क्या है ज़िन्दगी ?

एक घना जंगल, एक भटका मुसाफिर, 

और उसका जंगल से पार होने का,

न खत्म होने वाला द्वंद,

क्या ये है जिंदगी ?

चंद ख्वाब – कुछ पुरे, 

कुछ टूटे और बिखरे हुए,

पर पुरे सपनोंको नज़र अंदाज़ कर ,

टूटे ख्वाबोंको गले लगाके रोना,

क्या ये है जिंदगी? 

हर घडी एक खोज,

कुछ पाने की दौड़, 

पर क्या खोया और क्या है ढूंढना,

न जानते बस दौड़ते रहना

क्या ये है जिंदगी ?

चाहना कुछ, और करना कुछ,

दिल और जुबान का कोई मेल नहीं,

ऐसी घुटन में भी मुस्कराहट रखना, 

क्या ये है जिंदगी ?

फिर आखिए थक के रुक जाना,

बाहर की हर चीज़ की व्यर्तता का यहसा करना,

और फिर आँख बंद कर, अपने अन्दर झांकना,

क्या ये है जिंदगी?

पर ओ कहते है,

ना कुछ खोया है, ना कुछ पाना है, 

ना तुम अधूरे हो, न ये जहां,

जो है, जैसा है, पूरा है, एक ही है, हमेशा से, 

ये जानने की राह पे चलने, का नाम है जिंदगी. 

Om Shanti!

PS:   Buddha says life is too ironic. It takes sadness to know what happiness is, noise to appreciate silence, and absence to value presence. So every incident (good or bad) is happening to make you more wise and to push you towards your ultimate destiny. So acceptance without resistance is the way out. Think about it.