सुबह उठते ही देखती हूँ मैं
निष्प्रभ धुँधलके की पर तों वाली वजनी धुँध
अति विशाल शक्ति स्रोत सूर्य की किरणों को
जो रोक रही है पृथ्वी पर आने से।
फलस्वरूप दम घों टू सड़कें
घातक अनिष्टकारी हवा
मास्क लगाए बेचारे बेबस बच्चे
शुद्ध हवा को तरसते बीमार और बुजुर्ग
जहरीला ग़ुबार है
सोंधी बयार की जगह।
अंत स में प्रश्न कौंध।
अपनी ही प्रजाति को मानव
नष्ट करने पर उतारु है क्यूँ?
मैं सुन रही व्याकुल हृदय की पुकार और
सिसकी माँ प्रकृति की कंही दूर
लक्षण हैं क्षरण के हर सुं
अन्तर्भास सा हुआ
विचार आया दूर कहीं जाने का
दूर इन चौड़ी सड़कों से गलियों से मजबूत पुलों से
दूर दूर तक तक फैले इस जंगल से।
सुदूर किसी प्रांत में
मानव से रह गया जो अनछुआ हो
जंहा जीवंत कर सकूँ स्वयं को
जंहा चिडियों की चहचहाहट से जा ग़ु jaa
सुरीली धुन बजाती बयार हो
जोर जोर से बजते कार के भोंपू और
कान फोड़ संगीत की बजाय
शांत वायु राशि मंद मंद लोरी सुनाएं
मुझे चैन की नींद सुनाएं संग
मीठा एक सपना दे जाए
प्रदूषण रहित यह जग हो जाए।
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