मेरे बाबा गेरू धारी
त्रिभुवन स्वामी वो त्रिपुरारी
मैं बालक बस देखा-सीखी
भगवा धारण करूं, अनाड़ी

वाणी उनकी जैसे मुरली
चंदन सी उनकी सुगंधि
मेरे दूषित मन से कैसे
प्रभु प्रीति संग होगी संधि?

कभी कहें वो मंतर पढ़ लो
कभी सिखाएं ध्यान-समाधि
मैं मूरख, अज्ञानी, अनपढ़
भक्ति मेरी रूखी बासी

“एक राह पर चल कर देखो
रख लो मन में दृढ़ संकल्प”
मैं बोलूं एक रस्ता तुम प्रभु
सूझे न दूजा विकल्प

बाबा मेरे मन अंतस् में
अंधकार ऐसा घनघोर
अंधा बन कर पीछे चलता
पकड़ तुम्हारे वस्त्र-छोर

सकल जगत का सार तुम्हीं हो
तुम्हीं प्रेम का हो आधार
शब्द नाद सब तुमसे निकले
सब भावों के तुम भावार्थ

चंद्र समान सौम्य मुख आभा
सूर्य लजाए तुमको देख
मैं तो इक टक घूरे जाऊं
नैन भरूं ब्रह्मांड अनेक

कोई ध्याए शिव शंकर को
किसी को दिखती तुम में भवानी
दृष्टि मेरी बस तुमको देखे
तुमसे अपनी रोटी-पानी!

तुम्हीं हमारे किशन कन्हैया
सखा, सहाय, स्वामीनाथ
तुम्हीं हमारी यशोदा मैया
शरण बिना हम होते अनाथ

मैं मतिहीन न जानूं कैसे
करूं देव तुमको अभिनंदन
बुद्धि मलिन, वाणी विकरित
ना पुष्पों सा मन मुखरित

अवगुण का भंडार खज़ाना
तुमको सौंप हुआ निश्चिंत
तुम गुरु-ज्ञानी, ज्ञान सामना
सिमरन करत मिटै सब चिन्त

इस पापी के पाप पुण्य सब
नाथ तुम्हारे हाथों में
‘अब सौंप दिया इस जीवन का
सब भार तुम्हारे हाथों में’

नैय्या तुम प्रभु, तुम्हीं खेवैय्या
तुम मझधार, तुम पार किनारा
तर जाऊं, तुम तारणहारा
तुम्हीं आसरा, तुम्हीं सहारा

सबकुछ पाकर भी न अघाया
करत सतत मैं करुण पुकार
नाथ सदैव रखो निज आश्रय
विनती करूं मै बारंबार

विनती करूं मैं बारंबार!

 

।ॐ स्वामी नमो नमः।

🙏🏻

 

तुम ही शब्द, तुम ही भाव, तुम ही भाव-प्रवाह, तुमको ही समर्पित! 🙏🏻

मेरे प्यारे गुरु-परिवार को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं। 

दो पंक्तियां इस भजन से ली गई हैं।