सादर नमस्कार। प्रस्तुत कहानी स्वरचित नहीं है, बल्कि इंटरनेट से ली गई है। केवल इसका अनुवाद मैंने अपनी समझ से किया है। कोई गलती हो तो क्षमा करें।
अमरता की तलाश में सिकंदर महान
सोलह वर्ष की उम्र से दुनिया को जीतने के लिये कुछ सैनिकों को टुकडियों को लेकर सिंकदर अपने देश यूनान से निकला था। लगभग आधी दुनिया जीतने के बाद, विभिन्न देशों के शासकों को हराने के बाद तथा हजारों-लाखों लोगों को मारने के बाद वह भारत की ओर अपने कदम दृढ़ता से बढ़ा रहा था।
चूँकि वह लाखों लोगों की मृत्यु का कारण बन चुका था, इसलिये वह जानता था, कि सभी किसी न किसी प्रकार मरेंगे ही, पर सिंकदर? नहीं! वह नहीं मरना चाहता था। जब वह पूरी दुनिया जीत लेगा, उसके बाद भी अनंतकाल तक अमर रहते हुए वह धरती पर शासन करना चाहता था। लेकिन यह अमरता उसे मिलेगी कहाँ? इसी अमरता की तलाश में वह भारत आया था।
हिन्दकुश पर्वत पर उसकी भेंट एक योगी से हुई, जोकि ध्यान की इंद्रियातीत अवस्था में व्याघ्रचर्म पर निश्चल बैठे थे। अपने स्वाभाविक अविवेक का प्रदर्शन करते हुए वह उन योगी का ध्यान भंग कर देता है। और स्वाभाविक अहंकार के साथ योगी से पूछता है, ‘लोग कहते हैं कि भारत में योगी अमरता को प्राप्त कर चुके हैं और वे हजारों सालों तक जीवित रहते हैं।’
‘क्या तुम मुझे अमरता सिखा सकते हो इसके बदले में मैं तुम्हें कुछ भी दे सकता हूँ, जो तुम चाहो।’
योगी ने पूछा, ‘क्या है तुम्हारे पास?’
सिकंदर ने युद्धों में जीते हुए बहुमूल्य हीरों-जवाहरातों से भरे कई संदूक अपने सैनिकों से तुरंत योगी की आँखों के सामने पेश करवा दिये। और उन्हें खोलते हुए कहा, ‘ये देखो, पूरी दुनिया की दौलत यहाँ है।’
योगी ने बिना कोई आश्चर्य प्रकट करते हुए, सहज भाव से कहा, ‘तुम तो मिट्टी के समान चीजों को ही इकट्ठा करते रहे हो। लेकिन तुमने उस मिट्टी की कीमत नहीं समझी जिससे तुम अपना भोजन पाते हो और जिस पर तुम चलते हो। जिसे तुम समस्त संसार का खजाना कहते हो, पहले सोच तो लो वह खजाना है भी? न तो तुम इसे तुम्हारे उदर(पेट) में भूख उठने पर खा सकते हो, न इससे अपनी क्षुधा(प्यास) ही शांत कर सकते हैं। यह केवल कूड़ा-करकट का एक ढेर भर है।’
सिकंदर पर योगी की इन बातों से चकित तो हुआ पर अपनी अमरत्व प्राप्त करने की लालसा में इसका मर्म समझ नहीं सका। वह कहने लगा, ‘ठीक है, कोई बात नहीं। फिर भी क्या तुम मुझे अमरता सिखा सकते हो?’
योगी ने व्यंग्य से कहा, ‘तुम ऐसी कोई चीज क्यों पाना चाहते हो, अभी तो तुम्हें आधा संसार भी बाकी है जीतने के लिये!’
इस पर सिकंदर ने गुस्से के साथ बोला, ‘या तो तुम मुझे अमरता पाने का तरीका बताओ या मैं अभी तुम्हारा सर कलम कर दूंगा।’
योगी ने निश्चिन्त भाव से कहा, ‘यदि तुम यही चाहते हो, तो कर दो। क्योंकि मुझे जो भी करना था, वह किया जा चुका है। इसीलिये मैं अभी मरूं या बाद में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।’
सिंकदर का सामना पहली बार ऐसे किसी व्यक्ति से हुआ, जो उसकी उस तलवार के सामने भी झुकने के लिये तैयार नहीं था, जिसने लाखों लोगों को मृत्यु के द्वार पर पहुँचा दिया था।
अब सिकंदर को अपनी हालत का अहसास हुआ और योगी से अमरता प्राप्त करने का तरीका बताने की याचना करने लगा।
योगी उसे देख कर मुस्काराये और बोले, ‘लगता है तुम उसे जानने के लिये बहुत बेसब्र हो। ठीक है। देखो, यहाँ पर एक जंगल हैं, इस दिशा में जाने पर उस जंगल में कुछ दूर चलने पर तुम्हें एक गुफा दिखेगी। गुफा के अन्दर जाने के बाद एक स्वच्छ पानी से भरा जलकुंड दिखाई देगा। उस जलकुंड से एक अंजुली भर के जल पी लेना और तुम अमर हो जाओगे।’
सिकंदर, योगी द्वारा बताए गए मार्ग पर अविश्वास के साथ चल दिया। किंतु जैसे-जैसे वह बढ़ता गया, उसकी सभी अविश्वास दूर होने लगा। जंगल का रास्ता योगी के बताये गए के अनुरूप ही था। अंतत उसे वह गुफा दिख गयी।
सिकंदर के साथ कुछ सैनिक भी थे, उसने सोचा अगर इन्होंने भी वो जल पी लिया तो ये भी अमर हो जाएंगे, और तब इन पर शासन करना मुश्किल हो जाएगा। इसलिये अपने सैनिकों को गुफा के बाहर ही छोड़ वह अकेला ही गुफा के अंदर जाने लगा।
जब सिकंदर ने एक कौवे की बात मानी
गुफा के भीतर जाने पर उसे एक बेहद ही साफ जल से परिपूर्ण जलकुंड दिखा। वह जल्दी से जलकुंड से जल पी लेना चाहता था। वह जैसे ही हाथों में जल भरकर जल को पीने वाला था, तभी एक कौआ, जो जलकुंड के दूसरी ओर बैठा था, उससे कुछ कहने लगा। आश्चर्य की बात यह थी कि वह कांव-कांव न करके यूनानी भाषा का प्रयोग कर रहा था।
कौआ कहने लगा, ‘रुक जाओ, यह जल मत पीओ। मैंने भी हजारों साल पहले यह जल पीया था तुम्हारी ही तरह अमरता की चाहत में, और देखो मैं तब से यहाँ ऐसे ही बैठा हुआ हूं। न तो मैं आत्महत्या का प्रयास कर सकता हूं और न ही किसी तरह से मर सकता हूँ। तुम भी वाकई यही चाहते हो । कृपया पानी पीने से पहले एक बार सोच लो।’
सिकंदर उसकी हालत पर विचार करने लगा, और कांपता हुआ कुछ समय तक वहीं खड़ा रहा। अंत में वह बिना जल पीये ही गुफा के बाहर आ गया। ऐसा कहा जाता है कि सिकंदर ने अपने जीवन में केवल यही काम बुद्धिमानी पूर्वक किया, वरना किशोरावस्था से वह हाथों में तलवार और ढाल लेकर एक जगह से दूसरी जगह अपने नाम के डंका बजाते हुए घूमता ही रहा।
Blog & Images Source- Isha Blog
आदरणीय सज्जनों को सप्रेम नमन।
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