बावरी! लोग कहते हैं,
तेरी किस्मत काली है।
ज़िन्दगी भर बस बोझ रही,
तिनका न तूनें कमाया।
इश्क़ के नाम पर
रौंधी गयी औंधेमुंह,
प्रेम कालकूट बन आया।
कल्पों से विधवा तू!
धूसर-सा फटा आँचल लहराया!
बावरी! तेरी किस्मत काली है।
हर कर्म में तेरी लगन रही।
दुनिया बस फल में मगन रही।
तिल-तिल लहू तेरा बहा,
पद-यश उनके नाम रहा।
बावरी! तेरी किस्मत काली है।
न घर है, न सर पर साया।
दो वक़्त की रोटी बस,
तन पर पैबंद पसराया!
लुटती गयी हर सांस में,
कतरा भी ना पाया!
ज़िन्दगी शमशान,
खुद का वजूद भी गवाया!
बावरी! तेरी किस्मत काली है!
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हाँ! सब ही गवाया।
हर सोच मेरी मूर्छित हुई,
हर दर्शन भरमाया।
बेतहाशा बर्बाद हुई,
प्रेम कालकूट बन आया।
पर दर्द के आगोश में ही
मैंने खुदा को है पाया !
जब-जब तिरस्कृत हुई,
मुझे स्वामी ने अपनाया!
कल्पो से धूसर आँचल पर
गेरुआ चढ़ आया।
प्रेम के बदले प्रेम मिला,
भक्ति का है दर पाया!
बस कर्म में मेरी लगन रही,
यश-कीर्ति ना कभी मुझे मिली,
वैराग्य का यही मूल रहा,
सम-विषम सब अनुकूल रहा।
ख्याति उनके हिस्से में,
मेरा तो बस था कर्म रहा।
वैराग ने चुपके से कानो में
कर्म-योग महामंत्र कहा!
न चार दीवारी है,
न छत का सर पर साया।
स्वामी की गोद मिली है,
माथे पर शून्य पसराया।
जिसका एक घर नहीं होता,
वो हर घर “घर” पाया।
स्वामी है मेरा ठिकाना,
छतरी उनकी छत-छाया!
अन्नपूर्णा बनकर स्वामी,
वक़्त- बेवक़्त भूख मिटाये।
बन नारायण स्वामी मेरे,
द्रौपदी को वस्त्र उढ़ाये।
मेरी हर एक चिंता उनकी,
स्वामी माँ हैं, वही सहाये!
हाँ! सब कुछ ही है
मैंने गवाया।
स्व से स्व की
तिलांजलि दे दी।
खुदको खोकर,
शिव पाया!
ज़िन्दगी शमशान हुई है,
उम्मीदों की चिता जली है।
मरघट में ही माँ है रमती,
किस बात की भला मुझे कमी है!
मेरी हर इच्छा का हर पल
प्रकृति ने ग्रास किया।
हर एक दर्द में आहट उसकी ,
घाव आगमन-आभास बना!
वैराग्य की लड़की धूं-धूं जलती,
आठो-प्रहर चिता सुलगती।
उमीदों की सड़ती लाश पर,
लास्य अपना दिखा रही है!
मन को मेरे शमशान सजाकर,
खुद का स्वागत रचा रही है!
मेरा सब कुछ खोना ही,
मेरा सब कुछ पाना हुआ।
मुझमे जब मेरा कुछ न बचा,
भीतर सब स्वामी-समाना हुआ!
जीवन के सूखे मरुस्थल की
स्वामी ही हरियाली हैं !
सच! मेरी किस्मत सबसे प्यारी,
मेरी किस्मत “काली” है!
#प्रभु को समर्पित ❤️❤️
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