“मैं आज बहुत खुश हूँ । आज मेरी छोटी बेटी की शादी है। लड़का आर्मी में है ।
बड़ी बेटी भी अपने ससुराल में बहुत खुश है । चलो अच्छा है मेरे दोनों दामाद मिलिट्री वाले है । बेटियां मेरी रानी बनकर रहेंगी
बड़े शौक से गहने कपडे बनवाये हैं आज बस सब अच्छे से निपट जाये तो मैं गंगा नहाउंगी ।”
(ये हैं कल्पना जी। 48 साल की हैं । पति इनके गवर्नमेंट जॉब में थे अब पेंशन लेकर मज़े में खेती करवाते है अपने गाँव में । एक बेटा है जो शादीशुदा है और अपने परिवार के साथ आराम से Bhubaneswhar में रहता है । दो बेटियां है जिनकी शादी हो चुकी है और सब अपने परिवार में ख़ुशी से रहते हैँ। देखा जाये तो ज़िन्दगी पूरी तरह से संतुष्ट लगती है और सब बढ़िया चल रहा है । मगर ज़िन्दगी में सब ख़ुशी राज़ी चलता कहाँ है ? )
“मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं लग रही जी , आप ज़रा डॉक्टर को बुला। देंगे “? , कल्पना जी ने अपने पति से बोला ।
“अरे कुछ नहीं हुआ है तुम्हे ज़रा सा आराम कर लो ठीक हो जाओगी ”
“जी”
15 दिन गुज़र गए मगर तबियत को आराम नहीं आ रहा.
पतिदेव ने फाइनली डॉक्टर को बुलावा भेजा । डॉक्टर ने कुछ टेस्ट लिखे । इधर कल्पना की हालत लगातार ख़राब होती जा रही थी ।
उन्हें शरीर के दोनों तरफ दर्द रहता था और पेशाब से खून भी आने लगा था.
रिपोर्ट जब आयी तब पता चला की इनकी दोनों किडनी ख़राब हो रही हैं , जल्द से जल्द इलाज करवाना होगा और बड़े डॉक्टर को शहर में लेजाकर दिखाना पड़ेगा
अब सब परेशां हो गए । बेटा और पति मिलकर ले गए इन्हे बड़े हॉस्पिटल और शुरू हुआ इनका इलाज़.
आज इनकी तबियत को ख़राब हुए दो साल गुज़र चुके हैँ।
पति और बेटा थक चुके हैं दवाईओं का खर्चा उठाते हुए.
“पापा , मुझे अपना जॉब और परिवार भी देखना है । मैं पहले से ही इतना परेशां हूँ और अब डॉक्टर ने डायलिसिस बोल दिया है । मुझसे अब कुछ नहीं हो पायेगा । आप जीजा जी को बोलिये उन्हें मिलिट्री हॉस्पिटल में दिखा दे और वहीँ इनका अच्छे से इलाज़ करवाएं ।
पति ने भी सोचा कैसे सब मैनेज होगा ?
क्यों मैं बेटी दामाद को परेशां करूँ, चलो कुछ दिन डायलिसिस करवा कर देखते हैं
डायलिसिस का प्रोसेस शुरू हुआ , बेटियां भी दोनों आयी अपनी माँ से मिलने। हाल चाल पुछा , दो दिन रही, बचपन के दोस्तों से मिली और फिर चली गयी अपने अपने घर।
कल्पना जी को अच्छा लगा की सब लोग मिलने आये मगर उनकी तबियत में कोई ख़ास सुधार नहीं हो रहा था।
फिर एक दिन पति देव ने अपने दामाद को फ़ोन किया
“अरे बेटा निशांत , कैसे हो?”
“मैं ठीक हूँ पापा , आप कैसे हैं, मम्मी जी कैसी हैं ?”
“बेटा ….बस उन्ही की वजह से थोड़ा परेशां हूँ, तुम उन्हें दिल्ली ले जाकर क्यों नहीं कुछ दिन किसी दूसरे डॉक्टर से एक सलाह ले लेते ?”
“पापा , थोड़ा मुश्किल है मेरा फ्लैट छोटा है , सरकारी मकान मिलने में अभी टाइम है , मीणा भी यहाँ ऑफिस जाती है, बच्चे भी नहीं ठीक से संभाल पा रहे हैं हम तो मम्मी जी को कैसे रख पायेंगे ? मगर पापा कुछ पैसे चाहिए हो तो ज़रूर बता दीजियेगा मैं भिजवा दूंगा। अच्छा रखता हूँ पापा , प्रणाम”
छोटे दामाद का भी कुछ ऐसा ही जवाब था .
ये सब कल्पना जी चुप चाप देखती और सुनती थी और सोचती थी इन बच्चों के लिए मैंने न जाने कितने ही कष्ट उठाये होंगे और ये सब आज मेरी इस हालात में मेरा साथ देने से भी कतरा रहे हैं।
चलो मुझे ख़ुशी इस बात की है मेरा जीवनसाथी तो मेरा साथ निभा रहा है। एक सुकून की सांस के साथ उन्होंने भगवन को धन्यवाद दिया।
मगर ये ख़ुशी भी ज्यादा लम्बी नहीं थी।
“डॉक्टर साहब सच सच बताईयेगा ये डायलिसिस कब तक चलेगा। मैं परेशां हो चूका हूँ “
“अरे प्रभात जी, आप तो गवर्नमेंट जॉब में हैं और आपकी बीवी के लिए भी सरकार आधा खर्चा देती है तो फिर आप क्यों परेशां हैं ?”
“अरे धीरे बोलिये डॉक्टर , ये किसी को नहीं पता , मैंने सबको बताया है की मैं रिटायर्ड हूँ, वोलंटरी रिटायरमेंट ले लिया है मैंने। बस पैसे सारे आते है। “
“तो फिर आपको क्या परेशानी है , अच्छे से इलाज़ करवाईये “
“अरे डॉक्टर, ऐसे कैसे और कब तक चलेगा। मैं परेशां हो गया हूँ। अब कल्पना से कोई काम भी नहीं होता है, अब तो एक बोझ सी लगने लगी है वो। आप बस इतना बता दीजिये की कब तक जियेगी?”
“देखिये प्रभात जी, अगर डायलिसिस ठीक से चलता रहा तो आराम से कल्पना जी 8 -9 साल जी लेंगी “
“मतलब मैं हर डायलिसिस पे 12000 खर्च करूँ तब ये इतना जियेंगी ?”
“जी”
“आप अगले हफ्ते आ रहे हैं न डायलिसिस के लिए ?”, डॉक्टर ने पुछा ?
“जी नहीं , डॉक्टर मैं फ़ोन रखता हूँ”
पीछे वाले कमरे में दूसरे फ़ोन से कल्पना जी ने ये सारी बातें सुनी और अपने आसूं रोक न पायी
पति आये तो खुद को सँभालते हुए बोली-
“जी क्या बोले डॉक्टर साहब ?”
“बोले ज्यादा दिन की मेहमान नहीं हैं , इलाज़ से भी कोई फायदा नहीं होने वाला “
सुनकर फूट फूट कर रोने लगी कल्पना जी। पति ने बोलै अब क्या करें जो ऊपर वाले को मंज़ूर
कल्पना जी ने अपने पिता को फ़ोन किया और सब बात बता दी। पिता मगर दामाद को कुछ नहीं बोल पाए। बेटी विदा की है तो ज़िम्मेदारी ख़तम।
अब कल्पना जी असहाय महसूस करने लगी। अपनी एक ख़ास दोस्त को उन्होंने सारा किस्सा सुनाया की कैसे मेरा पति आजतक मुझसे झूठ बोलकर सरकार से पैसे लेता रहा है और मेरे इलाज़ के भी आधे पैसे उससे मिलते हैं मगर वो मेरा इलाज़ नहीं करवाना चाहता क्यूंकि मैं अब बोझ बन गय। मेरी बेटी दामाद भी मुझसे कन्नी काटने लगे है। अब तुम ही मेरी मदद करो।
कल्पना जी की दोस्त ने अपने भाई के डॉक्टर फ्रेंड से बात की और उसका इलाज़ा दिल्ली में करवाने का जुगाड़ भी कर दिया। मगर कल्पना जी के पति ने उनकी दोस्त को ही फटकार लगा दी।
“आप ज्यादा हमारे परिवार में दखल अंदाज़ी न करे तो बेहतर होग। हमारे पास कोई फालतू पैसा नहीं है जो आपके जान के डॉक्टर को देकर ख़तम कर दें।
आप यहाँ से चली जाईये और दुबारा मत आईयेगा” ,ये कहते हुए प्रभात जी ने अर्चना के मुँह पर दरवाज़ा बंद कर दिया।
तीन हफ्ते गुज़र चुके है। कल्पना जी का डायलिसिस उनके पूज्य पतिदेव ने रुकवा दिया है।
बेटा काफी मिन्नतें कर रहा है की पापा आप मम्मी का इलाज ज़ारी रखिये मैं लोन ले कर चूका दूंगा, मगर प्रभात जी बोले – “बेटा अब कुछ हो तो सकता नहीं है तुम लोन लेकर अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ा रहे हो ? रहने दो बस दुआ करो।”
इधर कल्पना जी की हालत दिन बा दिन ख़राब होती जा रही है। उन्हें असहनीय पीड़ा हो रही है, उनका शरीर सूजने लगा है। दिमाग ही नसें जैसे बस फटने वाली है।
आज 30 दिसंबर 2020 है।
कल्पना जी बिस्तर से उठ नहीं पा रही है। चिल्ला रही हैं ज़ोर ज़ोर से की मुझे दर्द हो रहा है मुझे डॉक्टर के पास ले चलो। मगर पति देव ने कहा “अब तुम आराम करो और प्रभु का नाम लो। हमसे जितना बन पड़ता था हमने किया पर अब हम बेबस है”
कल्पना जी का बाँध टूट पड़ा – बोली
“आप ने कितना किया मैं जानती हूँ और मैंने इस परिवार के लिए कितना किया ये मेरे जगन्नाथ जी जानते है। आप चाहते तो मैं शायद कुछ वर्ष और जी सकती थी मगर आपने अपने पैसे बचाने के चक्कर में मेरा इलाज़ ही बंद करवा दिय। मेरी सालों की इस परिवार के प्रति प्यार और सेवा के बदले आपने मुझे ये ज़िन्दगी दी। मैं निस्वार्थ भाव से सबके लिए जीती रही और आप के लिए सिर्फ पैसे महत्वपूर्ण थे मेरी ज़िन्दगी नही। यही अगर आपके साथ हुआ होता तो क्या मैंने आपका अच्छे से इलाज़ न करवाया होता ?”
ये बोलते बोलते कल्पना जी की सांस उखड़ने लग। पति घबरा कर आस पड़ोस क लोगो को बुला लाये की इसकी तबियत बिगड़ रही है इससे डॉक्टर के पास ले चलने में मेरी मदद करो
पर कल्पना जी ने एक आखरी बार अपने पति को देखा , और असहनीय पीड़ा की वजह से (शारीरिक और मानसिक ) एक ज़ोर से आवाज़ लगायी और तीखी चीख निकली और सब शांत।
कल्पना जी 50 वर्ष की आयु में इस दुनिया को छोड़ कर चली गयी।
क्या मिला कल्पना जी को अपने परिवार के लिए सारी उम्र काम करके , उनकी हर ज़रूरतों का ध्यान रख कर, अपने पति के हर दुःख सुख में साथ देकर
कितनी स्वार्थी दुनिया है य।। इंसान नहीं कई हैवान भरे हुए हैं यहाँ जो सिर्फ इस भौतिक संसार के सुखों में रमै हुए हैं और ज़रा भी उस आत्मा की परवाह नहीं जो ख़ामोशी से सब कुछ देखती है
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