औरत-औरत
कभीं-कभीं ऐसा लगता हैं कि मेरे पास धर्मदंड हो और मैं हर उस शख़्स को इसका स्वाद चखा सकूँ जो नारी के ऊपर / अबला नारी, के ऊपर बड़े अधिकार से शोषण करता हो। अफ़सोस,कि मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है और न ही हो सकता।सदियाँ बीत गयीं,हम जंगलों से आलीशान इमारतों में रहने लगे, हमारे पहनने-ओढने का ढंग पहले से ज़्यादा सुंदर और जीवन शैली आरामदेह है, लेकिन जब बात नारी सम्मान की आती है तो तो हमारी पाशविकता वहीं की वही रहती है।
मेरे निवास के ठीक सामने एक संयुक्त परिवार रहता है ,जिसमे की एक जोड़ी बूढ़ी काया, दो बच्चों की मां और उसका पति रहता है, मैं भोर में उठ के सूर्य नारायण को प्रणाम करने जाता हूँ ,तो मैं देखता हूँ कि उस भद्र नारी की दिनचर्या उसके पूर्व ही शुरू हो चुकी होती है, मैं दोपहर भोजन के बाद बालकनी में टहल भी रहा हूँ तो उसकी ड्यूटी ऑन है शाम को संध्या वंदन के उपरांत तक मैं उस कर्तव्य परायनी की मेहनत का साक्षी रहता हूं। एक सुबह ना जाने उसकेेेे घर पर क्या अनबन हुई कि उसके घर के सयाने उस पर चीख रहे थे , वो एक कोने से अपनी सफाई में कुछ शब्द ढाल बना के सामना कर रही थी, पर ,पुरुष तो पुरुष है ,उसकी बाहों में बल है ,उसकी आवाज में गरज है ,इन अब के आगे उस अबला की क्या औकात। मैं ये सब देख के बहुत क्रोधित हुआ ।

क्या हमेशा से पुरुष इतना शक्तिशाली रहा है?  या योजनाबद्ध तरीके से उसने औरत को कमजोर किया!  विश्व के सारे समाजों में माफ कीजिएगा, ‘सभ्य -समाजों’ में ये बुराई बहुत आम हैं। पुरुष को किस बात का अहंकार है कि उसके पास बाहबल है ?और नारी हमेशा से अबला है, और  ये उसका परमधर्म है कि वह पुरुष  सेवा के लिए उपलब्ध हो। कुछ विद्वान तो ऐसे हैं जो इस धूर्तता के सत्यापन के लिए श्री हरि भगवान तक का उदहारण देते हैं कि देखो श्री लक्ष्मी हरि के पाँव दबा रहीं एक औरत का धर्म है अपनी पति की सुनना। इसे दुर्भाग्य कहें कि मूर्खता ।

पुरुष को औरत की कोमल काया दिखती है उसी कोमल देह में एक कोमल हृदय भी है , जिसके पोषण से पुरुष की बाहों में बल हैं और कंठ में गर्जना है, ये क्यूं नहीं दिखता? पुरुष अपनी भूख शांत करने के लिए ही औरत के सम्मुख याचना करता है, कितना स्वार्थी है ! माँ के स्तनों से पोषण प्राप्त करने के बाद वह ये क्यों भूल गया कि इसकी अदायगी दुनिया के किसी भी वस्तु या सुख से नहीं हो सकती, उसके हृदय में यदि इस ऋण की स्मृति रहे तो वह कभी औरत से बदसलूकी न करेगा क्यों कि हर औरत माँ तो है ही।

उस औरत की लाचारी देख के मेरा मन भर आया कि ऐसा कुछ क्यों न हुआ समाज मे कि, कम से कम लोगों को औरत से बात का लहज़ा तो सिखा दिया जाता, क्यों कि गुस्से में पुरुष बस क्रोध नहीं दिखाता बल्कि वह ऐसे कठोर विषैले शब्दों को निकालता है जिसका उपचार नहीं होता , बल्कि ऐसी बातें नासूर हो जातीं है।

मैं मानता हूं कि घर मे ऐसी ऊंच-नीच होती रहती , कभी मुँह से अनाप-सनाप निकल भी गया तो उसी ज़बान से अपनी अस्थिरता के लिए क्षमा भी मांग सकते , वो मात्र और मात्र तुमसे स्नेह के दो शब्द चाहती है और कुछ नहीं, तुम्हारी याचना में वो तुम पर कुर्बान हो जाती है, सिर्फ इसलिए कि उसकी प्रकृति है पोषण की ,इसलिए नहीं कि, वह जन्मजात तुम्हारे सुख का साधन है। जो स्त्री तुम्हारे नीड़ के निर्माण में दिन-रात अपनी इच्छाओं और शरीर को गला सकती है, उसकी शक्ति और सामर्थ्य का अंदाजा तुम लगा सकते हों।
हे ! पुरुष तुम कभी इस नजरिए से देखना शायद तुम्हे अपने पुरुषत्व पर लाज आये।