सुर और असुर ये दो शब्द हमने धार्मिक चित्रणो में बहुत बार सुने और पढ़े है। सुर देवता होते है और असुर राक्षस होते हैं ऐसा दर्शाया जाता आया हैं। 

सुर अर्थात जिनका कार्य कानो को आनन्द देने वाले मधुर संगीत की तरह हो। जो कार्य एक संगीत की ताल की तरह हो, आनंदमय और एक जैसा । जिस प्रकार एक सुनार एक ताल से स्वर्ण की वस्तु को एक आकार देता है।

इसके विपरित असुर जिसमे ताल ना हो। जो अक्समिकता से भरा हो। ताल का ना होना, सुर का ना होना ही असुर की निशानी है।

किसी भी कार्य को सुर रूप में पूर्ण करने हेतु, मन का एकाग्र होना नितांत आवश्यक है। जिसे अंग्रेजी भाषा में माइंडफुल कहा गया है।

इससे यह स्पष्ट होता है कि हमारे पूर्वजों ने मन की एकाग्रता को सुर अर्थात देवता की संज्ञा दी है ।

हर कार्य सुर रूप से करने पर वह कार्य देवता की श्रेणी में आ जाता है और वह कार्य जीवन में एक मधुर ताल का आसुवादन करता है।

तो क्या हम गुस्सा असुर को भुला कर गुस्सा सुर का प्रयोग कर सकते है?

गुस्सा सुर में करना कही कही लाभदायक क्या सिद्ध हो सकता है?

हमारे ऋषि मुनि में से एक दुर्वासा ऋषि अपने गुस्से के लिए जाने जाते है। मैं हमेशा सोचता था कि गुस्सा करने वाला व्यक्ति क्या ऋषि हो सकता है? परंतु किसी को गलत मानना एक अहंकार असुर है। हो सकता है ऋषि दुर्वासा का गुस्सा, गुस्सा सुर हो।

धन्यवाद,

आप सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।