वो दिन जब पहली बार देखा था तुझे,
मुझको बताओ कि वो दिन कैसे भूलूँ?
तुमने देखा था मुझे बस यूँ ही उड़ती हुई
निग़ाहों से, उन निग़ाहों की मगर ताब को
कैसे भूलूं?
और मैंने तुम्हें पाने के लिए,
कितनी की मन्नतें और मुराद…,
वो कैसे भूलूँ?
जब लगा था कि कभी भी नहीं मिल पाएंगे,
न जाने कौन से मन्नत के धागे ने,
जोड़ दिए अपने दिल के तार …,
वो कैसे भूलूं?
और फ़िर अपनी मोहब्बत के इतने फ़ूल खिले,
उन फ़ूलों की रंगत को कहो कैसे भूलूँ?
तुमने मुझे इतने पल दिए है ख़ुशियों के,
अब उन पलों में तुम नहीं हो शामिल,
बोलो अब ये इतनी बुरी बात को कैसे भूलूं?
दिन शुरू होता है एक ख़ालीपन से मेरा,
और रात भी ख़ामोश निकल जाती है,
अपने जो दिन -रात थे ख़ुशियों से भरे,
कहो कि उन दिनों- रात को कैसे भूलूं?
जिस तरफ़ देखूं, नज़र आती है तेरी ,
दिलकश सूरत, जिन्हे थामा था,
कभी अपनी हथेलियों में कभी..,
उस सूरत को मेरी जान मैं कैसे भूलूं..?
तुम अगर पढ़ सको मेरी इस इबारत को..,
तो चले आओ ,और बताओ तुम्हे कैसे भूलूं??
Suneeta- 24.01.2022.
I was under the impression that my pain will reduce with every passing day, but it is in reverse mode, I try everything, work late hours, try to meditate, keep my self busy…But nothing is working, I still cry, still talk to his picture for hours, kiss him Goodnight and Good morning….!!!!
The Path of Grief is very lonely and slow, I am not the same person I used to be, always smiling, cracking jokes, calling life beautiful….!
But despite all this I have a hope to meet you again….And I am holding on that ..!
I trust Krishna and you…..!!😊💐💐
I tell everything to my Krishna now..& I know he listens…!😊
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