अक़्सर मेरे अज़ीज़ मुझसे सवाल करते हैं, “शर्मा जी, इबादत का क्या मकसद है?”

सबसे पहले तो मैं यह बात कहना चाहता हूँ कि मेरा इबादत करने की जगहों – मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों या गिरिजाघरों – में कम जाना होता है.

कोई भी ऐसी ख़ूबसूरत और शांत जगह जहाँ पर मैं बिना किसी ख़लल के मनन कर सकूँ, मेरे लिए इबादतगाह है.

मुझे बड़ी हैरत होती है जब मैं देखता हूँ कि ज़्यादातर लोगों के मुताबिक़, इबादत का मतलब है :
(क) ख़ुदा से तिजारत करना यानि ख़ुदा को लालच देकर अपनी ख़्वाहिशों को पूरा करवाने की कोशिश करना.
(ख) अगरबत्ती या मोमबत्ती जलाना.

पर इबादत का असली मक़सद कुछ और है.

इबादत का मतलब है ख़ुदा या भगवान के करीब बैठना, उसका तसव्वुर करना, उसका शुक्रगुज़ार होना.

जैसे आग के करीब बैठने से हममें गर्मी का एहसास होता है, हममें भी आग के गुण आ जाते हैं, ठीक उसी तरह जब हम इबादत करें तो हममें भी भगवान के गुण आने चाहिए.

यदि इबादत करने के बावजूद भी आप मददगार नहीं है, आप में औरों के लिए ख़ुलूस नहीं है, दया नहीं है, आप के दिल में फ़रेब है, तो यक़ीं मानिए, आपके इबादत करने का तरीका गलत है!

~ संजय गार्गीश ~