सब ओर से थपेड़े,
हर दिशा में कोलहल
न अंतर में शांति,
न हरियाली ही बाहर
जब तक सब
पड़ा रहा गहरे नीचे,
दबा ओर अन दिखा
न पहुंची कोई दुर्गन्ध,
न दिखी इसकी भयावहता
तब तक मन
साथ देता रहा
ऊपरी सतह पर जी लेने को
दुनिया की मदिरा
घूँट घूँट पी लेने को
सालों निकल गए इसी नशे में
न मन बोला, न तन बोला
न ये रोया न वो रोया
अब जब
तन मन कसमसाया
दर्द, पीड़ा से कुछ छटपटाया
और
थोड़ा आत्मिक साहस आया
तो गोता गहरे में लगाया
आध्यात्म की पैनी कुदाल ले
अपने अंतर बाहर का
खुद से
एक छोटा सा
सफाई अभियान चलाया ll
कुदाल चलने लगी
प्रहार होने लगा
अब तलक था ढका
सब बिखरने लगा
काली तमस की
पकड़ और जकड़ से
जो जमा था सदियों से
अब पिघलने लगा
दबा होगा न जाने कब से
अंतर की अथाह परतों में
अब आने को बाहर
मचलने लगा
तो
पड़ने लगे…..
सब ओर से थपेड़े
हर दिशा में कोलाहल
न अंतर में शांति,
न हरियाली ही बाहर
🌹 जय श्री हरि 🌹
Does it happen to you also that suddenly your drawbacks, weaknesses , flaws, incompleteness, put so much pressure that suffocation, uneasiness, discomfort, starts to take a toll.!!! To you your physical illness seems a sin.
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