बैठे रहना प्यास जगाए
भस्म होने की आस लगाए
ठाकुर बोलें या ना बोलें
सुनते रहना कान लगाए!
और भक्त की क्या मर्यादा?
धरम-करम सब ठाकुर नाम
बाकी क्या कपटी को काम?
जो सुन ले, जो न सुन जाए
सबको ये गुणगान बताए
भजन करे, भोजन न भाए
सुमिरन करते जी न अघाए!
वो दिन ठाकुर ने भी कह दी,
“भक्ति करी तो रोना ही है”
पगले को अब कौन सुझाए
भक्ति करे, और रोता जाए!
और भक्त की क्या मर्यादा?
सखियन संग बौराना नाचे
लोक समाज इसे ना जांचें!
कोई जो दो शबद सुनाए
गूंगा मन में मिसरी पाए!
ऐसी हिय में लगन लगाए
तिल-तिल करके जलता जाए
भस्म होने की आस लगाए!
और भक्त की क्या मर्यादा?
PS: देखो सखियों, मैंने कविता छोटी सी ही लिखी थी। तो आगे ये सब सिर्फ और सिर्फ the dreaded word count के लिए लिखा जा रहा है।
Image credits: Google Baba.
Kavita credits: Thakur Dada.
निवेदन है os.me से कि हम जैसे तुच्छ कवियों के सर पे जो word count की तलवार लटकती रहती है, उसको ज़रा आप हटा दें तो हम सांस ले पाएं। बाकी श्री हरि की इक्षा! जय श्री हरि! और इतने पर भी १५० पूरे न हुए हों तो बोलो,
श्री हरि भगवान की जय! जय! जय!
गोविंदा! गोविंदा! गोविंदा!
नमो पर्वतीपत्ये! हर हर महादेव!!!!
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
थोड़ा हंस लें आप सब जो सुबह से मुंह फुलाए बैठे हैं!
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