जैसे दाल, चावल, नमक, हल्दी आदि सबको अलग-अलग डालने के बावजूद अच्छे-से पकी हुई खिचड़ी में से इन्हें अलग कर पाना नामुमकिन है, वैसे ही ये सृष्टि एक आध्यात्मिक खिचड़ी है। यहाँ हर चीज़ भिन्न मालूम पड़ती है पर हर एक चीज़ अलग होते हुए भी प्रकृति में एकाकार रूप से समाहित है। सूक्ष्म हो या विराट, किसी भी वस्तु को प्रकृति से अथवा एक दुसरे से भिन्न कर पाना नामुमकिन है।

 

ये जो चित्त की अग्नि है ना?

ये ठन्डे झील का पानी है।

मणिपुर से सहस्रार को चूमती

इसकी प्रज्वलित लपटें

क्षीर-सागर की लहरों से बनी हैं!

 

ये जो साधक कोई वृत्तियों को शुद्ध करता है ना?

अरुणाभ सूर्य-से तेज का भागी हो जाता है।

पर दैदिप्यमान उसके हर रोम से

चंद्रमाँ की पिघली शीतलता

रिसती रहती है बूंद-बूंद!

 

ये जो सनातनियों का संन्यास है ना?

विचित्रता की पराकाष्ठा को लांघ चुका है।

मूरख कहता है,

त्याग-भाव संन्यास कहलाता है।

भूतिया शब्द है!

समन्वय और वैराग्य के बीच में

किसी योगी-सा सम बैठा है संन्यास —

ठीक वहाँ जहां कल्पों से ध्यान बैठता है।

समन्वय, क्यूंकि —

हर किसी को अपना लेना भी संन्यास है।

यहां जिसने सबको त्यागा

वही सबको अपना सकता है।

और जिसने सबको खुद में समा लिया

उसके पास त्यागने को बचा ही क्या!

 

अनित्य चंचल है — चित्त की तरह।

 शाश्वत गहरा है — आत्मा की तरह।

 

ये प्रकृति एक जादुई रस्सी है!

जिसके एक सिरे की गांठ

दुसरे सिरे पर खुलती है!

ये अपने दोनों चरमो में

एक हो जाती है। 

 

सृष्टि का विभाजन ही

उसे कई गुणा बढ़ाता है।

 

यहां हर वियोग से

एक शून्य पनपता है।

ताकि शून्य के गर्भ से

पुनः संयोग जन्म ले सके।

 

विध्वंस के वक्ष पर

सृष्टि खिलखिलाती है।

 

भीतर धड़कती प्रकृति

बाहर की आपदा और

सम्पन्नता की जननी है।

 

साधक खुद को खोकर ही

खुद को प्राप्त हो जाता है।

 

विश्व विष्णु में है

या विष्णु विश्व में?

प्रह्लाद अपनी कायनात को

नारायण के भीतर ले गयें,

या नारायण को उस कायनात में

खम्भे के भीतर ले आएं,

इस जादुई सृष्टि में, बात दोनों एक ही है!

 

कोई हरि को अपना विश्व मान ले,

या कोई विश्व में ही हरि के दर्शन कर ले,

इस जादुई सृष्टि में, बात दोनों एक ही है!

 

ध्यान-धात्री-ध्येय रूपा!

यात्रा यहाँ त्रिकोण से बिंदु की नहीं शायद।

यात्रा सिर्फ इतनी सी है

कि त्रिकोण की जगह बिंदु दिख जाए।

जीवन-रुपी त्रिकोण का बिंदु में समा जाना

या योग-रुपी बिंदु का त्रिकोण में दर्शन हो जाना

इस जादुई सृष्टि में, बात दोनों एक ही है!

 

अनल हक़!

लहर ही गहराई है, अल्हड़ ही मौन!

तेरा ‘शिव’ तुझमे है, जान! तू है कौन?

 

#मेरी हर सही-गलत अनुभूति और हर छोटा-बड़ा बोध जिनकी कृपा से उत्पन्न और जिनकी कृपा पर आश्रित है, उन्हें समर्पित।
गुरुदेव के श्री चरणों में समर्पित।