सादर नमस्कार।

हम सभी अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं, अपने अनुसार उसका निर्माण करने के लिये परिश्रम करते हैं। किन्तु हमसे भी अधिक परिश्रम शायद वे प्राणी करते होंगे जिनके बारे में हमें अधिक जानकारी भी नहीं है। जैसे- पक्षी, कीट-पतंग, जलीय प्राणी और चीटियाँ। चीटियाँ हम सभी की परिचित हैं, किन्तु अक्सर हमने उन पर ध्यान नहीं दिया होता। क्या निरंतर कर्मरत रहने वाली चीटियों को कभी अपने भविष्य का विचार आता होगा। इस पर मैंने हवाई कल्पना कि तो पाया यह कि हम केवल सोच सकते हैं, इस बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते हैं। चीटियाँ या अन्य प्राणी केवल प्रेम की, एकत्व भाव की भाषा समझ सकते हैं, और तब तो सारे प्रश्न ही समाप्त हो जाते हैं। लक्ष्य व भविष्य अस्तित्व के मूल में नहीं है, सभी कुछ सर्वथा वर्तमान है। 

तो, उन्हीं असंख्य चीटियों में से किसी एक के साथ हुई मेरी एक तरफा काल्पनिक वार्ता-

चीटीं का भविष्य

चींटी, एक ज्योतिषी हूँ मैं,

मुझे लकीरें दिखाओ,

अपने हाथ-पैरों की

देखूँ तो तुम्हारा भविष्य,

कहाँ तक का सफर रहेगा,

पर्वत कौन-से चढ़ने होंगे,

कितनी खाइयों की गहराइयाँ नापनी होंगी,

कितनी दफा भार खुद से

अधिक का उठाना होगा,

कितनी बार उठाकर दाने को

दूर गोदाम तक पहुँचाकर,

अपना नाम दर्ज कराना होगा

चींटी, मुझे लकीरें दिखाओ तो

तुम्हारे हाथ-पैरों की, देखूँ तो

तुम्हारा भविष्य ।

-अमित

सप्रेम नमन।