नई दुल्हन ने घर में कदम रखा ही था
फुसफुसाहटों की रेल का डिब्बा चल पड़ा था
कोई चाय, कोई मिठाई का आनंद ले रहा था
पर चर्चा का विषय एक ही था
लड़के ने लड़की में देखा क्या था?
रंग तो काला है, बुआ ने बोला
बाल घुंघराले हैं, मौसी को खटका
क़द-काठी हमारे लड़के से छोटी है, चाचा को दुःख हुआ
ज़ेवर हल्के हैं, देख पड़ोसी अंदर ही अंदर खुश हुआ
मंद आवाज़ों का शोर लड़की तक पहुँच रहा था
उसका दर्द पानी भरी आँखों में झलक रहा था
चारों ओर ये ही प्रश्न गूँज रहा था
लड़के ने लड़की में देखा क्या था?
कमरे के एक कोने में लड़का खड़ा था
मंद मुस्कान धारण कर तमाशा देख रहा था
शोर थोड़ा कम होने पर बुलंद आवाज़ में बोला
जो प्रश्न यहाँ सब को विचलित कर रहा है, उसका उत्तर मैं देता हूँ
नज़र नहीं नज़रिए से दुनिया देखता हूँ
आओ सबको बताता हूँ, इसमें मैं आख़िर देखता क्या हूँ
शरीर का रंग काला, मन का सफ़ेद उजाला है
बाल घुंघराले, नीयत सीधी लकीर है
क़द-काठी छोटी, पर सोच मुझसे भी ऊँची है
ज़ेवर हल्के ही सही, पर रिश्तों की डोर मज़बूत रखती है
यह सब खूबियाँ मुझे दिखती हैं
इसकी शोभा इसी से बनती है
अपने नज़रों के पर्दों को छोड़, नज़रिए के आईने से दुनिया को देखो
सब में एक खूबसूरत इंसान पाओगे
जौहरी को हीरे की परख कैसे होती है, यह जान पाओगे ।
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