ढूंढ़ लूंगा तुम्हें
रात के एक बज रहे थे। बिजली जा चुकी थी। हमारे गांव में बिजली की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है। गर्मी का मौसम था।
नींद कोसों दूर जा चुकी थी। पूरा ग्लास पानी गटक जाने के बाद! मन में द्वंद्व चल रहा था कि छत पर सोने के लिए जाएं अथवा न जाएं।
लेकिन अंत में वही हुआ जो होता है । जो मजबूत होता है वही जीतता है । मैं छत पर सोने के लिए चला गया।
चांदनी रात थी। चंद्रमा अब धीरे धीरे ऊपर आ गया था । जो कुुछ अंधकार है, उसे दूर कर देेने को कृतसंंकल्प था ।ऐसा नहीं है कि चांदनी रात पहली बार देख रहा था । लेकिन इस बार कुछ अलग था।
मेरी निगाहें चाँद पर टिक गई। मैंने ऐसे पहले कभी नहीं देखा था चाँद को। फिर मेरे मन में विचार आते चले गए!
“इस चाँद के सहारे, ढूंढ लूंगा तुम्हें।
अगर दूर हुए तो पंछियों की भाँति,
उड़ कर भी आ जाऊंगा।
मगर इस चाँद के सहारे, ढूंढ लूंगा तुम्हें।
रास्ता कितना भी कठिन होगा,
पर लगन इतना कि काँटों की परवाह नहीं,
इस चाँद के सहारे , ढूंढ लूंगा तुम्हें।
ढूंढ लूंगा तुम्हें !”
शायद जो मैं ढूंढ रहा हूँ उसका कोई नाम नहीं है। लेकिन जो भी है बहुत खूबसूरत है। 🍂
Comments & Discussion
34 COMMENTS
Please login to read members' comments and participate in the discussion.