रक्तबीज स्वयं युद्ध भूमि में काली माँ के सामने आकर उनके विरुद्ध लड़ने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि काली एक वीर पुरुष के सामने टिक नही पाएगी। और अगर वो काली के विरुद्ध युद्ध नही करता तो उसकी सारी सेना उसे कायर समझ कर भाग जाएगी। अतः काली को रोकना ही होगा। हो सकता है कि काली युद्ध में हार जाए और वीरगति को प्राप्त हो जाए। काली अगर जीवित भी रही तो कभी भविष्य में वे काली का प्रयोग देवतायों के विरुद्ध किसी महासंग्राम के लिए कर सकते है।
(भ्रम और अहं मनुष्य की बुद्धि को अनुचित दिशा देते है।)
उसके मन का भाव जान कर माँ ने एक मूक गम्भीर दृष्टि उस पर डाली, जिस ने उस रक्तबीज को अंदर तक झिंझोड़ कर रख दिया था। रक्त बीज को अपना काल दिखाई दे रहा था। उसने माँ पर बहुत तेज़ी से बलपूर्वक पीछे से प्रहार किया। उतनी ही वायु गति से माँ एक तरफ़ हो गयी और अपने खड्ग से उसके कंधे पर वार किया। उसका कंधा आधा लटक रहा था और उसके रक्त को भूमि पर गिरने से पहले ही माँ ने अपना खप्पर आगे कर दिया। माँ उसके रक्त का पान कर गयी और उनके नेत्र ऐसे हो गये जैसे माँ ने मदिरा पान किया हो।
रक्तबीज को दर्द में यह याद आ रहा था कि वो तपस्वियों की बलि किस प्रकार दैत्यराज को देता था। और उनका रक्त किस प्रकार प्रसन्नता से पीते थे। इसी तरह आज उसका रक्त भी पिया जा रहा है। उसी बर्बरता के साथ उसकी बलि भी निश्चित है।
इस से पहले कि घायल रक्तबीज अपना अगला वार करता, माँ ने खड्ग के एक ही झटके से उसका शीश उसके धड़ से अलग कर दिया। उसके रक्त की एक एक बूँद को अपने खप्पर में लेकर पी गयी। उसके कटे हुए शीश को पकड़ कर हवा में घुमाने लगी। उसका विक्षिप्त शरीर रक्त से विहीन हो सूख कर पृथ्वी पर गिर गया। उसके रक्त की एक भी बूँद को माँ ने पृथ्वी पर गिरने नही दिया। माँ ने उन्हीं रक्त वाले हाथों को अपने मुख पर लगा कर तांडव नृत्य शुरू कर दिया। रक्त बीज का भयानक अंत देख कर पूरी दानव सेना में हाहाकार मच गया। माँ के रौद्र अट्टहास और सेना के हाहाकार की आवाज़ से पूरी युद्ध भूमि में आँतक छा गया।
किसी देवता ने कोई जयजयकार नही की, कोई पुष्प वर्षा नही की। बल्कि वे एक तरफ़ भाग कर छिप गये थे और माँ के शांत होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। माँ ने युद्ध भूमि में अकेले ही ज़ोर ज़ोर से खड्ग घुमाना शुरू कर दिया। जो भी शव या कटा हुआ सिर माँ के चरणो में आता, माँ उसको अपने पैरों से हवा में गेंद की भाँति उछाल रही थी। माँ ने ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना आरम्भ कर दिया। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो और रक्त की माँग कर रही है, और विनाश चाहती है। पृथ्वी पर पड़े हुए शवों को उसने फाड़ना शुरू कर दिया।
युद्ध के मैदान को खाली देख कर काली देवी ने अनियंत्रित क्रोद्ध में तीव्र गति से चलना प्रारम्भ कर दिया। वो गति ऐसी थी कि पृथ्वी और पाताल एक हो गये थे। देखते ही देखते ज्वालामुखी फटने लगे थे। पृथ्वी तो क्या माँ के तीव्र गति से पूरा ब्रह्मांड कांप रहा था। केवल काली देवी ही दिखाई दे रही थी। कोई देवता-दानव नही, कहीं त्रिलोकी नाथ नही और कोई सहचरी नही।
देवतायों का एक उद्देश्य पूरा हो गया था लेकिन अब काली देवी को शांत कैसे किया जाए? इसका कुछ उपाए नही सूझ रहा था। सभी देवतायों को ज्ञात था कि देवतायों का अमृतत्व भी कुछ नही कर पाता, अगर वे देवी के समक्ष जाते। उनकी मृत्यु अटल थी।
“लगता है, श्री नारायण भगवान की सहायता लेनी होगी, इस अवसर पर वो ही हमें मार्ग दिखा सकते है।” इंद्र अपने साथ झिपे हुए देवतायों को बोले
कोई और सम्भावना ना देखते हुए, सभी ने अपनी सहमति जताई।
“हे वासुदेव, हमारी रक्षा कीजिए। देवी काली को शांत कीजिए। नही तो, देवता गण भी नही जीवित रह पायेंगे। देवी काली की पिपासा को कैसे शांत करें?” नारद बोले। इंद्र देव ने नारद को आगे किया, श्री भगवान से प्रार्थना करने के लिए।
“आप लोगों को मुझसे नही, महादेव से प्रार्थना करनी चाहिए। वो ही कोई मार्ग निकालेंगे, देवी को शांत करने के लिए।” श्री विष्णु मेघ गम्भीर स्वर में बोले।
“लेकिन प्रभु आपकी उपस्तिथि के बिना यह प्रार्थना हम महादेव से नही कर पायेंगे। क्यों कि महादेव से हम ने आज तक केवल स्वार्थ हेतु ही प्रार्थनायें की है और कही ना कही देवी के इस स्वरूप के लिए हम भी उत्तरदायी है। कृपया हमारी ओर से महादेव को प्रार्थना कीजिए, वे आपकी अवश्य सुनेगें।” देवतायों के राजा इंद्र बोले
भगवान श्री हरि और अन्य सभी देवतायों ने भगवान महादेव की स्तुति की और उनका आवाहन किया।
“हे महादेव, हे महाकाल, हे आशुतोष, मात महाकाली का क्रोध आप ही शांत कर सकते है। उनके क्रोध की ज्वाला समस्त संसार को भस्म कर देगी। इस समय केवल आप ही माँ के समक्ष जाकर, देवी माँ का सौम्य स्वरूप वापिस ला सकते है। वे आपकी अवज्ञा नही करेंगी”
देवों और भगवान श्री विष्णु की प्रार्थना सुनने के बाद, महादेव थोड़ा सा मुस्कुराए और बोले, “प्रयत्न करने में कोई हानि नही है लेकिन देवी अपने पूर्व स्वरूप को पूर्णत: भूल चुकी है। और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर भी इस काल स्वरूप को भूलना आसान नही होगा।”
“अपने स्वार्थ हेतु देवी के इस उग्र स्वरूप को जाग्रत भी तो हमीं ने ही किया है।” शिव किसी गहरी सोच में बोले
सभी देवता गण, श्री विष्णु और महादेव उस युद्ध स्थली पर पहुँच गये जहाँ देवी मृत्यु का तांडव कर रही थी।
इस जीवन काल की अवधि में पहली बार ऐसा हुआ था कि देवी को शिव के आने तक का आभास भी नही हुआ। वह वैसे ही अपनी वायु गति से पृथ्वी और पाताल को एक कर रही थी और ज़ोर ज़ोर से अट्टहास कर रही थी।
माँ की यह दशा देख कर स्वयं महाकाल गम्भीर हो गये। कहाँ माँ शिव के लिए अति सुंदर स्वरूप धारण करती थीं, सोलह सिंग़ार करती थीं और कहाँ आज माँ के गले में दैत्य मुंडो की माला थी और उनकी कटी हुई भुजाएँ माँ का आवरण थीं।
महादेव को अपने में और माँ में कोई अंतर ही नही महसूस हो रहा था। आज माँ भी श्मशान वासिनी लग रहीं थीं।
“शिवे, कल्याणी॰॰॰॰॰” ना सुन ने पर महादेव बोले, “भद्रे, हे वाराणने॰॰॰तुम्हारे महादेव आए हैं, क्या तनिक ठहरोगी नही।”
देवी ने सुना लेकिन क्रोद्ध की ज्वाला में कुछ भी याद नही आ रहा जैसे पिछला सब कुछ भूल चुकी हो। माँ ने अपना तांडव जारी रखा।
यह नाम महादेव माँ को प्यार से पुकारते थे और माँ के प्रिय नाम थे। जैसे पति-पत्नी की कुछ बातें गुप्त होती है, वैसे ही एकांत में महादेव माँ को देवी ना कह कर ‘वाराणने’ कह कर पुकारते थे। कभी कभी जब माँ शिव से उनके सेवक गणों की वजह से या अत्यधिक समाधिषट् होने से रूष्ट हो जाती थी तो महादेव माँ को मनाने के लिए भिन्न भिन्न नामों से पुकारते थे और भिन्न भिन्न प्रकार के हँसी वाले मुँह बना कर माँ के सामने आ जाते थे। तो माँ जितना भी गम्भीर रहने की कोशिश करती अंत में माँ हँस कर मान जाती थी। और कितनी बार तो झूठी ही रूठ जाती थी ताकि महादेव का ध्यान अपनी ओर केंद्रित कर सके।
लेकिन आज उन नामों के उच्चारण के बावजुद भी माँ की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही थी। इस के बाद माँ को शांत करने का कोई और रास्ता नही था। सभी देवतायों की स्तिथि पुनः चिंताजनक हो गयी।
“ केवल एक ही मार्ग है,” महादेव थोड़ा गम्भीर होकेर बोले
सभी देवता बिना मार्ग जाने-समझे ही ख़ुशी ख़ुशी सहमत हो गये। विष्णु, महादेव की सोच की गहराई को समझते हुए व्याकुल होकर बोले, “नही प्रभु, प्रकृति तो स्वयं आपकी दासी है। और जिस स्वरूप में देवी है, उसका वेग सहना असम्भव है। यदि आपको कुछ क्षति पहुँची तो ना हम स्वयं को क्षमा कर पायेंगे और ना ही देवी पार्वती ख़ुद को।”
“ और देवी ने आपको पुनः कितने करोड़ वर्षों के कठिन तप के बाद प्राप्त किया है। अब आपका फिर से विरह नही होना चाहिए”
“आपको पाकर मैं धन्य हुँ, प्रभु। कोई तो है जो देवी पार्वती की तरह ही मुझ से स्नेह करते है। सब कुछ नियति में लिखित है” दोनो के मुख पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गयी।
महादेव, श्री विष्णु और अन्य सभी देव गण उस मार्ग की ओर चले गये जिस ओर माँ काली जा रही थी। माँ बेसुध होकर आगे ही आगे बढ़ती जा रही थी। माँ ने अनुभव किया की माँ के बाएँ चरण ने किसी वस्तु पर बहुत ज़ोर से प्रहार किया है।
To be continued…
सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
अगला क्रमांक आपके समक्ष 6 am 26-Feb-2021 को पेश होगा.
The next episode will be posted on 6am at 26-Feb-2021
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