क्या है कविता?

क्या कविता है कुछ लयबद्ध पंक्तियो में चंद शब्द सजा देना ?

क्या कविता है जन्मों के जज़्बातों को मुट्ठी-भर अल्फाज़ो में पिरो देना?

या कविता है कागज़ पर उकेरे उन शब्द-चित्रों को सप्तक के स्वरों में बाँध देना?

 

 

 

 

 

 

नाम-रूप-भाषा के जंजाल से परे

दो शब्दों के बीच बैठा 

जो अंतराल है ना?

उसी रिक्त-स्थान से

कवि की यादें झांकती हैं।

 

 

 

काली स्याही में जो भीग ना सकीं,

उन मौन-एहसासों का भी

एक घर होता है।                                                     

दो पंक्तियों के बीच की

जो सीधी खाली जगह है ना?

इन्ही में कैद होता है

कवि के मन का खालीपन।

 

 

सुर-ताल-लय-छंद की

हर बाध्यता को तोड़कर,

आलिंगन करती है

अपनी बेफिक्र बाहों से,

एक शब्द से दूसरे को।

एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति को।

जो उन्मुक्त बहती है

प्राण-रुपी सृष्टि-ऊर्जा बन।

 

 

 

 

वही है कवि की असली कविता…

जिसे पढ़ने वाला कोई नहीं होता।