Yes i do write my poems and sher in notebook with pen , yes yes in this digital world i use pen and paper 🙂
I have re-started writing poems after a decade, so please ignore any flaws.
Today i have written few two liners and i personally feel they are more difficult to pen down than poems.
for me in poem, there is a fixed subject/topic and there is a flow, but here it has to be precise and also should have impact.
Hopefully you will all like it.
i am not giving any translation here as i cant express them in English words, i feel them in Hindi and write in Hindi. For my poems definitely i will give translations
Though i tried to translate them with the help of google and they were so funny that i would have to put a disclaimer – read at your own risk 😉
so i dropped the idea of translation .
कितने ही अधूरे ख्वाब दफ़न हैं यहाँ
बस डर है की, मेरा दिल कहीं क़ब्रिस्तान न करार कर दिया जाए
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वो रोया तो बहुत , पर मुझसे मुँह मोड़ के रोया
कोई तो मजबूरी होगी उसकी, की मेरा दिल तोड़ के रोया
मेरे सामने कर दिए मेरी तस्वीर के टुकड़े उसने
पता लगा, मेरे पीछे वो उन्हें जोड़ के रोया
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तुम गए तो कभी सहर न हुई
रोज़ रात ही आयी, हर रात के बाद
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जब कभी तौलोगे न हमारे बीच फासलों की वजह
अपनी झूठी आन का वजन, एक बार उस तराज़ू में ज़रूर रखना
(aan-ego)
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नहीं लेती मैं इश्क़ के समुंदर में अब डुबकियां
माँ ने बचपन में सिखाया था ,ज़्यादा गहरायी में जान भी जा सकती है
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मैं किसी और का हूँ, ये मैं अच्छे से जानता हूँ
मगर वो आज भी मेरी है , ये तकलीफ रात भर मुझे सोने नहीं देती
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मेरी ख़ामोशी को तुम इज़हार मत समझ लेना
दिल टूटने के दर्द से बखूबी वाकिफ हूँ मैं , इसलिए बस इंकार नहीं करती
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मैं तैयार थी तुम पर खुद को लुटाने के लिए
गलती तुमने ये कर दी , की मेरी रज़ा लेना भूल गए
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आजकल बूंदें नहीं बरसती मेरे आँगन में
कहती हैं – तेरे अश्क़ की काफ़ी हैं तेरा घर ढाने के लिए
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अब लोग उसे दिलासा देने लगे हैं मेरे नाम से
लगता है , फिर किसी ने इश्क़ में चोट गहरी खायी है
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कहीं कुछ ऐसा हो जाता की तेरी इश्क़ की क़ैद से मेरी कभी ज़मानत न होती
दूर तलक हाथ थाम कर चलना चाहता था तेरा, काश तू किसी और की अमानत न होती
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शिद्दत से तो मैंने भी बहुत चाहा था तुम्हे
मागत तस्कीन -ए -दिल ये है की जिनकी बाहों में तुम आजकल हो, वो इंसान भी नायाब है
(Taskeen-e-dil- comfort of heart), unconditional type of love 🙂
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न जाने क्या सीखा गयी है ज़िन्दगी मुझे की अब किसी से रश्क़ ही नहीं होता
आज भी तलाशते हैं लोग संगमरमर सी मूरत
मुझे कम्बख्त किसी खूबसूरत चेहरे से अब इश्क़ ही नहीं होता
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मैं तुम्हे अपनी रूह तक ले जाना चाहती थी
तुम सिर्फ जिस्म छूकर चले गए
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कुछ ख़ास अंदाज़ रखती हूँ अपने अलफ़ाज़े बयां में
अगर नज़रों से दिल में उतर जाऊं , तो मुझे क़ातिल न समझ लेना
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कभी शिद्दत से थामो हाथ मेरा
मेरी क़िस्मत का लिखा बदलने के लिए बस इतना ही काफी है
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सुना है हर ज़ख्म की दवा रखते हो तुम ?
दिल से याद भुलाने की एक पुड़िया हमें भी दे दो ना
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मैं तुमसे पहली सी मोहब्बत नहीं मांगती
बस इतना कर दे , मेरी साँसों से अपनी खुशबु वापस ले जा
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मैं फिर से इश्क़ करना चाहती हूँ
अब ख़तम हो रहे हैं शेर मेरे
नयी शायरी के लिए , नया एक तज़ुर्बा चाहती हूँ
हाँ , मैं फिर से इश्क़ करना चाहती हूँ
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