एक शाम की यारी 

चेहरे से नाम और संपर्क पता कर लेने वाली तकनीक इस दुनिया में कब आएगी ? क्या कभी आएगी भी ? शायद ऐसी तकनीक पहले से ही मौजूद हो पर गोपनीयता को बचाये रखने के लिए संग्रक्षित हो ? भगवान जाने। फ़िलहाल रात हो चुकी और मैं थक गया हूँ पर बिस्तर में यूहिं पसर जाने का मन नहीं कर रहा तो सोफे में बैठा एक तस्वीर देख रहा हूँ जो खुदान-खास्ता मेरे पास रह गयी। कई नए तजुर्बे हुए आज ,पर एक ऐसे रेल यात्री की तरह महसूस कर रहा हूँ जिसका हमसफ़र यात्रा के दौरान ही कहीं छूठ गया।

बॉम्बे में एक नया रिसोर्ट खुला है जिसकी विशेषता यह है कि यह एक भूमिगत समुद्री रिसोर्ट भी है। आज उसके उद्घाटन समारोह में शामिल होने मैं वहाँ गया था। जिस अख़बार के लिए मैं बतौर पत्रकार काम करता हूँ उसने मुझे इस रिसोर्ट के बारे में एक लेख लिखने का जिम्मा दिया और उसके अंदर प्रवेश का एक टिकट पास ख़रीदकर दे दिया कि जाओ अच्छे से निरिक्षण करके आओ और हमारे अखबार के लिए एक बेहतरीन लेख लिखो। मेरे बॉस ने मुझे कहा ,”इसे अपना बोनस समझो।”

क्या मुझे वास्तव में इस रिसॉर्ट में जाने का अनूठा अनुभव प्राप्त करने में दिलचस्पी थी? काश होती ! पर जीवन की बेड़िओं ने मुझे यूँ टाँग रखा था की कोई मुझे मुफ्त में वर्ल्ड टूर भी कराता तो मैं शायद नहीं जाता। 

मेरा मर्ज़ कुछ अलग न था पर जीवन के कुछ कड़वे सच मेरी रूह की विगलांगता बन गए थे पर मैं आज एक ऐसे व्यक्ति से मिलने की तीव्रता से पूरी तरह से अभिभूत हूं, जिसने मुझे अपने सभी दुखों की व्यर्थता का एहसास कराया।

मेरे जेब में एक डायरी और कलम लिए ,गले में पत्रकार का पहचान टाँगे ,मैं अटलांटिस अंडरग्राउंड सी रिसोर्ट पहुंचा। इस रिसोर्ट की ऊपरी ईमारत आलीशान है ;शीशे से बना एक बड़े से गुम्बद के आकार में बनी ये ईमारत भूमि के विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई है और वाकई एक वास्तु चमत्कार है चूँकि ये पूरी तरह समुद्र के ऊपर और नीचे स्थित है। केवल देखते ही किसी को भी विस्मितता में भिगोकर रख देना का इसमें पूरा सामर्थ्य है। 

भीतर से भी ये वैसी ही आलीशान है कि आंखें चारों ओर से चौंधियाँ जाएं। ऊँची छत में लगे बड़े -बड़े चमकीले झालर ,कीमती चित्रकारी और मूर्तियों से सुसज्जित दीवारें, और फर्श और छत पे नायब नक्काशी। 

बहुत से लोग अंदर आ -जा रहे थे। सारी व्यवस्था को देखने के लिए रिसोर्ट के कर्मचारी भागम -भाग कर रहे थे।  निचली मंजिल के भी नीचे जाकर एक भूमिगत एक्वेरियम है जो आकर्षण का मुख्य केंद्र है। वहाँ जाने के लिए अलग से पास लेना पड़ता है पर शुक्र है मेरी पत्रकारिता की नौकरी का कि मैं वहां मुफ्त में जा सकता था। मैं नीचे जाने के लिए लिफ्ट में चढ़ा। 

अंदर पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि पूरे स्थान में मंद रोशनी का वातावरण है , धीमा जैज़ संगीत चल रहा है, और पूरी जगह में दीवारों के बदले चारों तरफ सिर्फ एक्वेरियम था जिसमे बड़ी -बड़ी समुद्री मछलियाँ तैर रही थी। 

वेटर ने आते ही मुझे ड्रिंक के लिए पूछा। कोल्ड -ड्रिंक, जूस और कुछ स्नैक्स लिए वो खड़ा था और मैंने अपना सामान्य मैंगो जूस ले लिया। उद्घाटन था इसीलिए कुछ चीज़ें जो वेटर दे रहे थे वो मुफ़्त थे वरना ऐसी आलिशान जगह में उबला अंडा भी किसी आम आदमी की जेब में छेद कर सकता है। 

मुझे अपने लेख को हिट बनाने के लिए इस जगह के बारे में सही से पता करना था। अगर रिसोर्ट का मैनेजर दिख जाता तो उससे एक साक्षात्कार की गुजारिश करता। 

मैंने जूस को एक टेबल में रखा और रिसोर्ट के बारे में मेरी कुछ-कुछ टिप्पणियों अपनी डायरी में लिखने लगा। मेरी आँखें कागज़ से ऊपर वापस जब अपने आस -पास देखने लगी तो मैंने देखा की एक युवती मुझे घूर रही थी। जब मैंने उसकी ओर गौर गया तो उसने अपना मुँह मोड़ लिया। इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए मैं एक्वेरियम में तैरती मछलियों को देखने लगा। मैं मन-ही -मन सोच रहा था की क्यों मुझे ये लेख लिखने का जिम्मा मिला। वहां सब कुछ शामदार था पर मेरा मन लग नहीं रहा था क्यूंकि मैं अपने मर्ज़ से वशीभूत था और न ही मुझे इन मछलियों के बारे में कुछ ज्ञान था। 

पर फिर भी जब मैंने एक्वेरियम के अंदर कुछ देर जांख लिया तब आँखें फिरसे आस -पास की चीज़ों की तरफ घूमने लगी। क्या देखता हूँ ? वो ही युवती फिर मुझे देख रही थी।  जैसे ही मैंने  उसकी तरफ नज़र दौड़ाई उसने फिर अपना मुँह मोड़ लिया। मेरे स्वभाव ने मुझसे पूछा कि क्या वो मुझे देख रही थी या मेरे पीछे किसी और को ? पीछे देखा तो कोई नहीं था, क्यूंकि मैं तो वैसे भी एक कोने में खड़ा था। तो क्या मैं उसे चोर दिखता हूँ, या मैंने शेविंग सही से नहीं करी, या मेरी कोई और बात थी जो उसे अजीब लगी हो? ये ही सब अधिक सोचते -सोचते मन हुआ की वाशरूम में खुद को एक बार देख आऊं की सब ठीक तो है?

इतने में हड़बड़ी में चलते-चलते मेरा एक टेबल से पैर टकराया और मैं फिसल कर छाती के बल नीचे गिर गया। जो टेबल में काँच के भरे गिलास रखे थे वो टूट गए और सारा जूस मेरे कपड़ों में गिर गया और मेरी जेब में रखी डायरी भी भीग गयी। तुरंत वो ही लड़की मेरे पास आई, और उसने कहा ,” ओ माय गॉड ! आर यू फाइन ?” कुछ और लोग आये और मुझे उठने में सहायता करने लगे।  “आप ठीक तो हैं ?”, सब पूछ रहे थे।  मैंने हामी भरते हुए कहा “मैं ठीक हूँ। ” जब सबको पता लग गया की मुझे कोई चोट नहीं लगी है तो इतने में वो लड़की रुमाल लेकर आई और मुझे पोछने लगी ये कहते हुए कि ,“प्लीज लेट मी हेल्प यू।” पर जब सिर्फ रुमाल से साफ नहीं हो रहा था तो फिर वो कहती है ,”मुझे लगता है आप वाशरूम जाकर खुदको पानी से साफ कर लीजिये।” 

मैं वाशरूम गया और पानी से दाग धो लिए पर उस युवती के आशीष से मैं कुछ-कुछ हिल सा गया। बाहर आया तो वो वहीं पास में खड़ी थी और  वो मेरे पास आयी और मुझे देखकर कही ,”हाँ अब बेहतर हैं। अब थोड़ा साफ़ हो गया है। “

“हाँ अब थोड़ा साफ है।”, मैंने कहा। 

“शुक्र है आपको चोट नहीं आई। “

“जी आपका बहुत -बहुत शुक्रिया। मैं वाकई शुक्रगुज़ार हूँ। “

“अरे , ये तो कुछ भी नहीं है पर अगर आप…क्या मैं आपको ‘तुम’ बुला सकती हूँ ?”, उसने पूछा। 

“जी बिलकुल। जो भी आपको सूट करे। ” 

तो मैं कह रही थी की अगर तुम बुरा न मानो तो क्या हम इस जगह को साथ में घूम सकते हैं? मैं भी अकेली  हूँ और मुझे लगता है कि तुम भी अकेले हो ।”, जब उसने ये कहा तो मैं अपना सारा मर्ज़ भूल गया। मैं क्या था ,क्या हूँ ,मेरा क्या होगा , मैं सब भूल गया।

“तुम क्या काम करते हो ?”, उसने पुछा। 

“मैं एक पत्रकार हूँ और यहाँ इस रिसोर्ट के बारे में एक लेख लिखने के उद्देश्य से आया हूँ। और आप क्या करती हैं?”

“मैं एक समुद्री जीवविज्ञानी हूँ। और प्लीज मुझे ‘आप’ मत कहो। मुझे ‘तुम’ कहलाना पसंद है। “

“अच्छा ठीक है।  तुम्हारा नाम क्या है ?”

उसने गंभीरता से उत्तर दिया, “डार्लिंग व्हाट्स इन अ नेम ! पर तुम मुझे अलीशा बुला सकते हो। “

“तुमसे मिलकर अच्छा लगा अलीशा। मेरा नाम विजय है। “, ये कहते हुए मैंने अपना हाथ उससे हाथ मिलाने के लिए आगे किया। 

उसने भी हाथ मिलाया पर कहा ,”क्या मैंने तुमसे तुम्हारा नाम पूछा ? मैंने कहा न नाम में क्या रखा है। “

“अरे नाम से ही तो पहचान …” उसने बीच में ही मेरी बात काट दी और कहा ,”चलो मैं तुम्हे सब जगह घुमाती हूँ हालाँकि मैं खुद यहाँ पहली बार आई हूँ पर क्या पता मैं तुम्हे तुम्हारे लेख के लिए कुछ बिंदु बता सकूँ। आओ चलें।“

हम एक्वेरियम के इर्द -गिर्द चक्कर लगाने लगे। वह मुझे वहाँ तैर रहे विभिन्न जलीय जीवों के बारे में बता रही थी। ” देखो  ये है वाइट टिप शार्क। ये सबसे बड़ी शार्क में से एक हैं, जो लगभग सात से आठ फीट लंबी होती हैं।” फिर दूसरी शार्क की तरफ ऊँगली करके उसने कहा ,” ये ‘सिल्की शार्क’ कहलाती हैं जो हिंद महासागर के उष्णकटिबंधीय जल में रहती हैं। ये दुनिया के अन्य स्थानों में भी पाई जाती है। इसका धूसर रंग और इसकी चिकनी, रेशमी त्वचा अन्य सभी शार्कों में अद्वितीय है।” फिर आगे और शारकों की तरफ ऊँगली करके बोली ,” देखो ये है ‘ब्लू शार्क’, और ये वाली   वाली अद्भुत है, इसका नाम है ‘हैमरहेड शार्क’। इसका चेहरा एक हथोड़े की तरह दिखता  है।” आगे चलकर भी हमें और शारकें दिखी।  वो सबके नाम और अद्वितीय विशेषताएं मुझे बताए जा रही थी।  

मेरी डायरी भीग के ख़राब हो गयी थी तो जो भी नाम और तथ्य वो मुझे बता रही थी उसे मैं अपने फ़ोन के नोटपैड में टाइप कर रहा था ताकि अपने लेख में उनका जिक्र कर सकूँ। मैं  चलते -चलते टाइप कर ही रहा था कि देखता हूँ की वो पीछे ही रह गयी। वो एक जगह खड़ी थी। उसकी आँखें खुली हुई थीं और वह एक शार्क को देख रही थी, जो दिलचस्प रूप से एक्वेरियम के अंदर उसके बगल में तैर रही थी और वह भी, जैसे कि वापस उसे घूर रही थी। उस वक्त वो मुझे किसी हुस्न की जलपरी की तरह मालूम हुई और मैं अपने-आप  को उसकी एक तस्वीर क्लिक करने से रोक नहीं पाया। 

पर फिर कुछ बड़बड़ाने लगी, और अपनी आँखों को झपकाए बिना, कांच की दीवार की ओर बढ़ने लगी जिसने उन दोनों को अलग कर रखा था। और फिर उसने शीशे को उस स्थान पर छुआ जहां शार्क का चेहरा था। उसने धीरे से कांच पर अपना हाथ लहराना शुरू कर दिया मानो कि शार्क को धीरे से सहला रही हो। शार्क ने फिर अपना मुंह चौड़ा खोल दिया जैसे कि वह भी उससे कुछ कह रही हो। 

कुछ पलों के बीत जाने के बाद मैंने उससे कहा, “अलीशा ? अलीशा ? कहाँ खो गयी हो ?”

जैसे कि वह एक ट्रान्स से जाग गई थी, वह थोड़ा कुलबुलाही और अपने और अपने परिवेश के प्रति सचेत हो गई। वो अब भी कुछ तल्लीन दिख रही थी। उतने में वो शार्क वहाँ से चली गयी। फिर अलीशा ने मुझसे पूछा,”तुमने सुना उसने क्या कहा ?”

मैंने जवाब में पूछा, “किसने क्या कहा ?”

“किसने? इस शार्क ने और किसने !”

“पर क्या सुना ?”, मैंने फिर पुछा।

थोड़ा निराश होकर उसने कहा, “तुम्हें पता है मुझे विश्वास है कि मैं इस सभ्यता की नहीं हूँ।”

मैं कुछ नहीं बोला पर फिर उसने कहा ,” चलो बार चलते हैं और कुछ पीते हैं। “

“पर मैं शराब नहीं पीता।”

“अरे तो जूस या मॉकटेल पी लेना। मैं पैसे दे दूंगी। “

“अरे नहीं ऐसा ठीक नहीं हैं।  दोनों अपना-अपना भुगतान खुद करेंगे। “

और फिर वो तेज़ी से चलने लगी और तब मुझे ज्ञात हुआ की वो थोड़ा लड़खड़ाकर चल रही है। मैं भी बार की और उसके पीछे-पीछे चलने लगा और फिर मैंने उससे पूछा ,”तुम्हे हुआ क्या है ? ऐसे लड़खड़ाकर क्यों चल रही हो ?

वो एक पल के लिए मौन हो गयी और फिर उसने कहा, “प्रोस्थेटिक लगा है।” बस इतना कह कर वो चुप हो गयी। मैंने भी क्यों, कैसे,ये सब पूछना लाज़मी नहीं समझा कि कहीं उसको बुरा लग जाये।  

हम बार पहुँचे और बैठ गए। मैंने कहा, “पता है न की बार में ड्रिंक्स के अलग -अलग शुल्क हैं और ये काफी मेहेंगी हैं। “

वो मुझे मनोरंजक तरीके से देखने लगी और फिर बोली ,’हाँ यार काफी मेहेंगा है। पर मैं तो यहाँ दो दिन और एक रात की बुकिंग करा रखी हूँ। मुझे तो खाने से लेकर पानी भी मेहेंगा ही पड़ेगा। इसीलिए मैं तो एक ड्रिंक लुंगी। तुम कुछ लोगे ?”

“मैं तो जो मुफ्त है बस वो लूंगा। मुझे मेरे बॉस ने कहा था घर से अच्छे से खाकर जाना क्यूंकि यहाँ सब कुछ मेहेंगा है। पर शुक्र है की अपने उद्घाटन में ये कुछ ड्रिंक्स और स्नैक्स मुफ्त दे रहे हैं। मैं उन्हीं से काम चलाऊंगा।”

“तुम्हे कुछ लेना है तो ले लो मैंने कहा न मैं भुगतान कर दूंगी।”

“अरे कृपया ऐसी बात का सुझाव न दो अलीशा।”

“ठीक है तुम कहते हो तो। “

उसकी वाइन आई और मेरा जूस आया और फिर उसने एकाएक मुझे पूछा,”तुम दुखी क्यों हो ?”

मैं इस सवाल से स्तब्ध रह गया। “दुखी ? नहीं तो। मुझे तो इस जगह में मज़ा आ रहा है। ” हाँ मैं अपने मर्ज़ के चंगुल में कई दिनों से फसा था और लग रहा था की आज के दिन भी फसा रहूँगा पर अलीशा के संग चलने , घूमने -फिरने से मैं उसे भूल रहा था। पर कहीं न कहीं वो था, तो उसने ठीक ही पूछा।  

“उसने आगे कहा हाँ मुझे पता है। तुम्हारी आँखें बता रही हैं। बताओ क्यों हो ?” और फिर उसने सीधे मेरी आँखों में देखा लेकिन क्षण भर बाद मैं घबरा गया और बग़ल में देखने लगा। 

“साफ़ दिख रहा है। तुम दुःखी हो। तुम मुझे बता सकते हो कि क्या हुआ है।” वो अपने हाथ मेरे पास लाई और दोनों हाथों से मेरी हथेलियों को छुआ। फिर उसने मेरी आँखों में इतने प्यार से देखा जैसे वे आँखें नहीं बल्कि करुणा का सागर हों। मैंने जो किसी को न कहा था, यहाँ तक ​​कि अपने माता-पिता को भी नहीं, उसे मैं उसको व्यक्त करने से खुद को रोक नहीं पाया।

अलीशा पिछले कुछ हफ्तों से मैं बहुत उदास महसूस कर रहा हूं। मुझे यह पता चला है कि मैं एक तरह के अवसाद से ग्रसित हूँ और इसीलिये मैं एंटीडिपेंटेंट्स ले रहा हूं। मैंने लोगों से यह बात छुपाई है  क्योंकि मुझे डर है कि वे मुझे जज करेंगे लेकिन यह सब इसलिए हुआ है क्योंकि मेरा सात साल का लंबा रिश्ता कुछ महीने पहले खत्म हो गया। चुप्पी के एक पल के बाद उसने मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया और उन्हें थोड़ा रगड़ा। फिर उसने कहा ,”बेवज़ह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब, जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रुलाता जरूर। ये ग़ालिब ने कहा है। “, उसने कहा। 

मैंने ज़वाब दिया,”क्या खूब कहा है। “

“मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूँ और मैं दुआ करती हूँ की तुम इससे जल्दी बहार आ जाओ पर बात ये ही है कि इश्क़ या तो बर्बाद कर देता है और या आबाद कर देता है। तुम खुदको बर्बाद होने नहीं दे सकते। ” जब उसने देखा कि मैं थोड़ा भावुक हो गया हूं और मैं अपना जूस नहीं पी रहा हूं, उसने कहा,”चलो मन ठीक करो। अपना जूस पी लो। देखो इतना अच्छा नज़ारा है। सारी मछलियां जैसे नाच रहीं हो। “

“हाँ तुम ठीक कहती हो।”

फिर वो अपनी वाइन पीने लगी और मैं अपना जूस पीते -पीते अपने फ़ोन के नोटपैड में कुछ बातें संक्षेप में लिखने लगा। चारों ओर से हम एक्वेरियम से घिरे हुए थे। उसने अपनी कुर्सी पीछे मोड़ी और वाइन पीते -पीते उन् समुद्री जीवों को देखने लगी। वो उन्हें घूर-सा रही थी, मानो वह पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो गई हो, और वह खुद उस जगह की हो न कि हम नश्वर लोगों की इस दुनिया की। फिर मैं भी अपनी निजता को भूलकर उसे देखने लगा। तभी मैंने उसके गाल में आंसू की की एक बूंद देखी।

मैंने पूछा ,”क्या हुआ अलीशा ? तुम रो रही हो ?”

उसने अस्वीकृति में सिर हिलाया और फिर शांत हो गयी पर फिर एकाएक उसने कहा ,”तुम्हें पता है पिछले महीने…”

मैं उसके बोलने का इंतजार कर रहा था लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा तो मैंने पूछ लिया,”क्या हुआ था पिछले महीने ? “

वह अपना चेहरा छुपाते हुए जोर-जोर से रोने लगी। मैंने  झट से एक रुमाल पकड़ा और उसे दे दिया। “क्या हुआ अलीशा? मुझे बताओ।”

वह गमगीन थी पर फिर धीरे-धीरे उसने खुद को समेटा और मुझसे कहा , “पता है विजय।  पिछले महीने मुझे नशीला पदार्थ देकर एक आदमी ने मेरे साथ जो किया वो…मैं इतना बेहोश थी कि मुझे उसका चेहरा तक याद नहीं है। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है और मुझे माफ़ करना मैं इतनी शामदार जगह में ऐसा व्यवहार कर रही हूँ पर मैं उस आदमी के खिलाफ शिकायत दर्ज करना चाहती  हूँ। “

मैं यह सुनकर हक्का -बक्का रह गया। मैं ये ही सोच रहा था कि ऐसा क्या कहूं ऐसा की मैं उसको शांत कर पाता। मैंने उसे कहा ,”देखो अलीशा कर्म से कोई नहीं बच पाया है।  कर्म उसे उसके लिए भुगतान करवाएगा जो उसने तुम्हारे साथ किया था। मैं समझ सकता हूँ तुम पर क्या बीत रही है। ये देश अभी भी लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है। ऐसे बहुत से दरिंदे खुले -आम घूम रहे हैं।” मैं  कुछ और शब्द कहने वाला लेकिन उसने मुझे बीच में रोक दिया। 

“पहली बात अलीशा मेरे असली नाम है ही नहीं। मैंने तुम्हे अपना वास्तविक नाम बताया ही नहीं क्यूंकि अब मैं मर्दों पर भरोसा नहीं कर पाती, और मुझे माफ़ करना की मैं अपना काबू खो बैठी वो भी एक अज़नबी के सामने। मैं इस दुनिया के लिए बहुत दयालु हूं और इसीलिए लोग मेरा शोषण करते हैं। 

“अलीशा मुझे पता है कि किसी को भी ऐसी घटनाओं के बारे में बताने में बहुत साहस लगता है, खासकर जब वे आपके साथ हुई हों। मुझे तुम्हारी परवाह है और मैं यहां किसी भी तरह से सुनने या मदद करने के लिए मौजूद हूँ।”

फिर से उसने मुझे बीच में ही रोक दिया और कहा, “सुनो, मुझे जाना है। पर मुझे सुनने के लिए शुक्रिया। अलविदा। ” और मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना वह चली गई लेकिन मैं उसे जल्दी से ‘अलविदा’ कह सका था।

और वहाँ मैं बार में अकेला बैठा हुआ सोच रहा था कि अभी-अभी क्या हुआ। कुछ क्षण बीत गए और मैंने सोचा कि मुझे उसकी तलाश करनी चाहिए और उससे बात करनी चाहिए। लेकिन मैं उसे कहीं नहीं ढूंढ पाया।

उतने में रिसोर्ट का मैनेजर आता हुआ दिखा और मुझे जल्दी से अपने काम का एहसास हुआ जिसे मैं यहाँ करने आया था। मैंने कुछ मिनटों के लिए उसका साक्षात्कार लिया और उससे सभी प्रकार के प्रश्न पूछे जो एक पत्रकार के लिए महत्वपूर्ण हैं। साक्षात्कार ख़त्म हुआ तो मैं फिर यूँही अलीशा को इधर -उधर ढूँढने लगा। तभी एक बच्ची मेरे पास आई और एक रुमाल हाथ में थमाते हुए पीछे की ओर इशारा करके कहती है ,” ये उन दीदी ने दिया है। ” फिर कुछ भ्रमित होकर बोली, ” अरे ! वो दीदी अभी तो यहीं पर थी पता नहीं कहाँ गयीं। “मैं भीड़ में उसे खोजने लगा पर वो नहीं दिखी। मुझे पता था ये रुमाल उसी का भेजा हुआ है। “थैंक यू बेटा”, मैंने उस बच्ची को कहा।

रुमाल खोला तो उसमे लिखा था: ” तुम अच्छे इंसान लगे।  तुम पत्रकार भी हो। हो सके तो इस दुनिया]में औरतों का जो बुरा हाल है उस पर एक लेख छापना। मुझे तो पता नहीं कि मैं इस चोट से कभी उभर पाऊँगी या नहीं, पर मैं चाहती हूँ की किसी और के साथ ऐसा न हो।  शुक्रिया तुम्हारी इस शाम की यारी के लिए। तुमसे मिलकर अच्छा लगा।” यह पढ़कर मैंने उसे भीड़ में और ढूंढा पर वो नहीं मिली। 

शाम ख़त्म होने को आई और मैं घर को लौट गया पर उसके साथ जो घटना हुई और उसके मेरे लिए आखरी शब्द मेरे ज़हन में ताज़ा हैं।  मैं उसके मानसिक स्वास्थ को लेकर चिंतित हूँ। उसके दर्द से मैं अभिभूत हूँ।  वो विकलांग थी और उसके साथ ऐसा दुष्कर घटना हुई है।  जाहिर है वो अब मर्दों पे विश्वाश नहीं कर पाती है।  पर फिर भी वो खुद को संभाल रही है।  मुझे अपना मर्ज़ और टूटे दिल की गाथा उसके दर्द के सामने गौण लग रही है।  

अभी उसकी तस्वीर देख रहा हूँ और चाहता हूँ की काश मैं उसका मित्र बन पाता; उसकी तस्वीर से ही मैं उसका नाम और संपर्क पता कर पाता, पर ऐसी कोई तकनीक बाजार में नहीं आई हैं। शायद इसीलिये अब उसकी तस्वीर डिलीट करने का वक्त आ गया है।  वो मेरे जीवन का अब हिस्सा नहीं है। पर मैं उसका कहा काम जरूर करूँगा। इसीलिए मैं अब दो लेख लिखूंगा, एक जो मुझे लिखना ही था और एक जो अब मुझे लिखना ही है।  

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