सादर नमस्कार।
सबसे पहले 75 वें स्वतंत्रता दिवस की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
आज के लेख में मैं हमारे प्रिय ओम स्वामी जी द्वारा लिखित पुस्तक ‘कुंडलिनी : एक अनकही कथा’ से संबंधित कुछ बातें व अपना अनुभव साझा करना चाहूंगा। आपसे कहना चाहूंगा कि यह लेख इस पुस्तक की समीक्षा नहीं है, Review नहीं है। कुछ पुस्तकें होतीं है जिनके Review नहीं किये जा सकते, मेरे विचार से यह उनमें से एक है।
करीब 6 माह पहले मैंने यह पुस्तक Flipkart से खरीदी। उससे पहले मैं अध्यात्म व योगादि विषयों पर दर्जनों पुस्तकें पढ़ कर माथापच्ची कर चुका था। मैं अपने मन को, जीवन को एक ऊँचे स्तर पर ले जाना चाहता था जिसमें Self-help की help मेरे किसी काम नहीं आयी थी।
अब चूँकि मुझे कुंडलिनी व चक्रों के बारे में जानने की जिज्ञासा भी थी तो मैंने यह पुस्तक मँगायी।
जब package आया तो मैंने अधीर होकर इसे खोला (वैसे भी हम भारतीयों को खासकर इस तरह के पैकेज खोलने में बड़ा अच्छा लगता है) और किताब निकाली। बिल पर अधिक ध्यान इसीलिये नहीं दिया क्योंकि Big billion days के दौरान पुस्तक की कीमत बहुत कम थी। और इससे मैं बहुत खुश था।
किताब के Cover page ने ही मेरा मन मोह लिया। जब मैंने उसे हाथ में लेकर नजदीक से बार-बार देखा, तो मन में आया कि शिव कितने अद्भुत रहे होंगे। न जाने कौन-सा स्वर्ण काल था वह जब शिव माता पार्वती के साथ इस धरा पर विराजते होंगे। अकल्पनीय ! अवर्णनीय !
फिर वह कहानी भगवान शिव व माता सती की, दोबारा पढ़ी, क्योंकि पहले ही मैं sample में कहानी का कुछ हिस्सा पढ़ चुका था। हालांकि मैं पुस्तक का हिंदी अनुवाद पढ़ रहा था इसके बावजूद मुझे नहीं लगा कि भाषा शैली में जरा भी कहीं कमी है।
कई दफा ये सब कहानियाँ पढ़ीं और ज्ञानवर्धक मनोरंजन किया। जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, कुंडलिनी, ग्रंथियों व चक्रों को समझने की कोशिश की। वास्तविक साधना के उन पहलुओं के बारे में जाना जिन पर वह आश्रित थी, जो थे- मानसिक चित्रण, मंत्र, एकाग्रता, आहार नियमन व मुद्रा।
खुद के जीवन को व हालातों को इस पुस्तक के प्रकाश में समझने के लिये पुस्तक को कई बार पढ़ा, और विचारा।
एकमात्र ‘वास्तविक साधना’ ही रही, जिस पर मैं अमल नहीं कर सका। कारण यह था कि न तो मुझमें वह आवश्यक एकाग्रता थी, न ही मेरा आसन स्थिर और सुखकर था। साधना करने की जल्दी में मैं नहीं पड़ना चाहता था।
स्वामी जी ने अपने जो भी अनुभव पुस्तक में बताए, उन्हें पढ़ कर उनकी सत्यता का आभास होता था किंतु फिर भी यह मेरे अनुभव में तो नहीं था। और बिना अनुभव के शाब्दिक ज्ञान अंधा होता है। स्वामी जी ने पुस्तक में कई जगह हौसला व संकल्प बढ़ाने वाले वक्तव्य दिये। उन पर मनन और चिन्तन कर-करके मेरा मार्ग प्रशस्त होना शुरु हुआ। और मैंने स्वयं को साधना के लिये तैयार करना शुरु किया। लंबे समय तक एक आसन में बैठने का अभ्यास करना शुरु किया। यह अभ्यास अब भी जारी है।
इस बात को स्वीकार करते हुए मुझे कोई समस्या नहीं कि अब तक न तो मैंने देवी के जागरण को, कुंडलिनी के ऊर्ध्वगमन को और न ही चक्रों के भेदन का अनुभव किया है। परंतु इस कुंडलिनी के विज्ञान प्रति और मेरी वर्तमान साधना के प्रति मेरी श्रद्धा बढ़ गयी है। यह सब केवल स्वामी जी के कारण है। मैं सोच भी नहीं सकता कि इस पुस्तक के रूप में स्वामी जी का सान्निध्य मुझे प्राप्त न हुआ होता तो न जाने आज मैं किस गंदगी से अपने शरीर व मन को मैला कर रहा होता।
कुछ पुस्तकें वाकई हैं, जो जीवन को बदलने सक्षम हैं, बशर्ते व्यक्ति राजी हो। कुंडलिनी : एक अनकही कथा ऐसी ही एक पुस्तक है।
मैं यह पुस्तक आप सभी को पढ़ने का सुझाव करता हूँ। लिंक ये है- Kundalini: An Untold Story
अंत में आपसे विदा लेते हुए ‘कुंडलिनी : एक अनकही कथा’ से स्वामी जी के वे प्रेरक उद्धरण जिन्होंने मुझे स्वयं को बदलने व साधना मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा दी व संकल्प जगाया-
- आप शाखाओँ व फलों से भ्रमित न हों, केवल जड़ों को सींचिये और पूरा वृक्ष आपका होगा।
- प्रिय! मन में आश्चर्य मत करो। तप के साथ कुछ भी असंभव नहीं है।
- किसी भी चीज से ऊपर उठने के लिये आपको उसे समझना होगा।
- आप अपनी परतों को उतारने के लिये जितना संकल्पबद्ध होंगे, आपके प्रयास जितने अधिक अनुशासित होंगे, आपका रुपांतरण उतना ही तीब्र होगा।
- शायद जो शाखाओं पर खोज रहे हो, वह केवल जड़ में प्राप्त होगा।(स्वामी जी के कुंडलिनी वाले वीडियो से मेरा पसंदीदा)।
इनके अतिरिक्त अन्य भी कई कथन मेरी प्रेरणा बने, जो बिल्कुल सरल थे, कोई शब्दों का मायाजाल नहीं। वे आप पुस्तक में पढ़ सकते हैं।
Swamiji’s bold moves are now inspiring others to move, I am one of those, trying to be free.
आदरणीय सज्जनों को सप्रेम नमन।
image credits to Omswami.org
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