मैं एक आज़ाद चिड़िया सी खुले आसमान में उड़ती थी
अपने बाबा के कंधे पे बैठ दुनिया देखती थी
करती थी हर वो काम जो एक बार ज़ेहन में आ जाता था
सुबह से शाम, बस खेलते खेलते गुज़र जाता था

थोड़ी बड़ी हुई तो माँ ने कहा-” कुछ काम सीख लो पराये घर जाना है “
बाबा ने कहा-” अरे नहीं मुझे इसकी परवरिश में अभी और जान लगाना है “
मैं नादान न समझी माँ की बातों की गहरायिओं को
और कोशिश करती रही छूने की आसमान की उंचाईओं को

एक दिन हार मानकर, न चाहते हुए भी, बाबा ने ढूंढ लिया मेरे लिए राजकुमार
कहा- “खूब खुश रहना और लुटाना सब पर बेइंतेहा प्यार”
कुछ दिनों में ही पता चल गया मुझे की ये मेरे सपनो का महल न था
मगर इस पिंजरे से निकलने का मेरे पास अब कोई हल न था

घर, बच्चे, रिश्ते निभाते-निभाते पता ही न चला की खुद से कब दूर हो गयी
उड़ती थी कभी अपनी मर्ज़ी से मैं, अब इस रिश्ते के पिंजरे में रहने को बस मजबूर हो गयी
राजकुमार भी अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ रहा था
बिना ये समझे की कोई उसका पीछे छूट रहा था

एक दिन अचानक कोई मिला मुझे जैसे बिछड़ा हुआ कोई हमसफ़र
न जाने क्या जादू था उसमे की अब नहीं लग रहा था मुझे फिर से उड़ने में डर
इस नए हमसफ़र ने कहा मुझसे-“मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा, चाहे कुछ भी हो “
मैंने कहा,” चल पगले, ऐस भी कहीं होता है क्या? तुम भी तो एक आम से राजकुमार ही हो “

फिर दिखाया उसने मुझे अपना वो रूप जिसे मैं शायद कई जन्मो से ढूंढ रही थी
अब न जाने क्यों मुझे अपने गृहस्थ जीवन में घुटन सी हो रही थी
तोड़ना चाहती हूँ हर बंधन को और उड़ना चाहती हूँ इस राजकुमार के साथ
उन उंचाईओं तक जहाँ कोई न पहुंचा हो

मगर फिर माँ ने कहा, “जिम्मेदारियों से भाग कर कहाँ किसी को कभी आसमान मिला है “?
मगर मैं जानती हूँ, मैं होउंगी आज़ाद एक दिन
क्यूंकि मुझे अब जाकर एक सच्चा राजकुमार मिला है

Thanks for reading. 

(PS: This poem has nothing to do with my personal life. This just came out after my counselling sessions with many Indian housewives)