प्रेम, प्रीती और कितने ही भिन्न भिन्न नामो से पहचाने जाने वाली एक ऐसी अवस्था जिसमें हम हर दूसरी चीज़ को भूल, एक परम आनंदमयी स्थिति में होते हैं। कहने वाले तो कहते हैं कि “प्रेम में उनके हम खुद को यूं भूले हैं कि ना खाते है ना सोते हैं, मन मैं आंखें उनकी और हमारी आंखों में आसूं होते हैं।”

क्या आपको प्रेम हुआ हैं?

कहते हैं कि जख्मी का जख्म घायल ही जान सकता हैं, प्रेम को भी जानने के लिए इस रस धारा का अस्वद्दन स्वयं ही करना होता हैं, ऐसा सभी प्रेमी जनों का मत हैं। मगर क्या इस रस बिंदु प्रेम को शब्द के धागे से पिरोया जा सकता है?

क्या आपने कोई ऐसी कविता या लेखक द्धारा छंद या गीत सुनकर प्रेम के आनन्द की प्रतीति की हैं? किसी कहानी में प्रेमी और प्रेमिका की प्रीती से आपको भी आसूं आए हैं? मेरे लिए इस प्रश्न का उत्तर “हां” में हैं। गीत और चलचित्र कहानियां, क्या इस रस धारा का प्रयोग करके ही सफल होती हैं?

कबीर जी जो एक महान संत हुए हैं उनके लिए प्रेम क्या हैं वह इस दोहे से साफ हो जाता हैं। “पोथी पड़ पड़ जाग बहा पंडित भया न कोए, ढ़ाई आखर प्रेमी का पढ़े सो पंडित होए।”

कि इस दुनिया मैं हम अपनी बुद्धि के बल से लिखित किताबो द्धारा इस दुनिया के रहस्मय ज्ञान को प्राप्त करने का यत्न करते हैं। कबीर जी के अनुसार आज तक कोई ऐसा नहीं कर पाया है, परन्तु प्रेम को जानने वाले उस रहस्य को जान चुके है ये कबीर जी का कथन कहता है।

प्रेम क्या हैं?

“भूख मेरी, मुख तेरा इतना गहरा प्रेम मेरा” कि जब मात्र एक आपके इष्ट, जिनसे आपको प्रेम है वो ही एक मात्र प्राप्य वस्तु रह जाए, तो ये स्पष्ट है कि प्रेम कृपा हुई है। श्रीमद भगवद्गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, जो अंतिम क्षणों में जिस वस्तु का स्मरण करता है, तो वह उस वस्तु को प्राप्त होता हैं। अगर आप प्रेमी हो तब ही ऐसा हो सकता हैं कि मृत्यु काल आपके सामने हो और आप उस वक्त भी सिर्फ प्रेमी के ख्याल में हो।

अंतिम गंतव्य 

हम सब नाना प्रकार की तृष्णा रखते हैं धन, प्रशंसा आदि, और कुछ लोग तो आध्यात्मिक तृष्णा भी रखते हैं जैसे कि समाधि, मोक्ष.. । अगर देखा जाए तो ये दोनो ही समान रुप से तृष्णा के ही प्रकार हैं। क्योंकि इन दोनो ही स्थिति में हम उस स्थिती को प्रत्यक्ष रूप से नहीं जानते , हमें इन स्थिति में होने का कोई अनुभव नहीं होता और हमें लगता हैं ये ही हमारे लिए सबसे उच्चतर है। परन्तु प्रेम मैं खुद को खोने मैं ही प्रेमी जन आनंद लेते हैं, “शमा कहे परवाने से परे चला जा मेरी तरह जल जाएगा यहां नहीं आ! वो नही सुनता उसको जल जाना होता हैं”

आप भी इस कृपा की आशा रखे क्या पता कब प्रेम रस धारा आपको भी कभी भिगो जाए और आप एक नाजुक काग़ज़ की तरह भीग जाए.. और शायद आप प्रेमी ही हो जाए।

“जो नदी थी कभी चलती थी, खुद को विशाल समझती रही वो, आपके समुद्र से प्रेम में लीन हो रही हैं, धीरे धीरे अपना अस्तित्व खो रही हैं”

Thank you for reading this small post.

Prepare yourself for the week of eternal love coming ahead , let’s pray we all have love yog in our life this mahashivratri.

Thank you Swami ji