I had written the first few paras of this during the start of the second wave when I lost a few very dear friends very quickly .And yet in interactions with a number of friends and colleagues a lot of what I heard was criticism , helplessness and constant cribs .
I soon figured gossip and endless cribbing never ever brought any happiness or joy . They infact clouded the mind more and bred more helplessness and negativity . Instead of waiting for the pandemic to be over and keeping my own head buried in the sand – I got involved with a few active volunteering efforts – and the amount of purpose and meaning it brought to me was indescribable.
I asked myself why is it that so many of us with very comfortable lives limit ourselves to just cribbing whereas a lot of very common and ordinary people go out and devote everything they have ? Whats the least one can do ? In these gloomy and dark times atleast bring a smile to those around you? A small act of kindness can go a very long way …and sometimes beyond our imagination .
महामारी के विकट संकट में आपने क्या खोया आज
क्या जीवन में पहली बार चाय का कप धोया आज ?
क्या नौकर के न आने से झाड़ू खुद लगाया
या वह भी न करके सिर्फ whataspp joke बनाया
beauty parlour न जा पाने के गम से कुछ लोग हैं बीमार
कुछ के दुख का कारण है मोदी या फिर दीदी सरकार
WFH पर भी लोगों ने निरंतर की यहाँ फ़रियाद
lockdown क्यों नहीं खुलता प्रशासन है बरबाद
gym चाहिए mall भी restaurant में खाना खाना है
शादी है त्यौहार है फिर mask क्यों लगाना है
CHINA की लापरवाही है ,हमें किया परेशान है
कब से कह रहे हैं अन्यायी भगवान् है !!!
लेकिन हम में से कितनों ने कोई अपना खोया है
अकेले शमशान में खड़े खड़े अस्थियों को पिरोया है
आंसुओं को भी साँसों के साथ mask में दबाया है
एक oxygen cylinder पर पूरा अस्तित्व लगाया है
कितनों की साँसों पर हर पल लटकी एक तलवार है
कितने दवा की एक गोली , एक सुई को लाचार है
ढल गए वे सूरज जिनसे ज़िन्दगी रोशन थी हमारी
कितनों के आँखों के तारे ले गयी ये महामारी
Doctor और nurses ने दिन रात एक कर डाला
छटपटाते रोगी ,शोकग्रस्त परिवार सभी को संभाला
असंख्य मृत्यु शोक हाहाकर के बीच उनके मन पर भी हुए प्रहार
अपने रोग और दुःख भूल बने वे मानवता के आधार
असाधारण आशादीप बने कुछ साधारण से लोग
उनका उत्साह काम न कर पाया कोई भी भय या रोग
निःस्वार्थ भाव से उन्होंने हज़ारों की जान बचाई
इंजेक्शन हो या oxygen जान पर खेल कर पहुंचाई
तन से मन से जीवन धन से इन्होंने योगदान दिया
हर जटिल कठिनाई का यथासंभव समाधान दिया
संसाधन और साधन जोड़े असंभव को संभव बनाया
सेवा और समर्पण का अनुपम दृष्टांत दिखाया
क्यों यह लोग सुख सुविधा सुरक्षा के पीछे पीछे न भागे थे ?
क्यों इन्हीं के हृदय में खिंचे वसुधैव कुटुम्बकं के धागे थे ?
क्या यह प्रेरणा नहीं श्रेष्ठ्तम , अपने कदम बढ़ने की
अपना स्वार्थ भूल कर कुछ क्षण , अपनों के लिए कुछ कर जाने की ?
किसी का बने बुलंद हौसला किसी दिल में उम्मीद जगाएं
कम से कम किसी उदास चेहरे पर एक मुस्कान तो लाएं
A quote from George Bernard Shaw (Upaya Zen Center newsletter):
“this is the true joy in life: being used for a purpose, recognized by yourself as a mighty one: being thoroughly worn out before you are thrown out on the scrap heap. Being a force of nature instead of a feverish selfish little clod of ailments and grievances complaining that the world will not devote itself to making you happy”
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