मेरे महादेव… वो बचपन जैसे महकते हैं | जैसे अभी-अभी बारिश रुकी हो, हल्की-सी धूप निकल आयी हो घर के मुन्डेर पर और बच्चे, खुशी से सराबोर, खेलने के लिये निकले हो बस अभी-अभी | जो कुछ देर पहले तक उदास बैठे, खेलने की आस छोड़ चुके थे, अचानक उनके गले में मानो सप्त रागिनियाँ चहक उठी हैं |

मृत्युंजय का ख्याल भी बस कुछ-कुछ उन्हीं किलकारियों-सा चहकता है मेरे मन में | और मेरे स्वामी….वो बचपन जैसे महकने लगते हैं |

मेरे श्री हरि …वो जाड़े की धूप जैसे उतरते हैं | कड़ाके की ठंड में जब किड़किड़ा कर दाँत काँपते हैं और चमड़ी सफ़ेद पड़ जाती हैं तब उपर उस नीली रजाई से झाँकती हुई जाड़े की धूप उसे छू कर सुनहरा कर देती है | चमड़ी को नहलाती हुई पीली धूप अंदर की ओर रिसती हुई मन में उतर जाती है |

और मेरे रुद्र…वो भी जाड़े की धूप जैसे मन में उतरते हैं- धीरे-धीरे रिसते हुए |

मेरे नारायण….वो पहली मोहब्बत-से निखरते हैं | जब इश्क पहली दफ़ा आपको अपनी आगोश में लेता है और आप धीमे-धीमे उसकी आँच में पिघलते हो | पहली बारिश में भीगते हुए जब उनके होने का एहसास आपकी रूह पर चाश्नी बिखेर देता है, आपके झुकी पलकों के नीचे सिन्दूरी शाम ढलने लगती है और आप निखर जाते हैं|

जब-जब अपनी झुकी नज़रें उठाते हैं ना…मेरे आदिगुरु भी पहली मोहब्बत जैसे ही निखरते हैं …

मेरे शिव…मेरी हक़िकत भी है और मेरा सबसे खूबसूरत ख्वाब भी…

हरि-हर महादेव ! 💙💙

स्वामी 💙💙