अभी अभिषेक का अंतिम चरण चल रहा था। माँ जगदंबा ने महादेव को क्षमा प्रार्थना अर्पित की और मंगल अभिषेक का सारा पुण्य महादेव के दाएँ कर कमल में समर्पित कर दिया। और सभी के लिए मंगल कामना की।
घोषणा हुई कि मंगल अभिषेक समाप्त हो चुका है।
“नमो पार्वतीपत्ये०००हर हर महादेव !!!” का उद्घोष करते हुए सभी महादेव मंगल अभिषेक के रस में डूबे हुए थे। महादेव भी अपने आसन से उठ गए थे और देवी पार्वती सहित चलने के लिए तैयार हो गये।
“ठहरिए महादेव, अभी अभिषेक सम्पूर्ण नही हुआ।” एक मधुर वाणी सुनते ही महादेव और माँ जगदंबा रुक गए और पीछे मुड़ कर देखा तो एक बहुत सुंदर मुक्त केशी यौवना खड़ी थी। उनके मत्स्य नेत्र बहुत बड़े-२ और हल्के भूरे रंग के थे। वह गौर वर्ण नही बल्कि हल्के सिंदूरी रंग की थीं, देखने में वह लालिमा सी प्रतीत हो रहीं थीं। लाल रंग के वस्त्रों में उनकी वेश-भूषा बहुत ही सादी और महीन क़िस्म की थीं। उनके केश बहुत ही लम्बे, घने लेकिन भूरे रंग के और बायीं ओर आगे की तरफ़ किए हुए थे। तीखी नाक में एक छोटा सा हीरे का बिंदु सुसज्जित था और चौड़े ललाट पर एक छोटा माँग टिका शोभा पा रहा था। उनके करकमल बहुत ही सुंदर और हल्के-हल्के नख बड़े हुए थे। वह स्मित मुखी थी लेकिन रहस्यमयी लग रहीं थीं। उनसे कुम कुम और केसर जैसी सुगंध आ रही थी। नाम मात्र के आभूषण होने के बावजूद भी वह अत्यधिक मोहिनी और गजगामिनी लग रही थीं। ऐसा लग रहा था कि वो किसी और ब्रह्मांड के ब्रह्मा की संरचना थीं।
इस स्त्री का इतना मोहिनी स्वरूप देख कर सभी चकित हो गये। कुछ क्षण के लिए महादेव भी भ्रमित हो गए कि अमृत बाँटने के समय जैसे कहीं श्री हरि ने कोई मोहिनी स्वरूप तो धारण नही कर लिया। तत्काल महादेव ने दृष्टि श्री हरि की तरफ़ घुमायी और हल्के से संकेत करके पूछा कि कहीं श्री हरि तो कोई लीला नही कर रहे। मुस्कुराते हुए श्री हरि ने भी ना का संकेत करते हुए अपनी ग्रीवा उस स्त्री की तरफ़ घुमाई। कुछ क्षण के लिए वहाँ केवल चुप्पी छा गयी।
“देवी, महादेव का मंगल अभिषेक सम्पूर्ण हो चुका है और इस अभिषेक के अधिकारी केवल यहाँ के निवासी और अतिथि जन है।” बलि ने चुप्पी तोड़ते हुए, घोषणा यंत्र को एक तरफ़ करके कहा
“मान्यवर, मैं यहाँ स्वयं नही आयी, मुझे ऐसा लगता है कि मुझे यहाँ आमंत्रित किया गया है।” उनकी आवाज़ में निर्भयता और दृढ़ता देख कर, माँ जगदंबा ने बलि को मौन रहने का संकेत करते हुए कहा, “इस शुभ अवसर पर कोई भी उपस्थित जन महादेव के अभिषेक से वंचित नही रहना चाहिए। आप महादेव का अभिषेक कर सकतीं है” और उन देवी को महादेव का अभिषेक करने के लिए आमंत्रित किया।
जब वह देवी श्री यंत्र मंच पर आयीं तो किसी के आश्चर्य की सीमा नही रही। क्यों कि माँ जगदंबा और इनके स्वरूप में केवल वर्ण और केशों का ही अंतर था। एक सा कद, एक सी शारीरिक वनावट, माँ अति गौर वर्ण की और ये सिंदूरी वर्ण की थीं। अभी १५ नित्या देवी, माँ जगदंबा और ये देवी, स्वरूप में सभी एक सी लग रहीं थीं लेकिन सभी की वेश-भूषा अलग थी। और सभी का सौंदर्य ऐसा था कि अंधेरे में भी रौशनी हो जाए।
उन्होंने महादेव को जल से अभिषेक करवाया और अपने सिंदूरी हाथों से महादेव के चरण स्पर्श किए। महादेव मुस्कुराते हुए मौन थे लेकिन यह मुस्कुराहट गम्भीरता वाली थी।
“देवी, आप अपना परिचय दीजिए। आपका शुभ नाम?” कार्तिकेय ने उत्सुकता पूर्वक पूछा
“कुमार, मुझे मेरा नाम तक स्मरण नही आ रहा, केवल इतना याद है कि मैंने स्वयं को गिरिगंगा के तट पर पाया। और दिव्य संगीत और गायन की ध्वनि सुनते सुनते मैं इधर आ गयी।” महादेव की तरफ़ इशारा करते हुए उन्होंने अपना संवाद जारी रखा, “इन्हें सब महादेव कह कर निहाल हो रहे थे, अभिषेक अर्पित कर रहे थे, वरदान माँग रहे थे और दिव्य आनंदित नृत्य देख कर मेरे मन में भी उत्कंठा हुई कि मैं भी महादेव को अभिषेक अर्पित करूँ।”
उनकी बातचीत से सभी को लगा कि शायद उन देवी की स्मृति खो चुकी है, शायद वो किसी और लोक से बहती हुई गिरिगंगा में गल्ती से आ गिरी। लेकिन इस बात पर महादेव और श्री हरि ने कोई प्रतिक्रिया प्रकट नही की।
“वामकेशी! आज से आपका एक नाम वामकेशी है और भविष्य में आपकी इस नाम के साथ पूजा भी की जाएगी।” महादेव ने उनका नामकरण भी किया और वरदान भी दिया।
(माँ जगदंबा का एक नाम वाम केशी भी है।)
“मुझे लगता है कि इस स्थान से मेरा गहरा सम्बंध है। मुझे सभी अपने और प्रिय लग रहे है।”
“अवश्य देवी वामकेशी, आप सत्य कह रही है। माँ जगदंबा और महादेव की कृपा की छत्रछाया में अपने और पराये का भेद ख़त्म हो जाता है।” श्री हरि ने मुस्कुरा कर पुष्टि करते हुए कहा
“अगर आप की इच्छा हो तो कुछ समय तक यहाँ रह कर आप हमारा आतिथ्य स्वीकार कर सकतीं है। यह चिंतामणि गृह का प्रचलन नही है कि अतिथि का उचित सत्कार ना किया जाए।” रात्रि होती देख कर माँ जगदंबा ने बड़ी सहजता से एक स्त्री की सुरक्षा और सम्मान रखते हुए यह प्रस्ताव दिया। एक अपरिचित स्त्री के लिए माँ का आतिथ्य भाव देख कर सभी, यहाँ तक कि महादेव भी माँ को प्रशंसा की दृष्टि के साथ देख रहे थे, क्यों कि सामान्यतर यह सहज नही होता।
देवी वामकेशी ने प्रसन्नता के साथ यह प्रस्ताव स्वीकार किया। यह सब कुछ इतनी शीघ्रता से हुआ कि किसी को इस परिवर्तन का कुछ पता ही नही चला। महादेव के नाम का उद्द्घोष तो अब भी हो रहा था लेकिन उसमें एक खुलापन ना होकर, एक औपचारिकता थी। सभी अतिथि जन सम्मान पूर्वक अपने अपने लोक को लौट गए थे। और देवी वाम केशी, माँ और महादेव के साथ उन्हीं के रथ में आरुढ़ होकर महल में चली गयी। चिंतामणि गृह में उस रात्रि किसी को नींद नही आयी। क्यों कि मंगल अभिषेक की दिव्य स्मृतियों में प्रसन्नता के साथ साथ एक आश्चर्य का भी मिश्रण था देवी वाम केशी को लेकर।
देवी वाम केशी का रहस्यमी आगमन और उनके आगमन का उद्देश्य, उनकी पूर्व स्मृति का ना होना, माँ जगदंबा-१५ नित्या देवी और देवी वाम केशी का लगभग एक ही स्वरूप होना और सबसे बड़ी बात देवी और महादेव के साथ उनका एक ही रथ में जाना आदि प्रश्नों ने बहुत व्यथित कर दिया। अंत में सभी के चित्त की प्रसन्नता अन्य शंकित भावनायों में दब गयी। और सभी के मन एक आगामी भविष्य को लेकर अशांत हो गये।
महादेव ने महल में प्रवेश करते ही नंदी को एकांत में बुलाया और नंदी ने समझा कि महादेव को नए बघछाल, रुद्राक्ष मालाएँ इत्यादि फिर से अर्पित करनी है क्यों कि देवी वाम केशी ने अंत में फिर से प्रार्थना करके महादेव का अभिषेक कर दिया था।
“भोलेबाबा की जय हो!!! आज आपकी अति कृपा रही। महादेव की सेवा में क्या नए वस्त्र अर्पित करूँ?”
“नही नंदी, तुम से दो प्रश्न करूँगा और उनका उत्तर बिना किसी किंतु-परंतु के देना।” महादेव ने अति गम्भीर होकर कहा, “नंदी, क्या तुमने गिरिगंगा में देवी पार्वती के टूटे हुए केश, पूजा की थाली, गिरा हुआ कुम कुम और अन्य सामग्री, विशिष्ट प्रक्रिया के साथ विसर्जित कर दी थी? अगर नही, तो आज्ञा का पालन क्यों नही हुआ?”
सरलता- भक्ति का एक नाम सरलता भी है। इस प्रकरण में उल्लेख किया गया है कि किस प्रकार महादेव की दुसरी जटा खोलते हुए, माँ जगदम्बा के केशों की एक लट खिंच कर टुट गयी थी और पुजा की थाली गिर गयी थी। और महादेव ने नंदी को कुछ आज्ञा दी थी।
To be continued…
सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
अगला क्रमांक आपके समक्ष 16th-July-2021 को प्रस्तुत होगा।
The next episode will be posted on 16th-July-2021.
Feature Image credit – Maheshwar , a 9yr old dedicated artist. In this post I have used his painting. It is done with water colors. May Almighty bless him with his desired destiny.
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