
भजन और बांसुरी वादन इस मदहोशी को और बढ़ा रहीं है। अगर आप को शास्त्रीय संगीत का थोड़ा भी शौक है तो ‘राग दरबारी’ आपको मदमस्त करने के लिए पर्याप्त है ,विशेषतः जब आप उस दिव्यभाव मे हों। अब मुझे थोड़ा ही सही, पर इन अनुभवों से विश्वास होता है कि कैसे श्री रामकृष्ण परमहंस🌼🌼 और न जाने कितने भक्तों को भाव समाधि का आनंद मिलता रहा होगा।
रोनू मजूमदार का बांसुरी वादन (राग दरबारी) मेरे हेडफोन में बज रहा था और ‘शिवनाद’ मेरे अंतर्मन में। स्वरों की भी ,क्या गज़ब की क्षमता है वही स्वर जो मंत्र के रूप में जपा गया तो मोक्ष के द्वार खोल देता है और वही स्वर जब सुरों में गूंथा गया एक निश्चित आवृत के ताल में बांधा गया तो भावों के द्वार खोल देता है। हमारे शास्त्र नाद ब्रम्ह की महत्ता झूठी थोड़े ही करते हैं इसका भान मुझे अब हो रहा है, मधुर दरबारी की ताने जब आपके कानो से होती हुई हृदय पटल पर झंकार मचाती हैं तो मन मचल जाता है अपने इष्ट को अपने प्रिय को………
To be continued….
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