“टटिया स्थान वृंदावन”
॥श्री राधा॥
श्री रंगजी मन्दिर के दाहिने हाथ यमुना जी के जाने वाली पक्की सड़क के आखिर में ही यह रमणीय टटिया स्थान है। विशाल भूखंड पर फैला हुआ है, किन्तु कोई दीवार,पत्थरो की घेराबंदी नहीं है। केवल बाँस की खपच्चियाँ या टटियाओ से घिरा हुआ है इसलिए टटिया स्थान के नाम से प्रसिद्ध है।
संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी महाराजकी तपोस्थली है। यह एक ऐसा स्थल है जहाँ के हर वृक्ष और पत्तों में भक्तो ने राधा कृष्ण की अनुभूति की है, सन्त कृपा से राधा नाम पत्ती पर उभरा हुआ देखा है
स्थापना
स्वामी श्री हरिदास जी की शिष्य परंपरा के सातवे आचार्य श्री ललित किशोरी जी ने इस भूमि को अपनी भजन स्थली बनाया था। उनके शिष्य महन्त श्री ललितमोहनदास जी ने सं १८२३ में इस स्थान पर ठाकुर श्री मोहिनी बिहारी जी को प्रतिष्ठित किया था। तभी चारो ओर बाँस की टटिया लगायी गई थी तभी से यहाँ के सेवा पुजाधिकारी विरक्त साधु ही चले आ रहे है। उनकी विशेष वेशभूषा भी है।
विग्रह
श्रीमोहिनी बिहारी जी का श्री विग्रह प्रतिष्ठित है। मन्दिर का अनोखा नियम ऐसा सुना जाता है कि श्री ललितमोहिनिदास जी के समय इस स्थान का यह नियम था कि जो भी आटा-दाल-घी दूध भेट में आवे उसे उसी दिन ही ठाकुर भोग ओर साधु सेवा में लगाया जाता है। संध्या के समय के बाद सबके बर्तन खाली करके धो माज के उलटे करके रख दिए जाते है, कभी भी यहाँ अन्न सामग्री कि कमी नहीं रहती थी।
एक बार दिल्ली के यवन शासक ने जब यह नियम सुना तो परीक्षा के लिए अपने एक हिंदू कर्मचारी के हाथ एक पोटली में सच्चे मोती भर कर सेवा के लिए संध्या के बाद रात को भेजे। श्री महन्त जी बोले- वाह खूब समय पर आप भेट लाये हैं। महन्त जी ने तुरन्त उन्हें खरल में पिसवाया और पान में भरकर श्री ठाकुर जी को भोग में अर्पण कर दिया कल के लिए कुछ नहीं रखा। संग्रह रहित विरक्त थे श्री महन्त जी। उनका यह भी नियम था कि चाहे कितने मिष्ठान व्यंजन पकवान भोग लगे स्वयं उनमें से प्रसाद रूप में कणिका मात्र ग्रहण करते सब पदार्थ सन्त सेवा में लगा देते ओर स्वयं मधुकरी करते।
विशेष प्रसाद
इस स्थान के महन्त पदासीन महानुभाव अपने स्थान से बाहर कही भी नहीं जाते स्वामी हरिदास जी के आविर्भाव दिवस श्री राधाष्टमी के दिन यहाँ स्थानीय और आगुन्तक भक्तों कि विशाल भीड़ लगती है। श्री स्वामी जी के कडुवा और दंड के उस दिन सबको दर्शन लाभ होता है। उस दिन विशेष प्रकार कि स्वादिष्ट अर्बी का भोग लगता है और बँटता है। जो दही और घी में विशेष प्रक्रिया से तैयार की जाती है। यहाँ का अर्बी प्रसाद प्रसिद्ध है। इसे सखी संप्रदाय का प्रमुख स्थान माना जाता है।
एक प्रसंग
एक दिन श्रीस्वामी ललितमोहिनी देव जी सन्त-सेवा के पश्चात प्रसाद पाकर विश्राम कर रहे थे, किन्तु उनका मन कुछ उद्विग्न सा था। वे बार-बार आश्रम के प्रवेश द्वार की तरफ देखते, वहाँ जाते और फिर लौट आते। वहाँ रह रहे सन्त ने पूंछा- “स्वामी जी ! किसको देख रहे हैं, आपको किसका इन्तजार है ?” स्वामी जी बोले- एक मुसलमान भक्त है, श्री युगल किशोर जी की मूर्तियाँ लाने वाला है उसका इन्तजार कर रहा हूँ। इतने मे वह मुसलमान भक्त सिर पर एक घड़ा लिए वहाँ आ पहुँचा और दो मूर्तियों को ले आने की बात कही। श्री स्वामी जी के पूछने पर उसने बताया, कि डींग के किले में भूमि कि खुदाई चल रही है, मैं वहाँ एक मजदूर के तौर पर खुदाई का काम कई दिन से कर रहा हूँ। कल खुदाई करते में मुझे यह घड़ा दीखा तो मैंने इसे मोहरों से भरा जान कर फिर दबा दिया ताकि साथ के मजदूर इसे ना देख ले। रात को फिर मै इस कलश को घर ले आया खुदा का लाख-लाख शुक्र अदा करते हुए कि, अब मेरी परिवार के साथ जिंदगी शौक मौज से बसर होगी घर आकर जब कलश में देखा तो इससे ये दो मूर्तियाँ निकली, एक फूटी कौड़ी भी साथ ना थी। स्वामी जी- इन्हें यहाँ लाने के लिए तुम्हे किसने कहा ? मजदूर- जब रात को मुझे स्वप्न में इन प्रतिमाओं ने आदेश दिया कि, हमें सवेरे वृंदावन में टटिया स्थान पर श्री स्वामी जी के पास पहुँचा दो, इसलिए मैं इन्हें लेकर आया हूँ। स्वामी जी ने मूर्तियों को निकाल लिया और उस मुसलमान भक्त को खाली घड़ा लौटते हुए कहा “भईया ! तुम बड़े भाग्यवान हो भगवान तुम्हारे सब कष्ट दूर करेगे।” वह मुसलमान मजदूर खाली घड़ा लेकर घर लौटा, रास्ते में सोच रहा था कि, इतना चमत्कारी महात्मा मुझे खाली हाथ लौटा देगा- मैंने तो स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा था। आज की मजदूरी भी मारी गई। घर पहुँचा एक कौने में घड़ा धर दिया और उदास होकर एक टूटे मांझे पर आकर सो गया। पत्नी ने पूछा- हो आये वृंदावन ? क्या लाये फकीर से ? भर दिया घड़ा अशर्फिर्यो से ? क्या जवाव देता इस व्यंग का ? उसने आँखे बंद करके करवट बदल ली। पत्नी ने कोने में घड़ा रखा देखा तो लपकी उस तरफ देखती है कि, घड़ा तो अशर्फियों से लबालव भरा है, आनंद से नाचती हुई पति से आकर बोली मियाँ वाह ! इतनी दौलत होते हुए भी क्या आप थोड़े से मुरमुरे ना ला सके बच्चो के लिए ? अशर्फियों का नाम सुनते ही भक्त चौंककर खड़ा हुआ और घड़े को देखकर उसकी आँखों से अश्रु धारा बह निकली, बोला मै किसका शुक्रिया करूँ, खुदा का, या उस फकीर का जिसने मुझे इस कदर संपत्ति बख्शी। फिर इन अशर्फिर्यो के बोझे को सिर पर लाद कर लाने से भी मुझे मुक्त रखा।
कुंज बिहारी श्री हरिदास जी
जय जय श्यामा जय जय श्याम जय जय श्री वृन्दावन धाम।।
श्री राधे गोविन्द शरणम मम।।
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