समस्त Os.me फैमिली को नमस्कार। आशा है आप सभी ठीक होंगे, स्वस्थ होंगे, प्रसन्न होंगे।

देवी माँ के इन नौ दिनों में उनकी कृपा हमारे साथ बने रहे, और हमारा भी जीवन दैवीय हो जाए।

इस पोस्ट में कुछ नयी व पुरानी कविताएं शेयर करना चाहता हूँ, आशा करता हूँ कि आपको पसंद आएंगी वरना आप मुझे discussions में डाँट भी सकते हैं…😊

माखनचोर

चोरों की तरह तुम आये घर में, चोर ही होगे।
हाथों को पंख बनाकर नाच रहे हो, मोर ही होगे।
मेरी बातें उसे, मुझे उसकी बता रहे हो, चुगलखोर ही होगे।
मटकी भर-भर रखा जो माखन अलोप है, माखनचोर ही होगे।

ताजे, जीवंत, जागे लग रहे हो तो मनभावन भोर ही होगे।
हर किसी को बांध लेते हो तुम, प्रेम की पावन डोर ही होगे।
प्रति क्षण समीप अपने पाती हूँ, जरूर तुम उस ओर भी होगे।
मटकी भर-भर रखा जो माखन अलोप है, माखनचोर ही होगे।

आसमान

मैं तुम्हें आसमान देना चाहता हूँ
सिर्फ नहीं मकान देना चाहता हूँ
वांछना ऐसी महान देना चाहता हूँ
कि सूरज कहे- मैं उसे सम्मान देना चाहता हूँ।

जानता हूँ पागलपन है,
पर होना जरूरी है,
और यह भी क्या बात हुई,
सपने देखने के लिये सोना जरूरी है।

चमत्कार होते हैं, पर अपने से नहीं,
जो चाहो मिल जाता है, पर सिर्फ सपने से नहीं।
हम कहाँ अजनबी थे, नहीं थे,
अगर थे, तो सभी थे, तभी थे।

यकीन मानो

यकीन मानो
एक दिन धरा पर
कोई न भ्रांति होगी
हम सब लौट जाएंगे
सोचो कितनी शांति होगी।

तब तुम भी नहीं चीखोगे
बिट्टू के कम नंबरों के लिये
और मैं भी न रोउंगा अकेले
अपने लिये, नए अंबरों के लिये।

तब फूल तो होगा
पर माली न होगा, तोड़ने के लिये
और मैं भी न लिखूंगा कविता
अपने संग्रह में कुछ जोड़ने के लिये।

और वह भी नहीं किताब माँगेगा
सोचो तो तब कैसे लाइब्रेरियन
वापसी का हिसाब माँगेगा
और मैं भी न सोचूंगा रातभर
कि ईश्वर किन सवालों के जवाब माँगेगा।

एक दुनिया और

एक दुनिया
मेरे फोन की स्क्रीन पर
एक दुनिया
मेरे चारों ओर
एक दुनिया
मेरे मन में घूमती है
एक दुनिया और है
जिसका लेखा-जोखा मेरे पास नहीं है,
जो है, बस मुझे, यह विश्वास ही है

आशीष

आशीष मुझ पर नभ से है
मैं नभ को ताका करता था
सूरज चाँद सितारों की सतहों को
झरोखों से झाँका करता था
उन्हें स्मरण हूँ मैं
मेरा नाम नहीं होगा
अवश्य ही दाता हैं वे,
मुझसे कोई काम नहीं होगा।

अपने विचार/सुझाव बताएं। धन्यवाद।

जय माता दी।

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