ख़ुशी
पिछले साल की बात है, मैं भैया को रेलवे स्टेशन रिसीव करने गया था। ट्रेन आने में अभी कुछ वक्त था । मैं वही पास में ट्रेन के आने का वेट कर रहा था। मेरे पीछे बहुत सी झुग्गियाँ थी जिसमे देहाड़ी में काम करने वाले मजदूर परिवारों का ग्रुप रहता था।
सुबह का वक्त था, चारों ओर कोहरा था कहीं-कहीं लोग आग जलाए मजे से गर्मी का लुफ्त ले रहे थे । पास में ही इन परिवारों के बच्चे खेल रहे थे। झुग्गी में से धुआं निकल रहा था शायद वहाँ खाना बन रहा था। भैया का फ़ोन आया पता चला ट्रेन आज 30 मिनट लेट है। अब स्टेशन से वापस घर आने में भी इतना ही समय लगता तो मैंने वहां रुकना मुनासिब समझा। पर इतनी देर तक करें क्या ?
अभी चहल-पहल भी उतनी नही थी, तो मैं भी झुग्गी के पास जाकर उन लोगों के साथ जलती आग के सामने बैठ के गर्मी का मजा लेने लगा। मैं वहां बैठे-बैठे उन लोगों की जीवन शैली देख रहा था कि, किन परिस्थितयों में ये रह रहे है। जहां हम इतनी सुविधाओं के बाद भी अपने बड़ों से कुछ न कुछ ज्यादा लेने के जुगाड़ में रहते है । गुस्सा,नाराजगी सब कर के अपनी विश पूरी हो ही जाती है। वही दूसरी ओर ये जन है जहाँ जज़्बात कोई मायने नही रखता विकल्पों का भी सवर्था अभाव है। केवल सीमित साधन और उसके बीच मे पिसता घिसटता इनका जीवन। मन व्यथित हुआ और न कह सकने वाली वेदना हुई।
स्वामी जी के जीवन का वो किस्सा मुझे याद आया, जब पूज्यवर सर्दी की रात में गरीबों को कम्बल बाँटने गये थे और वहां का दुरूह जीवन देख वे स्वयँ को वहां ज्यादा देर रोक नही पाए।
मैं अक्सर ही इन लोगो को देखता रहा हूँ पर इतनी हमदर्दी नही हुई, लेकिन उस दिन जब मैं इनके पास कुछ देर के लिए रहा, तो मुझे बहुत खराब लगा।
मैं वहां से उठ के चल दिया और अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया । मैं वहां पहुँचा ही था कि एक-एक करके दो बच्चे मेरे पास आये और पैसे मांगने लगे इतनी ठंड में भी इनके पैरों में चप्पल या जूते नही थे। मैं अपना वॉलेट घर मे भूल गया था तो पैसे मेरे पास नही थे पर मैं इन दोनों को खाली हाथ नही जाने दे सकता था तो मैंने सोचा इनसे थोड़ी देर बात करता हूँ और जब भैया आ जाएंगे तो इन्हें कुछ बिस्किट और चाकलेट भी दे दूंगा। अब मेरी उनकी बात शुरू हुई
“क्या नाम है छोटू:- कुछ नही”
“ये तुम्हारे साथ मे जो है इसे जानते हो:- नही”
वो दोनों कुछ बताने को तैयार नही थे, पास के दुकान से मैंने बिस्किट का छोटा पैकेट लिया और छोटे के हाथ मे थमा दिया ।बड़े ने कहा मुझे भी चाहिए इसको आपने दिया मुझे भी चाहिए । मैंने बिस्किट ओपन करके छोटे को थमा दी और दोनों को कहा कि खाओ, पर वो एक दूसरे से बात ही न करे । बड़ी अजीब बात थी। जब मैंने जोर दे के कहा तो बड़े ने कहा कि, “इसने मुझे कल बिस्किट नही दिया था।” वो दोनों दरअसल भाई थे और उनकी नाराजगी चल रही थी ।
मुझे अपना बचपन याद आ गया और भैया के साथ झगड़ों के वे किस्से भी😀😅। फिर मैंने वही किया जो मेरे बब्बा हमसे करवाते थे। मैन छोटे से कहा चलो भैया को बिस्किट खिलाओ | अब झगड़ा ताजा था, तो ये करना थोड़ा मुश्किल था पर बिस्किट जाने के डर से उसने बिस्किट खिलाई और खिल-खिला के हँस दिया। मैन बड़े से कहा चलो अब छोटे को गाल पे पप्पी दो उसे थोड़ा शर्म आयी😀😀 पर बात बिस्किट और चॉकलेट की थी इसलिए उसे ये करना पड़ा । आखिर में दोनों बड़े खुश हुए उनका झगड़ा समाप्त हो गया। भैया के आने के बाद मैंने उन्हें कुछ पैसे दिए घर को वापस चल दिया।
और वो दोनों?
मुझे भी बड़ा अजीब लगा और सुखदायी भी जब मैंने गाड़ी से पीछे देखा तो वो दोनों बिस्किट नही खा रहे थे और न ही चॉकलेट, वो टकटकी बांधे मुझे देखते रहे जब तक मैं ओझल नही हो गया। मुझे बहुत ‘पीड़ादायक सुकून’ मिला
पोस्ट ज्यादा बड़ी हो गयी आप सभी को प्रणाम मुझे यहां तक झेलने को😊🙏🙏🙏🌼🌼
जय श्री हरि🌼🌼🌼🌼🏵🏵
ख़ुशी
'जब मैंने कहा कि, बिस्किट अपने भैया को खिलाओ तो उसे थोड़ी ज़हमत हुई'
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