एक लो एक मुफ्त

पत्थर तोड़े हथौड़ा
घास काटे हंसिया
आसमान से जब गिरते तारे
साथ निभाता कौन?
एक लो, एक मुफ्त
हर, एक लो।

गुप्त से गुप्त कहानियां में
मगन रहता है जब मन
चुप चुप बैठे उलझनों को
खोल देता है वो कौन?
एक लो, एक मुफ्त
हर, एक लो।

तड़प तड़प के तन्हा बहके
बरसात में कोई झरना जैसे
गोदी में ही बैठकर
आसमान से प्यास बुझाता कौन?
एक लो, एक मुफ्त
हर, एक लो।

दो दो करके बोले तोता
चारो तरफ दिखते सिर्फ झूठा
राख से भर लिए तन और मन
तो फिर क्यूं ये आवारापन?
एक लो, एक मुफ्त
हर, एक लो।

चार दिन का जीवन है ये
चार दिनों का जुदाई
चारो तरफ से आई ग्लानि
और प्यार की वादे भूली बेचारी।
एक लो, एक मुफ्त
हर, एक लो।

फिर कब आए, फिर कब आए
बोलने लगे है वन की पत्ते
हाल पिया की मगन ही जाने
न जाने समशेर।

कौन थे वो? कौन थे?
पूछते चतुर नरनरी
मुरख बन के बैठा समशेर
छोर के ढाल तलवारी।
एक लो, एक मुफ्त
हर, एक लो।

राख से भरा इस टूटी बंशी से
आज निकला क्या अनोखा सुर
लोग कहते आवाज़ है शेर की!
और शेर कहे,
प्रणाम, बहादुर!

हर हर महादेव

Inspired by the song Ek lo, Ek Muft from the movie Guru

P.S. Corrections are very welcome, this is my first attempt at writing in Hindi.

Picture: the ‘bay.