*बचपन और अपने घर आंगन की कुछ झलकियां… और अपने पिता की स्मृति में श्रद्धा सुमन।*

चिट्ठी

यह चिट्ठी लिखी एक कुएं ने अपने मालिक के नाम।

  • मालिक अब तो मैं धरती में दफन हूं

और मालिक आप विराजे बैकुंठ धाम

न जाने आज क्यों दिल कराया

लिखूं मैं एक पाती आपके नाम।

मुझे याद है वह दिन

जब चली थी पहली कुल्हाड़ी

मेरे उद्गम के लिए रखा था आपने भूमि पूजन।

बच्चे सा किलकारी भरता

उछल उछल कर जल भरता जाता।

अभी आधा कच्चा पक्का बना ही था

छोटे राजा गिर पड़े कुएं के अंदर

मैंने कितना उत्पात मचाया

बिटिया ने सुन लिया मेरा क्रंदन

उसने जो चीख पुकार मचाई

वक्त रहते बच्चे की जान बचाई

मेरे भी मन को शांति आई।

फिर जब जोड़ा हैंडपंप को मेरे साथ

गर्व से निकलती थी मोटी धार

कर्मठ सिपाही की तरह मैंने आपको पाया

मुझको था सब कुछ बहुत ही भाया।

उदारता के चर्चे क्या सुनाऊं

पूरे इलाके में था मैं एक ही कुआं

सब  आते पानी भर भर ले जाते

हमको खूब दुआएं देते

मैं भी फूला ना समाता था

सब की प्यास जो मैं बुझाता था।

भैंस भी तो थी तब नई नई आई

बड़े प्यार से होती थी उसकी धुलाई

आता था मैं सबके काम,

खुशी से कुप्पा हो जाता था

मिलजुल कर देखे हमने कई बसंत

हंसी खुशी बीत रहे थे दिन।

फिर आ गई जीवन में संध्या

गहरे काले बादल  गमगीन

पहले बड़े पुत्र फिर छोटे ने जान गवाई

रो-रो कर दिया था मैंने जल अंतिम क्षण।

कालांतर आप दुनिया से कूच कर गए

मैं भी बूढ़ा जर्जर सूख गया

धरती में फिर दफ़न हुआ

मेरे ऊपर अब सपाट आंगन है।

बहुत दिनों के बाद इस घर की बिटिया आई

प्यार से उसने मुझे आवाज लगाई

मेरी याद में दो आंसू भी बहाए

और श्रद्धा के सुमन चढ़ाऐ

मैंने बिटिया को आसीसें  दीं

आपकी तरफ से भी ढेरों दी।

अब तो बस दुआ है हमारी

यह घर फले फूले दिन रात दुगनी।

जीवन है तो अंत भी है

आपकी छत्रछाया में पला बढ़ा

फिर कभी पुनर्जन्म मिला

तो आप फिर से मेरे मालिक बनना

और  मैं आपका कूआं नया।