नमस्कार🙏 ,जय श्री हरि🌺
कैसे हैं आप सब? 😊बहुत दिनों से कुछ लिखना-पढ़ना नहीं हुआ क्योंकि, कुछ लिखने के लिए विषय ही नहीं था । मन और चित् खाली सा था ,इसलिए बहुत कुछ सामने देखने के बाद भी कलम उठाने की हिम्मत नहीं होती थी या यूं कहिए कि मन में कुछ भी बात करने की ,किसी से संवाद करने की इच्छा नहीं थी ,न मौखिक, और ना ही लेखन के तौर पर । एकांत कहिए या अकेलापन इसमें थोड़ा सा संशय है लेकिन एक समय आता है जीवन मे जब यह तय कर पाना मुश्किल होता है कि ,आप अकेलेपन में हो कि एकांत में ,मुझे लगता है एकांत और अकेलेपन में एक सूक्ष्म अंतर है, एकांत में हम घुलते हैं अपने रंगीन ख्वाबों की दुनिया में और अकेलापन हमें घोलता है बासी बेकार यादों से, एकांत का वरण आसान नहीं है। शायद यह सब के लिए बना ही नहीं, ख़ुद को अपनी गलतियों और ग़ैरतो के साथ देख पाने का जज्बा हो तो ही यह संभव हो पाता है कि आप एकांत का रस लें ,अकेलापन तो बड़ा आसान है ,अकेलेपन में हम किसी अनजान ,अदृश्य साये को साथी मानते हैं और बस उसके पीछे पीछे लग जाते हैं या तो हम उस साये को पा सकने की अधूरी तमन्ना में जलते हैं या किसी भविष्य की डरावनी मूरत के डर से भागकर अपना पीछा छुड़ाना चाहते हैं ,क्योंकि हमारे ही होश की चाबी हमारे पास नहीं है इसलिए अकेलापन हमे डसता है और हम बंदी की तरह रह जाते हैं। एकांत तो मुक्त अवस्था है अपने से भी दूर जाने की किसी भी भाव में निरपेक्ष रह सकने की अभूतपूर्व क्षमता, एकांत आशिकी है अपने आप से ,अपने ही भीतर के प्रीतम को सुन पाने और उसे आलिंगन कर सकने की स्थित से, इंसान ख़ुद से ही प्रेम करता है और ख़ुद से ही नफरत किसी दूसरे व्यक्ति/ वस्तु/ स्थित का इसमें कोई रोल नहीं ,क्योंकि सारे रसों का आनंद वह अपनी ही काया से करता है यह तो निर्भरता है जो हमें बाहरी संसार में नचाती है जब तक हम यह सीख नहीं जाते कि ख़ुद में रमना कैसे हैं ,और बाहर की निर्भरता से ऊपर कैसे उठना है तब-तक ,जब- तक स्थिरता नही आती जीवन मे। ख़ुद का ख़ुद से मिलन ही ख़ुदा का दीदार है। उम्मीद है कि इस खालीपन, एकांत और अकेलेपन के बीच में मैं जल्दी अंतर को खोज सकूँ और अपने सच की तलाश में अग्रगामी होऊं।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ,मा कश्चित दुःख भाग्भवेत’
ॐ स्वामी नमो नमः⚛️🕉️👏
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