ऊपरवाला किरायेदार 

कैसे मैं कहूं कहाँ मैं जा रहा हूँ

दूर खुद से रूठ के

कहाँ ये गई ज़मीँ कहाँ गया बदन मेरा छूट के

कभी कभी ख्वाहिशों से टूटती है नींद ये मेरी

कभी कभी आँसुओं को कोसती है दिल की बेबसी

कभी कभी खंजरों सी चीरती है तेरी रौशिनी 

हाँ खंजारों सी चीरती है

कैसे मैं कहूं कहाँ मैं जा रहा हूँ 

दूर खुद से रूठ के 

कहाँ ये गई ज़मीँ कहाँ गया बदन मेरा छुट के

तू है कोई आरज़ू, खोई दिलरुबा

कुछ कीमती, कुछ मुफ्त भी जैसे हवा

कुछ कुचलती, कुछ चूमती, खेलती, देती जला

मैं हूँ ज़रा मौत सा

कड़ा पहरेदार, बड़ा वफ़ादार, कोई हुकुम का इक्का

कभी वक्त पर बेवक्त ही, फटी जेब का सिक्का

कैसे मैं कहूं कहाँ मैं जा रहा हूँ

दूर खुद से रूठ के

कहाँ ये गई ज़मीँ कहाँ गया बदन मेरा छूट के