Here, I am sharing a poem that I wrote 2 years ago. Only 1 person has read this, as far as I remember. I don’t know what made me write this. But I just remember that I was feeling nice and this flowed through me :
गिरना उठना तो चलता रहता है
जीवन एक सा कहाँ रहता है ।
कभी दिन है तो कभी रात
कभी शय है तो कभी मात।
हर स्थिति का एक विपरीत पहलु होता है
अमृत से पहले विष ही तो निकलता है।
जग को तारने शिव ही तो आते हैं
तभी तो वे महादेव कहलाते हैं।
हर तिमिर का उजियारा अंत करता है
हर विकार को तप भस्म करता है।
हर दिन के बाद रात आती है
हर अंत के बाद एक नई शुरुआत आती है।
अनुकूल प्रतिकूल हर स्थिति में
जीवन की हर परिस्थिति में,
ना हो चित्त विचलित जिसका
रहे मन स्थिर जिसका, (I edited this line a little today for rhyming)
गुण अवगुण से परे होकर
पक्षपात से उठकर,
जीवन का परम सत्य वहीं अनुभव कर पाता है
कण कण में शिव शक्ति का वही दर्शन पाता है।
हर अंत एक आरंभ है
हर आरंभ है एक अंत।
।।कर्पूर गौरं करुणावतारम् संसार सारं भुजगेन्द्र हारं
सदा वसंतम् हृद्यार्विंदे भवम् भवानी सहितम् नमामि।।
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