अक्सर हम सुनते आए हैं कि सिंड्रेला की दो सौतेली बहनों ने अपनी मां के साथ मिलकर सिंड्रेला को खूब सताया था। मन में सिंड्रेला के प्रति सहानुभूति का समंदर सा उमड़ आता है।

ग्रिम ब्रदर्स की परियों की कथा वाली किताब मेरी एक विद्यार्थी ने मुझे भेंट की थी क्रिसमस पर। लाल जिल्द वाली किताब पर सुनहरे अक्षर से किताब का नाम लिखा था। किताब के तीन तरफ़ (fore edge, top edge, bottom edge) भी सुनहरे थे। किसी जादुई लोक के रहस्य और मंत्र वाली किताब जैसी उस किताब को हाथ में लेते ही चरित्र सजीव हो उठते थे मेरे लिए। एक दिन मैं जब सिंड्रेला की कहानी खोल कर पढ़ने बैठी तो हद ही हो गई, सिंड्रेला की दोनों बहनें, एनास्ताज़िया और ड्राईज़ीला, मेरे सामने आ खड़ी हुईं। एक पल को मैं सकपका गईं कि जाने ये दोनों शैतान बहनें क्या चाहती हैं। आखिरकार कहानी में दोनों ने प्यारी सिंड्रेला को कितना तंग किया था।

मुझे चौकन्ना देख एनास्ताज़िया बोली आज हम दोनों आपकी गलतफहमी दूर करके ही जाएंगी। कैसी गलतफहमी ? क्या कह रही थी वह?

ड्राईज़ीला ने आगे बढ़कर मेरे दोनों हाथ थाम लिए और बोली, “आप कंबल में बैठो, पहले मैं आपके लिए हॉट चॉकलेट लाती हूं फिर आराम से बात करते हैं।” मन में आया कि बोलूं मार्श मेलो भी मिल जाएं तो… पर हिम्मत नहीं हुई। मैंने नज़दीक से पहली बार उसको देखा था। उसके चेहरे के भाव, बोली या इरादों में कोई छिपी शैतानी नज़र तो नहीं आई। पर इतने बरसों की क्रूर छवि यूं एक पल में कैसे धूमिल हो जाती भला।

इस बीच एनास्ताज़िया ने दिसंबर की ठंड के माहोल को थोड़ा और परी नुमा बना दिया, जलते हुए पाइन कोन और लकड़ियों के सुलगने की आवाज़, कमरे में जलती हुई वैनिला की सुगंध वाली मोमबत्तियों की रोशनी। अरे ! यह क्या ! मेरी कुर्सी झूलने लगी थी ! रॉकिंग चेयर की तरह!

ड्राईज़ीला हम तीनों के लिए चॉकलेट ड्रिंक ले आई थी। मेरे मन को उसने शायद पढ़ लिया था, मार्शमेलो भी थे। “गोली मारो उमर और डाइट या वज़न को” -ऐसा सोच मैंने पूरे आत्मविश्वास से कप उठा लिया। लेकिन कहीं इसमें कुछ मिला तो नहीं होगा। मैंने झट से कप उसके कप से बदल लिया।

एनास्ताज़िया के होंठ एक तरफ खिंच कर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान में बदल गए। उसने बोलना शुरू किया – “बरसों की अमिट छाप को धो पाना कितना मुश्किल है ना।”

मेरे बोले बगैर ड्राईज़ीला मार्शमेलो डाल लाई और अब एनास्ताज़िया ने मेरे ही मन के वाक्य को दोहरा दिया। रोंगटे से खड़े हो गए मेरे।

“लोग समझते हैं सौतेली बहनें और मां हमेशा क्रूर ही होती हैं। सिंड्रेला का नाम ही हमारे सताने का पर्याय बन गया कि उसको कोयलों की ढेरी के पास सुलाया। दीदी (एक पल को उसने इस संबोधन से मुझे चौंका दिया ) फायर प्लेस जिसके ऊपर मां एक रॉड के ऊपर बर्तन लटका कर खाना भी बना लेती थी, हम सिंड्रेला को उसके पास सुलाते थे, जिस से सबसे अधिक गर्मी उसको मिले।”

“छोटी थी सिंड्रेला और बहुत चंचल भी, मां को खोने से अनमनी-सी भी। कभी-कभी अपनी मां की कब्र के पास जाकर रात को सो जाती थी। उसको बंद करने के अलावा मां के पास कोई उपाय न होता था। धीरे-धीरे मां का सारा ध्यान हम से हटकर उस छोटी सिंड्रेला पर सिमट कर रह गया। खाने में सबसे पहले उसकी थाली लगती। शोरबा हमको भी पसंद था पर उसको ज़्यादा मिलता। पिताजी भी आकर मां से सिंड्रेला के बारे में ही पूछते, हम तो किसी गिनती में ही नहीं थे। मां भी पिताजी की अपेक्षाओं पर खरी उतरने के चक्कर में अपनी दोनों बेटियों को भूल ही गई थी। सौतेली मां की क्रूरता को वह धो डालना चाहती थी पर हम तीनों ही तो बच्चियां थीं। खेलती थीं और आपस में लड़ती भी थीं। पर पूरा गांव हमको सौतेली बहन की तरह ही देखता था। सारी सहानुभूति बेचारी सिंड्रेला के लिए थी। हमारी घायल, आहत बाल-बुद्धि को प्रेम की छांव चाहिए थी। इसके अभाव में भाई-बहनों वाली सहज ईर्ष्या भी प्रतिशोध का रूप ले भभक जाती थी। खेलते-खेलते धक्का देकर गिरा देना, चीजों को छुपा देना कि मां ढूंढे और हम उसका नाम लगा दें, यह आम हो गया था अब। गांव के लोगों की धारणा को हमने अपने चरित्र में अनुभव करना आरंभ कर दिया था। परिवार की तरह कभी हम गुथ ही नहीं पाए। सब अपने को सिद्ध करने में व्यस्त थे और अनजाने में हम अपने सौतेले पन को सिद्ध करने लगे।

अभी तक शांत ड्राईज़ीला उठी और आग में थोड़ी लकड़ियां डालने लगी। उसकी आंखों में एक सूनापन था। पर होंठों पर शिकायत भी थी “सिंड्रेला की मां की तो मृत्यु हो गई थी पर हमने तो अपनी जीती मां को खो दिया था।”

“क्रिसमस नज़दीक था और गांव में गहमागहमी बढ़ रही थी। सभी तैयारियों में व्यस्त थे। एक बड़े बॉल डांस की तैयारी में।”

“बॉल डांस में एक बहुत बड़ी गोलाकार बेंच पर सभी युवतियां अपने पैरों की एक जूती पहन कर बैठती थीं। दूसरी जूती होती थी एक बड़े से टोकरे में। सभी बांके नौजवान उसमें से एक जूती निकालते थे और उस गोल बेंच पर बैठी युवती के पैरों में पहना कर देखते थे जिस की वह जूती होती थी उसके साथ नृत्य करते थे। क्रिसमस से ही ये शुरू हो जाता था। सबसे पहले, सबसे वरिष्ठ दंपति आते थे और इस तरह हर दिन अलग आयु वर्ग के साथ ये चलता था। आखिर में पारी आती थी अविवाहित लोगों की। जिसके हाथ में जिसकी जूती उसके साथ ही जोड़ी विवाह की, अगर दोनों को आपत्ति न हो। नहीं तो अगले बरस तक पूरा इंतजार। असल में तो कुछ युवक अपनी आंखों – आंखों में, बातों -बातों में बनाई प्रेयसी की जूती पहचानते थे पर कई बार यह खेल साथी के चुनाव की प्रथा के तौर पर बिल्कुल अनजाने सिरे से ही शुरू होता था। अन्य गांवों से भी तो सब आते थे। एनास्ताज़िया ने पिछले ही बरस तो अपना साथी चुना था ऐसे। उसकी जूतियां बहुत ही सुंदर कशीदाकारी वाली हल्के आसमानी रंग की थीं।”

“सिंड्रेला तो तब अपने बूट्स में ही घूम रही थी अपने घुंघराले बालों की दो चोटियां बनाकर।”

“जब नववर्ष पर मेले के अंतिम दिन ये प्रथा खेली जानी थी सभी उत्साहित थे। भेस बदलकर एक राजकुमार भी मेले में है ऐसी गुपचुप गुपचुप चर्चा थी। मां के बनाए हुए चेरी ब्लॉसम जैसे हल्के ऑरगैंज़ा के गाऊन को पहन मुझे भी राजकुमारी से कम नहीं लग रहा था। मां ने मेरे पैरों का नाप लेते हुए स्नेह से मेरे सिर पर उस दिन हाथ फेरा था।” कहते कहते ड्राईज़ीला का गला रूंध गया।

लेकिन रूई सी फ़र वाली सफेद जूतियां नहीं मिल रही थीं। मां, मां कहती हुई मैं बांवरी-सी फिर रही थी।मां के थैले में होंगी। संगीत बजने लगा था। सब वहीं थे। अब समय नहीं है, हारकर मैंने अपने बूट्स डाले और उदास मन से वहां पहुंची। सबकी नजरें एकबारगी मेरी परियों जैसी पोशाक पर पड़ती और फिर नीचे पहने बेमेल बड़े-से चमड़े के जूतों को छूती, आश्चर्य करतीं और मुड़ जातीं। अब अगले साल तक इंतज़ार करना ही मेरी नियति थी।”

ड्राईज़ीला की आंखों की कोर पर दो बड़े अश्रु आ टिके।

एनास्ताज़िया ने ही फिर सूत्र संभाला।

“युवक बड़े से टोकरे में से जूतियां उठा रहे थे मानो जूतियों से ही जीवन साथी को परख लेंगे। एक के हाथ में फ़र वाली नाज़ुक जूतियां देख अन्य युवकों ने बड़े रश्क से उसको देखा। आखिर दूसरी जूती की शोभा बढ़ाने वाली ये कौन होगी?”

“सिंड्रेला!!!”

“हम दोनों को को काटो तो खून नहीं। एक साल पहले तक बच्ची-सी सिंड्रेला अपने सफ़ेद बादलों जैसे गाउन में आज बिल्कुल परी ही लग रही थी। और जूती की नज़ाकत से उसको पहनने वाली के सौंदर्य को परखने वाला सचमुच भेस बदल कर आया हुआ राजकुमार ही था।”

“आज मां ने अपनी बेटी की खुशियों की बलि एक बार फिर चढ़ा दी थी। शिकायत किस से थी, समझ नहीं आया, मां से, सिंड्रेला से, या नियति से, या फिर समाज द्वारा पोषित सौतेलेपन के ठप्पे से।”

ड्राईज़ीला मेरे घुटनों को दोनों हाथों से समेट कर बैठते हुए बोली, “500 ईसा पूर्व के यूनान के मौलिक एवं मौखिक संस्करण में और उसके बाद के चीनी संस्करण में तो हम हैं ही नहीं पर जाने कहां से उसके बाद के पांच सौ या हज़ार से भी अधिक प्रकरणों (variants) में हमको किसने खलनायिका बना दिया। जिसे हम चाह कर भी कभी सुधार न सके।”

“दीदी क्या आप लिखेंगी हमारा सच?”

और उन दोनो की आंखें मुझ पर टिक गईं । कमरे में सिर्फ फायर प्लेस में लकड़ियां तड़कने की आवाज थी। वे दोनों जैसे प्रकट हुई थीं वैसे ही अंतर्ध्यान हो गईं।

और मैंने ग्रिम ब्रदर्स को चुनौती दे डाली।

P.S

मेधा श्री आपको बहुत धन्यवाद एक अलग सोच और एक अलग नजरिया देने के लिए।