जय श्री हरि🌺🌺👏
कबीर की नज़र श्रृंखला में आज मैंने जो पंक्तियां लीं है। वे सबद श्री गुरु ग्रंथ साहिब को सुनने के दौरान चुनी। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर, बाबा फरीद ,नानक साहब आदि कई संतो की वाणी को समाहित किया गया है। मैं इस उलझन में था कि किस दोहे को उठाऊं, किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे समझ न आये बाग में बहार है कौन सा फूल उठाऊं? आखिर चुनाव तो करना ही पड़ता है तो मैंने जो पंक्ति उठायी उसके समान अर्थ वाली कई चौपाइयां और सूक्त दूसरे कवियों के भी हैं या ये कहें कि बात एक ही है ईश्वर एक ही है उसके बखान कई मुख और भाषा से हुए
‘हरि अनंत हरि कथा अनंता ,कहहिं सुनहि बहु विधि सब संता’
आज की पंक्ति:-
“तूँ तूँ करता तू हुआ मुझ में रही ना हूँ, बारी तेरे नाम पर जित देखूं तित तूँ”
भावार्थः :- जब दो का भेद मिट जाए, जब जीवात्मा परमात्मा से एकाकार हो जाए, जब साधक और साध्य के बीच फासला मिट जाए और जब चिंगारी स्वयं अग्नि का स्वरूप धारण कर ले ।आज कबीर की नज़र में प्रथम दोहा मैंने यही उठाया। कबीरदास जी की रचनाएं सबद में धूमधाम से गाई जाती हैं ,उपरोक्त पंक्तियों में कबीर का भाव रहस्य और सरलता से परिपूर्ण है । नाम जप ,सुमिरन या सिमरन की महिमा किसी से छुपी नहीं है, साधक अनवरत हरि नाम से हरि में ही समाहित हो जाता है ।स्वामी जी कहते हैं कि, ‘ आप ईश्वर को जिस स्वरुप में ध्याते हो आप उसी के जैसे दिखना शुरु कर देते हो और एक दिन उन्ही की कृपा से आप उनमें ही समा जाते हो आप ईश्वर बन जाते हो ‘
शायद यह भक्ति की चरम अवस्था है, जिसमें कबीर को अपने इष्ट की छवि यत्र तत्र सर्वत्र दिखती रही। ‘यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे’ जो हमारे दिलों-दिमाग में होता है या हमारी चेतना में जिसका प्रभाव होता है ,उसका प्रतिबिंब ही सारे संसार में दिखता है । चर-अचर जीव जगत सब में हमारी चेतना का प्रतिबिंब ही प्रकाशित है और हम उन सारी चीजों को अपने बुद्धि के स्तर पर नापते हैं, उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति या एक मन जो करुणा से भरा है उसे सभी के ऊपर मात्र करुणा और सहानुभूति ही दिखेगी ,वहीं किसी क्रोधी और अस्थिर मन वाले व्यक्ति को बस थोड़ा सा चिंगारी दिखानी पड़ेगी और वह आप पर बरस पड़ेगा। कबीर कितने बड़े साइकोलॉजिस्ट थे इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे वह अपनी फ़कीरी ज़बान में निरा देसी भाषा में सब को समझाते थे। कबीर ने स्वयं अपनी कविताओं और दोहों की रचना भी नहीं की वह उनके मुख से जो बातें निकलती थी वह छंद और कविता का रूप लेती थी। कबीर के शरीर त्यागने के बहुत सालों बाद उनके शिष्यों ने उनकी उपदेशों को उनकी रचनाओं को एकत्रित किया जो बीजक नाम से जानी गई और बाद में साखी ,सबद ,रमैनी तीन भागों में से संग्रहित की गयीं । इस उद्धरण को लिखते हुए मेरे दिमाग में एक बात याद आ गई जो मैंने स्वामी जी के इंटरव्यू के दौरान सुनी थी, अमीश जी को बताते हुए स्वामी जी कहते हैं कि जब आप पर कृपा होती है तो आप सबसे पहले क्रिएटिव होते हो या आप सबसे पहले कविता करते हो, इस बात से मैं पूर्णतया सहमत हूं और मैंने इसे महसूस भी किया है । कबीर ने कभी कलम नहीं उठाई यद्यपि कबीर कहते थे कि ‘ तू पढ़ता कागद की लेखी ,मैं कहता आँखन की देखी’ और ‘पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय’ । ऐसे था कबीर का कहना , कबीर अनपढ़ थे लेकिन उनकी चेतना ऊर्ध्व थी ,उन पर अथाह कृपा बरस रही थी।
धन्यवाद 🌺🌺🌺👏
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