ज़िन्दगी कौन सा खेल है,
बिन जाने बस खेलता जा रहा इंसान|
खुशी और प्यार को पाने की चाहत में,
कभी आत्मविश्वास, तो कभी उदासी में उलझता जा रहा इंसान|
सच जानें तो खुद की ही रोशनी तलाशने का, यह खेल है ट्रेजर हंट,
पर कबड्डी का इसे खेल तू समझे,पाकर दुख, कलह, और विकारों का संग|
ये दुख, तकलीफें और रिश्तों की तक़रार,
कभी रहे तू तरसता, पाने को सच्चा प्यार!
हैं चुनौतियां ये सारी, तेरी खुद की ही चुनी हुईं,
ताकि तू समझे जीवन का सार और करे आत्म -उद्धार|
सुन उस परमपिता परमात्मा की अब सलाह ,
अपने आत्म रूप की अनुभूति तू कर ज़रा|
सारा खे़ल तुझे समझ आएगा,
जब खुद को ही प्यार ,खुशी और शांति का रूप तू पाएगा|
है यह ऊर्जा तेरी उस परमात्मा की ही ऊर्जा का अंश,
परमपिता की याद से ही होगा ग़म और उदासियों का अंत|
हंसेगा तू मन ही मन, चुनौतियों से नहीं घबराएगा,
जब असल खेल इस जीवन का,समझ तुझे आ जाएगा😊 ||
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