उपवन सज गया, भवरों की गुंजायमान रागों ने सारा उपवन संगीतमय कर दिया, चम्पा , बेल की कलियों ने अपनी अदा से सारे मधुवन को महका दिया। किशन ने राधा को प्रेम बांसुरी की तानो में खूब रिझाया, राधा मदमस्त हो पूर्णतः कृष्ण को समर्पित हो गयीं।
मनमोहन और राधा ने दिव्य प्रेम किया।
किशन जब गोकुल छोड़ कर चले गये ,राधा अथाह प्रेमशोक में डूब गयीं।
किशन तुम सब छोड़ कर चले गये, तुम कैसे पालनकर्ता हो..? ये जो प्रेमसागर हमने अपने हृदय से रिसती निर्झरी से भरा था ये सागर अब उन असंख्य प्रेम क्षणों का निवास स्थान है। इस विशाल संसार को मैं कैसे अकेले पोषित करूँ? ये तो हम दोनो की जिम्मेदारी तय हुई थी, दोनो ने ही रचा इस संसार को अब जब इसमे पल रहे जीवो के पोषण का क्षण आया तो तुम किस संसार की रक्षा के लिये चले गए?
मैं कैसे पोषित करूँ
अब तो मेरे हृदय की प्रेम सरिता भी सूख चुकी है, मेरे सीने से फूटने वाला मातृत्व भी ठूंठ मरुस्थल हो गया, क्या इन्हें मैं अपने अश्रुओं से पालूं? किशन तुम किस दुविधा में मुझे डाल गए ,यदि मैं इनका इस भांति पोषण करूँ तो मेरे स्त्रीत्व पर कलंक लगता है और यदि मैं अपने तप से इस सागर को वापस अपने वक्ष में धारण कर लूं तो मेरे राधा होने का औचित्य ही क्या रह जाता है?
राधा कौन है? ‘प्रेम की देवी’ या ‘दुर्भाग्य की देवी’ । किशन तुम कौन हो ‘पालनकर्ता’ या ‘विनाशक’? मैं पालूंगी इस सागर को अपने तन की आखिरी क्षमता तक मेरे मुरझाते अधरों से सूखते हलक तक। मैं इस सागर को पोषित करूँगी ,तुम्हारी लीला तुम ही जानो, मैं तो अब इस प्रेमसागर में डूब जाऊंगी और तुन्हें मिलूंगी “क्षीर सागर” में।
किशन तुम निष्ठुर हो।
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