कबीर के बारे में कुछ भी लिखने से पहले दो ही बातें दिमाग मे आती है, पहली जो मैंने श्री M जी की आत्मकथा “जर्नी कॉन्टिनुएस” में पढ़ी थी वो ये कि , कबीर महावतार बाबा जी के शिष्य थे | मैं उम्मीद करता हूँ आप सब जो ये पोस्ट पढ़ रहे हैं वो बखूबी क्रिया योग, परमहंस योगानंद और महावतार बाबा जी के बारे में सुना जरूर होगा, अगर नही तो कोई देरी नही हुई है आप आज या अभी गूगल कक्का से पूंछ लीजिये वो सब का हिसाब रखते हैं| बहरहाल, दूसरी बात है ये संत जन जिस काल मे आये उस वक़्त कोई न कोई रूढ़ि या कुरीति जोरों पर थी, शायद समाज कुछ चंद धर्म के जमींदारों की ज़मीन जोत रहा था और मानवता बंजर होती जा रही थी| इतिहास के पन्नो को पलटें तो कबीर का टाइम पीरियड 14वी शताब्दी से 15वीं शताब्दी के आस-पास मिलता है। मतलब अकबर या जहांगीर का शासन,
उस काल में जैसे कि हमे पढ़ाया गया कि भारत कि स्थित बहुत उम्दा थी, व्यापार , कला और साहित्य उन्नत अवस्था में थे| अकबर और बीरबल , अकबर और तानसेन की कथाएँ जगजाहिर हैं , बताना चाहूंगा कि मियां तानसेन रीवा के ही थे हालांकि उनके जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों में बहुत विवाद है|चारों तरफ उन्नति होने के बाद भी आम समाज जो पढ़ा लिखा नही था , देसी लोग जो खेती बाड़ी करते थे ,उनकी दशा बहुत खराब हुआ करती थी, पर राम नाम के हकदार तो सब थें| श्री हरि की लीला भी बहुत रहस्य और रस से भरी हैं, कोई नही कह सकता कि किस घटना का वास्तविक क्या मतलब रहा होगा | कबीर के उपदेश दरसल लोगों को सोचने पर मजबूर करते हैं , उस समय सत्ताधीशों और धर्म धुरंघरों की मिलिभगत ने आम जन से उनके सोच पाने की क्षमता पर जाल बुन दिया था| तत्कालीन पुरोहितों और उलेमाओं ने लोगों को खूब उंगलियों पे नचाया| कबीर ने जनमानस को यही दिखाने के लिए अपने शरीर का त्याग मगहर में किया जो उस वक़्त नरक का द्वार कहा जाता था, कहते हैं जब कबीर ने अपने प्राण त्यागे तो वहां केवल फूल थे।
“पोथी पढ़-पढ़ मुआ पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय”
आज दोहों की श्रृंखला में मैने ये दोहा चुना, कई बार मैं स्वयं आत्ममंथन के दौरान इस दोहे को एक्स्ट्रा वाईटमिन की तरह उपयोग करता हूँ| आध्यात्मिक यात्रा में अहंकार का आ जाना बहुत स्वाभाविक है और संभावना और अधिक होती हैं जब आप कुछ दर्जन भर किताबें पढ़ लें, मैं अक्सर घर मे अपने परिवार पिता जी या मम्मी को बताने लगता हूँ कि ऐसे ये होना चाहिये, फला शास्त्र ऐसे कहता है वगैरह..वग़ैरब..।मेरी आदत ही खराब हो गयी थी लेकिन बहुत दिनों के बाद जब मैंने माइंडफुल होके चीजो को सुलझाया तो पता चला चंद किताबें के रस को समेटने के बाद भी मैं जल्दी परेशान हो जाता हूँ और मेरी माँ जो कि देहाती औरत हैं कठिन स्थित में भी सहज रह जाती हैं| फिर मैंने जीवन मे स्वीकार्यता को स्थान दिया बजाय प्रश्न करने या अनायास वेदांती बनने के, नतीज़ा ,शांति आयी निर्णय में और व्यवहार में भी । गांव में दादी, नानी की उम्र वाली औरतों की इंट्यूशन बहूत तेज होती हैं , उन्हें नहीं पता कि मणिपूर् चक्र कहाँ है,लेकिन अथाह करुणा होने के कारण उन के स्वभाव में और सोच में एक अलग ही बात हो जाती है, मौसम साफ रहता है लेकिन खेत मे काम करने वाली दादी बोल देतीं थीं कि ”बाबू साहब आज दैउ बरसी लागत है” और सच मे शाम तक पता नहींं कहां से बादल आ जाते थे, ये कोई चमत्कार नही था और न ही उन्होंने पंचभूतों को सिद्ध कर लिया था ,ये मात्र प्रकृति के साथ एकरस दिनचर्या और स्वभाव में अथाह करुणा की वजह से था| मेरी बचपन से ही ऐसी रहस्य और भूतिया चीजों में गहरी दिलचस्पी है, तो जब कोई ऐसी बात हो तो मैं वहां शक्तिमान बन कर पहुच जाया करता और मामले की तफ़्तीश करने लगता |
“CAN YOGIES SEE THE FUTURE” वाले वीडियो में आपको याद हो स्वामी जी कहते हैं कि स्वभावा में अथाह करुणा हो और प्रेम हो तो एक बार ये संभव कि आप किसी का भविष्य देख सकें| मीरा दीदी के पोस्ट में उन्होंने एक शब्द का उपयोग किया था ”उद्धवलॉजी” ज्यादा पोथी पढ़ने के बाद एक बार ये स्थिति तो आती है कि हम सब उद्धवलॉजी बघारने लगते हैं लेकिन जल्दी ही गोपियों का प्रेम हमे असली चीज दिखा देता हैं| इस तरह कबीर के दोहे 2 पंक्तियों में जीवन का सार समझाने में सक्षम है आशा है कि इन दो पंक्तियों का सहारा आप भी अपनेेे जीवन में अवश्य लेेंगें।
जय श्री हरि🌺🌺⚛️🕉️👏👏
स्वस्थ रहें, मस्त रहें🌺🌺
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